मंगलवार, 20 नवंबर 2007

कांग्रेस: कांटों भरी राह पर एक और 'मि. क्लीन'

कांग्रेस: कांटों भरी राह पर एक और 'मि. क्लीन'

तनवीर जांफरी

सदस्‍य हरियाणा साहित्‍य अकादमी

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       भारतवर्ष की स्वतन्त्रता से लेकर अब तक कांग्रेस को संरक्षण देने तथा उसका पोषण करने वाले देश के सबसे बड़े स्वतन्त्रता सेनानी परिवार की पांचवीं पीढ़ी के रूप में राहुल गांधी का नाम इन दिनों आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी के 37 वर्षीय इस होनहार एवं युवा राजनीतिज्ञ पुत्र पर भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के राजनैतिक विशेषकों की नंजरें टिकी हुई हैं। स्वतन्त्रता संग्राम में अपनी अग्रणी भूमिका निभाने वाले पंडित मोती लाल नेहरु, उसके पश्चात भारत की स्वतन्त्रता के बाद देश के सबसे पहले प्रधानमंत्री बने पंडित जवाहर लाल नेहरु, तत्पश्चात पंडित नेहरु की एकमात्र पुत्री इन्दिरा प्रियदर्शनी गांधी जोकि अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी प्रधानमंत्री की हैसियत से देश की सेवा कर रहीं थीं तथा उसके पश्चात मिस्टर क्लीन की अपनी छवि बनाने वाले राजीव गांधी तथा इसके बाद अब इसी नेहरु-गांधी परिवार के राहुल गांधी को इस परिवार की पांचवीं पीढ़ी के रूप में देखा जा रहा है।

             इसमें कोई शक नहीं कि भारत की केन्द्रीय सत्ता पर नेहरु-गांधी परिवार का स्वतन्त्रता के समय से लेकर आज तक अधिकांशतय: जो नियंत्रण था तथा है वैसा नियंत्रण देश के किसी भी अन्य राजनैतिक घराने का नहीं रहा। जिन लोगों ने नेहरु-गांधी परिवार के विषय में अध्ययन किया है तथा इस परिवार के निकट रहने का जिन्हें अवसर प्राप्त हुआ है वे इस परिवार के द्वारा दी गई ंकुर्बानियों से भली भांति परिचित हैं। पंडित मोती लाल नेहरु व जवाहर लाल नेहरु ने देश की आंजादी के लिए अनेकों बार जेल यात्राएं कीं और अंग्रेंजों की यातनाएं सहीं। स्वतन्त्रता के बाद पंडित नेहरु ने भारत के प्रथम एवं सफल प्रधानमंत्री के रूप में लगभग 16 वर्षों तक देश की सेवा की। अपने शानदार शासनकाल के दौरान पंडित नेहरु ने देश को आत्मनिर्भर बनाने तथा इसे विकास की राह पर ले जाने का वह अद्भुत कार्य किया जिसके लिए भारतवासी हमेशा पंडित नेहरु के आभारी रहेंगे। उनके पश्चात लाल बहादुर शास्त्री ने अपना शानदार लघुकालीन शासन चलाया। इसके बाद पुन: पंडित नेहरु की एकमात्र पुत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश की सत्ता संभाली। अपने शासनकाल में भारत के नाम को अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर पहुंचाने वाली इस निडर एवं साहसी महिला ने देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के पक्ष में अपनी ंकुर्बानी तक दे डाली। 1984 में हुई इन्दिरा जी की हत्या के बाद हुए आम चुनावों में राजीव गांधी पूर्ण बहुमत के साथ विजयी हुए तथा भारत के प्रधानमंत्री पद पर सुशोभित हुए। राजीव गांधी ने आम जनता तथा मीडिया के समक्ष अपनी ऐसी छवि स्थापित की थी कि उन्हें मिस्टर क्लीन के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा था। आंखिरकार नेहरु गांधी परिवार का मिस्टर क्लीन रूपी यह चश्म-ए-चिरांग भी श्रीलंका में सक्रिय आतंकवादी संगठन लिट्टे के आत्मघाती सदस्यों द्वारा 1991 में शहीद कर दिया गया।

