शुक्रवार, 11 जनवरी 2008

स्वामीजी-युवाओं के प्रेरणास्रोत

स्वामीजी-युवाओं के प्रेरणास्रोत
सौवज्ञ कार

स्वामी विवेकानंद का जन्म 145 वर्ष पूर्व 12 जनवरी को हुआ। उन्हें 'उच्चतम आध्यात्मिक स्तर के ऐसे योगी के रूप में प्रतिष्ठा मिली, जिन्होंने सत्य का सीधे साक्षात्कार किया, और अपने राष्ट्र एवं मानवता के नैतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के लिए संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।' उन्होंने पूरब और पश्चिम के बीच एक सेतु के रूप में काम किया।

स्वामी जी गहन राष्ट्रवादी थे, और उन्होंने सुदृढ़ भारत की परिकल्पना की थी। वे एक समाज सुधारक, शिक्षाविद् और सबसे ऊपर एक ऐसे मानवतावादी थे, जिन्होंने व्यक्ति की अंतर्निहित महानता पर भरोसा जताया था।

स्वामी जी सबसे पहले ऐसे राष्ट्रवादी चिंतक थे, जिन्होंने भारतीय-इस्लामी अतीत को भारतीय विरासत का हिस्सा बताया था। आखिरकार वे धर्म में सहिष्णुता और उदारतावाद के प्रथम महान भारतीय प्रतिपादक गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे, जिनका यह सूत्र आधुनिक विश्व में धार्मिक सामंजस्य का ब्रह्म वाक्य बन गया था कि 'यत् मत तत् पथ' (अर्थात सभी धर्म ईश्वर की प्राप्ति के मार्ग हैं)।

अंग्रेज इतिहासकार अर्नाल्ड जोसेफ टोन्बी ने कहा था कि रामकृष्ण, ''ने लगभग प्रत्येक भारतीय धर्म और दर्शन का सफलतापूर्वक पालन किया और साथ ही इस्लाम और इसाईयत को भी अपनाया''

10 जून, 1898 को अल्मोड़ा में स्वामी जी ने कहा था कि ''हमारी मात्रभूमि के लिए दोनों महान प्रणालियां, यानी हिंदुत्तव और इस्लाम का मेल ही एक मात्र आशा की किरण है, जहां वेदांती मस्तिष्क और इस्लामी शरीर को स्वीकार किया जाए।'' स्वामी जी का मानना था कि ''व्यावहारिक इस्लाम के बिना, वेदान्तवाद के सिध्दांत व्यापक मानवता के लिए पूरी तरह निरर्थक हैं, भले ही वे कितने ही श्रेष्ठ एवं अद्भुत क्यों न हों।''

स्वामी विवेकानंद का जीवन और संदेश आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का अपरिमित स्रोत है। राष्ट्र उनकी जयंती यानी 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाता है। यह वास्तव में स्वामीजी के प्रति सच्ची श्रद्वांजलि है, जो स्वयं एक तेजस्वी युवा की प्रतिमूर्ति बन गए थे। इस वर्ष 13वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव का आयोजन तमिलनाडू की राजधानी चेन्नई में किया जाएगा। महोत्सव का विषय है, ''प्रगति एवं उत्कृष्टता के लिए युवा।'' राष्ट्रीय युवा महोत्सव के अवसर पर पांच दिन के एक विशाल राष्ट्रीय एकता शिविर का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश के सभी हिस्सों से करीब 4000 युवा हिस्सा लेते हैं। युवाओं की प्रतिभा और रचनात्मक क्षमता को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों (प्रतिस्पर्धात्मक और गैर प्रतिस्पर्धात्मक, दोनों तरह के), युवा सम्मेलन, सुविचार और प्रदर्शनी आदि का आयोजन किया जाता है।

