मंगलवार, 5 फ़रवरी 2008

पन्ना में दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीवों के संरक्षण की हो रही है जोरदार पहल

पर्यटन

पन्ना में दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीवों के संरक्षण की हो रही है जोरदार पहल

विश्व पर्यटन के नक्शे पर चमक रहा है पन्ना  करीब सोलह हजार सैलानी आते हैं सालाना

पन्ना 4 फरवरी- पूरे विश्व में जीव-जन्तुओं पर डायनासोर के विलुप्त होने के बाद से विलुप्त होने के खतरे को देखते हुए वन्य एवं वन्य जीवों के संरक्षण के तेजी से प्रयास चल रहे हैं। जिसके फलस्वरूप अब देश की भावी पीढी भी लुप्त हो रहे बाघ, तेंदुआ जैसे वन्य जीवों को देख सकेगी। इस दिशा में भारत सरकार और राज्य सरकार की पहल पर  इन वन्य जीवों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय उद्यान पन्ना के संचालक श्री जी0 कृष्णमूर्ति के नेतृत्व में पन्ना टाइगर रिजर्व में भी जोरदार प्रयास किए जा रहे हैं। इसके तहत वन्य जीवों को मानव खतरे से मुक्त रखने के लिए संरक्षित वन्य क्षेत्र में रहने वाले वनवासियों को अन्यत्र बसाया जा रहा है। इसका मकसद विलुप्त प्राय: वन्य जीवों के संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा कर आने वाली पीढी को उससे रूबरू कराना है। रिजर्व प्रबंधन का इन वन्य जीवों को बचाने की दिशा में यह प्रयास मील का पत्थर साबित हो रहा है।

      पन्ना टाइगर रिजर्व के सहायक संचालक श्री व्ही0के0 नगरिया बताते हैं कि एशियन शेर प्रजाति बाघ एवं तेंदुआ नाम की यह प्रजातियां 18 वीं शताब्दी में पृथ्वी पर पाए जाने वाले मांसाहारी वन्य जीवों में सर्वाधिक संख्या में मौजूद थीं। इस प्रजाति के वन्य जीवों को प्रकृति ने अदभुत शक्ति दी थी। 1870 के दशक से शिकार के कारण इनकी संख्या में भारी गिरावट आती गई। धीरे-धीरे पूरे विश्व में कृषि योग्य जमीन के घटने से वनों की कटाई से खेती योग्य जमीन तैयार करने के लिए तेजी से हो रहे प्रयोग के कारण वन्य एवं वन्य जीवों के संरक्षण को लेकर खतरा उत्पन्न हो गया। यह माना जाने लगा कि अगर इसी तरह वन्य एवं वन्य जीवों का क्षरण्ा जारी रहा तो इन प्रजातियों को भावी पीढियों के लिए बचाए रखना मुश्किल होगा।

         जानकारों का मानना था कि संरक्षित क्षेत्रों से दिनोंदिन जैव विविधता खत्म होती जा रही है, क्योंकि उनके चारों तरफ ऐसे क्षेत्र बन गए हैं, जिनपर खेती होती है। श्री नगरिया के मुताबिक बहुत सारे जानवरों के लिए यह जरूरी होता है कि वे एक जगह से दूसरी जगह प्रवास करें, अन्यथा उनके विलुप्त होने का भय हमेशा ही बना रहता है, लेकिन बढते शहरीकरण के कारण आज वैसे क्षेत्र नहीं बच गए, जहां वे प्रवास कर सकें। इस खतरे से निपटने के लिए संरक्षित क्षेत्रों से लोगों को हटाकर गैर संरक्षित क्षेत्रों में बसाने की पहल शुरू की गई।

         इसी श्रृंखला में तेजी से नष्ट हो रहे वन क्षेत्र तथा वन्य प्राणियों को बचाने के लिए कई रिजर्व परियोजनाएं शुरू की गईं। 1981 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान अस्तित्व में आया। फिर बाघों को बचाए रखने तथा उन्हें हमेशा के लिए संरक्षित करने के मकसद से 1994 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को बाघ संरक्षित परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व) घोषित किया गया। यह देश की 22 वीं एवं राज्य की पांचवीं बाघ संरक्षित परियोजना है। प्रदेश के पांच बाघ रिजर्वों में पन्ना टाइगर रिजर्व की प्रमुख जगह है। जैविक दबाव को कम से कम करने के लिए इस रिजर्व में बसे गांवों को नए सिरे से बसाने का काम शुरू किया गया है। इसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं। श्री कृष्णमूर्ति के मुताबिक संरक्षण के उपायों के फलस्वरूप वन्य जीवों की संख्या में वृद्वि आंकी गई है।

         विश्व पर्यटन के नक्शे पर आज पन्ना टाइगर रिजर्व चमचमा रहा है और दुर्लभ वन्य प्राणियों को देखने के लिए संसार भर से लोग यहां खिंचें चले आ रहे हैं। रिजर्व की खूबसूरत वादियों में घूमने के लिए हर वर्ष करीब दस हजार देशी और पांच से छ: हजार विदेशी सैलानी आते हैं। 542.67 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस क्षेत्र में बाघ, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, भूरी चित्तीदार बिल्ली, लकडबग्घा, जंगली कुत्ता (सोनकुत्ता) भेडिया, सियार, रीछ, सांभर, चित्तीदार हिरण या चीतल, चिंकारा, नीलगाय, चौसिंगा, सई और लुप्त हो चुके एशियाई चीते का करीबी रिश्तेदार स्याहगोश, जंगली सुअर, लंगूर, गोह, अजगर, कोबरा के अलावा केन नदी के घडियाल और मगरमच्छ भी पाए जाते हैं। पन्ना अभ्यारण्य में बगुला, गुलबदना, फाख्ता, मोर, बटेर, तीतर, टुंटूयां, तोता, टिटहरी, मलहत, मौखिया, शक्कर खोरा, कलचिडी, नीलकंठ, डोगरा चील, भटतीतर, कोतवाल, पवई मैना, नौरंग, लटूरा, राज्यपक्षी का दर्जा हासिल बुलबुल पोस्ता भी सहजता के साथ देखे जा सकते है।

        बाघों की इस प्रमुख भूमि पर कई बाघों का निवास है। उत्तरी मध्यप्रदेश की विन्ध्य पहाडियों पर स्थित इस क्षेत्र का प्रवेश द्वार मडला तथा हिनौता है। इन दोनों स्थानों पर साधारण पर्यटक निवास हैं। झांसी, खजुराहो, सतना तथा कटनी से पन्ना टाइगर रिजर्व पहुंचा जा सकता है। रिजर्व क्षेत्र में नजर रखने के लिए 42 निगरानी कैम्प एवं 33 निगरानी टावर कार्यरत हैं तथा हाथियों से भी गश्त की जाती है।

 

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