              राजीव गांधी की हत्या के बाद नेहरु गांधी परिवार को बहुत गहरा झटका लगा। एक बार तो ऐसा महसूस होने लगा था कि शायद भारतीय राजनीति में वर्चस्व बनाए रखने के इस परिवार के दिन अब लद चुके। यह स्थिति कई वर्षों तक बनी रही। ंखासतौर से उस समय तक जब तक कि स्वर्गीय राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में भाग लेने की अपनी मंशा कांग्रेसजनों को ंजाहिर नहीं कर दी। परन्तु वास्तविकता यह है कि सोनिया गांधी जब तक कांग्रेस की पतवार संभालतीं उस समय तक कांफी देर हो चुकी थी। कभी पूरे देश व पूरे देशवासियों के दिलों पर राज करने वाली यह कांग्रेस सोनिया गांधी के सक्रिय होते-होते इतनी पीछे खिसक गई थी कि मौंकापरस्त एवं सत्ता से चिपके रहने वाले अनेकों तथाकथित पलायनकारी कांग्रेसी नेताओं को ऐसा महसूस होने लगा था कि सम्भवत: अब पुन: सत्ता में आना कांग्रेस के भाग्य में नहीं है। उधर विपक्षी दलों द्वारा भी कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए अनेकों ऐसे हथकंडे अपनाए  जाने लगे जिन्हें न सिंर्फ शर्मनाक कहा जाने चाहिए बल्कि वे अनैतिक भी थे। उदाहरण के तौर पर राजीव गांधी की बांकायदा ब्याहता पत्नी को यह कहकर नीचा दिखाने का प्रयास किया गया कि वे विदेशी महिला हैं तथा उनपर विश्वास नहीं किया जा सकता। यहां तक कि 2004 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस संसदीय दल द्वारा सोनिया गांधी को अपना नेता चुनने व प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें निर्वाचित किए जाने के बावजूद विपक्षी दलों विशेषकर भारतीय जनता पार्टी के कुछ तथाकथित राष्ट्रभक्त नेताओं द्वारा सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री चुने जाने के प्रयासों का अत्यन्त निचले व घटिया स्तर तक विरोध किया गया। अपनी अथाह दूरदर्शिता एवं अपूर्व बलिदान का परिचय देते हुए सोनिया गांधी ने भारत के प्रधानमंत्री पद को संभालने से इन्कार कर दिया। ऐसा कर उन्होंने अपनी गरिमा को और अधिक चार चांद लगा दिया तथा स्वयं प्रधानमंत्री बनने के बजाए बेदांग छवि के महान अर्थशास्त्री डा. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तावित कर दिया।

              भारत में गत् दो दशकों से गठबंधन सरकार का दौर चल रहा है। सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पार्टी को उस हद तक तो अवश्य पहुंचा दिया है जहां आज कांग्रेस देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में भारतीय संसद में भारतवासियों का प्रतिनिधित्व करते देखी जा सकती है। परन्तु पूर्ण बहुमत की सरकार बना पाना ंफिलहाल कांग्रेस के लिए इतना आसान एवं उतना ंकरीब नंजर नहीं आता। परन्तु यह भी सच है कि कांग्रेस अपने वर्तमान समर्पित कांग्रेसजनों की विशाल टीम के साथ प्रत्येक उस रणनीति पर अमल करने में जुटी है जिसके द्वारा कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्रीय सत्ता में वापस लाया जा सके। राजीव एवं सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी की राजनीति में सक्रियता, 2004 के चुनावों में राहुल का अपने पिता की सीट अमेठी से लोकसभा हेतु चुनाव लड़ना तथा निर्वाचित होना, अभी कुछ समय पूर्व ही राहुल को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महसचिव बनाया जाना तथा देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में उन्हें अग्रणी किरदार अदा करने हेतु पार्टी हाईकमान द्वारा तैनात किया जाना यह समझ पाने के लिए कांफी है कि नेहरु गांधी परिवार का एक और 'मिस्टर क्लीन' कांग्रेस को पटरी पर लाने के लिए अपने आपको समर्पित करने हेतु तैयार है।