स्वामी विवेकानंद ने वर्गों और जातियों संबंधी सभी प्रकार के भेदभाव पूरी तरह समाप्त करने पर जोर दिया था। उनका कहना था कि ''मैं मानता हूं कि लोगों की उपेक्षा करना सबसे बड़ा राष्ट्रीय पाप है और हमारे पतन के कारणों में से एक यह भी रहा है। किसी भी प्रकार की राजनीति का तब तक कोई लाभ नहीं है, जब तक भारत में जन-जन को सुशिक्षित नहीं कर दिया जाता और उनके लिए पोषाहार एवं देखभाल की समुचित व्यवस्था नहीं कर दी जाती। यदि हम भारत का पुनर्निर्माण करना चाहते हैं, तो हमें उनके लिए अवश्य काम करना होगा।'' स्वामी जी के प्रेरक शब्द आज भी हमारे दिलो दिमाग में गूंजते हैं। राष्ट्र पुनर्निर्माण के अपने कार्यक्रम में उन्होंने जन-जन को शिक्षित बनाने की आवश्यकता को विशेष महत्तव प्रदान किया। उनका कहना था कि शिक्षा परंपरागत अर्थ में धािर्मक नहीं होनी चाहिए, बल्कि वह आध्यात्मिक और विद्ववतापूर्ण होने के साथ साथ वैज्ञानिक और सार्वभौमिक होनी चाहिए। उनके अनुसार समाज के निचले वर्गों की सबसे बड़ी सेवा यह है कि उन्हें ऐसी शिक्षा प्रदान की जाए, जिससे वे ''खोई हुई निजता हासिल करने में सक्षम बन सकें''। उनके अनुसार ''यदि निर्धन शिक्षा तक न पहुंच सके, तो शिक्षा को उनके खेत, फैक्टरी और अन्य किसी भी स्थान तक अवश्य पहुंचाया जाना चाहिए।''

स्वामी जी यह महसूस करते थे कि समाज की समस्त बुराइयों को दूर करने के लिए शिक्षा ही रामबाण औषधि है। उनके ये शब्द विश्वभर में करोड़ों लोगों को प्रेरित करने की दृष्टि से अत्यंत महत्तवपूर्ण थे कि ''शिक्षा ज्ञान की वह मात्रा भर नहीं है, जो आपके मस्तिष्क में डाल दी जाए, और वहां जीवनभर निष्क्रिय रहे। हमें निश्चय ही जीवन बनाने वाले, मानव बनाने वाले, चरित्र बनाने वाले विचारों का संग्रह करना होगा।''

हृदय से समाजवादी होने के नाते स्वामी विवेकानंद ने पुन: जागृत भारत का सपना देखा था। उनका कहना था कि ''कोई राष्ट्र उतनी ही प्रगति करता है, जितना कि उसके जन-जन में शिक्षा और ज्ञान का प्रसार होता है। भारत के पतन का प्रमुख कारण ये रहा है कि समूची शिक्षा और ज्ञान पर मुट्ठी भर लोगों का एकाधिकार रहा है। यदि हमें फिर से उठना है, तो जन-जन तक शिक्षा का प्रसार करना होगा।''

उनकी राय में देश में सभी समाज सुधार आंदोलन विफल रहे, क्योंकि वे समाज के ऊपरी वर्गों में गिने-चुने लोगों तक सीमित रहे और निचले स्तर पर लोगों में उनका प्रसार नहीं हुआ। जब तक जन-जन का रूपांतरण नहीं होगा, तब तक सुधार के ये सभी प्रयास केवल संकीर्ण आधार तक सीमित रहेंगे। राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की उनकी योजना में प्रेरक के रूप में युवाओं, महिलाओं और समाज के निचले वर्गों का विशेष महत्तव था।

स्वामी जी विश्व के विराट व्यक्तित्तवों में से एक थे। शिकागो में धर्म संसद के मंच से उन्होंने मानवता के इस शाश्वत संदेश की घोषणा की थी कि ''मदद करो, लड़ो नहीं,'' ''निर्माण करो, विनाश नहीं,'' ''असहमति नहीं सद्भाव और शांति को अपनाओ।'' उनके प्रति राष्ट्र की उपयुक्त श्रद्वांजलि यही होगी कि हम स्वामी जी के अमर संदेशों पर अमल करें।

॥ लेखक दूरदर्शन समाचार नई दिल्ली, में समाचार संपादक हैं।

 

 

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