              इसमें कोई शक नहीं कि देश के वर्तमान राजनैतिक हालात में राहुल गांधी को कांटों भरी राह से होकर गुंजरना पड़ेगा। देश में चारों ओर क्षेत्रीय राजनीति का बोलबाला होता जा रहा है। आज केंद्रीय गठबंधन में कांग्रेस के सहयोगी वामपंथी दल आने वाले चुनावों में उनके समक्ष खड़े होंगे। उत्तर प्रदेश राज्य जहां कि राहुल गांधी अपने राजनैतिक कौशल की परीक्षा देने जा रहे हैं वहां ंजबरदस्त साम्प्रदायिक एवं जातिगत ध्रुवीकरण हो चुका है। कांग्रेस के परम्परागत वोट तीन बड़े भागों में विभाजित हो चुके हैं। राष्ट्रीय स्तर पर साम्प्रदायिकता का वह ंखतरनाक खेल खेला जा रहा है जो इस देश में पहले कभी नहीं खेला गया। और यह सब कुछ केवल सत्ता की ंखातिर किया जा रहा है।

              ऐसे में कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे देश को एक साथ लेकर चलने की दुहाई देने वाली, देश को एकता, अखंडता तथा सर्वधर्म सम्भाव जैसा गांधी दर्शन देने वाली कांग्रेस को राहुल गांधी क्या दे सकेंगे क्या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में ही सुरक्षित है। परन्तु इतना ंजरूर है कि कांग्रेस को राजीव गांधी की ही तरह 'मिस्टर क्लीन' जैसी एक और छवि प्राप्त हो चुकी है। ंजरूरत इस बात की है कि कांग्रेसजन चमत्कारी ढंग से सत्ता के अपनी झोली में आने की प्रतीक्षा करने के बजाए कार्यकर्ता स्तर पर संगठन को मंजबूत करें तथा उन दूसरे संगठनों से सबक़ लें जिनका अस्तित्व तो नया ंजरूर है परन्तु अपनी संगठनात्मक क्षमता की बदौलत वे आज कांग्रेस को पीछे छोड़कर अग्रिम पंक्ति में आ खड़े हुए हैं।

              गत् दिनों नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि उनके या राहुल के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है। यह वास्तविकता भी है कि चाहे वह सोनिया गांधी हों अथवा राहुल गांधी। यह नेता अपनी लोकप्रियता, ग्लैमर तथा आकर्षण के बल पर अपनी जनसभाओं में लाखों लोगों को अपने नाम पर आकर्षित तो ंजरूरत कर सकते हैं तथा करते भी हैं परन्तु मतदान के दिन मतदाताओं को घर से बाहर निकाल कर उन्हें पोलिंग स्टेशन तक पहुंचाने का काम तो आंखिरकार कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ताओं को ही करना पड़ेगा। नुक्कड़, गली कूचों, पंचायत तथा चौपाल स्तर पर विपक्षी दुष्प्रचारों का जवाब तो आंखिरकार कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ही देना होगा। अब यह कांग्रेस संगठन के स्थानीय मुखियाओं पर निर्भर है कि वे कार्यकर्ताओं की ऐसी जुझारु, कर्मठ, ईमानदार एवं समर्पित टीम का गठन करें जो राहुल गांधी रूपी इस दूसरे 'मिस्टर क्लीन' की छवि का समुचित लाभ उठा सकें।      

 

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