शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

भाजपा नेताओं ने सहकारी संस्थाओं को बना डाला अपना चरागाह, म.प्र. में सहकारिता आंदोलन मृत प्राय: हो चुका है : कांग्रेस

भाजपा नेताओं ने सहकारी संस्थाओं को बना डाला अपना चरागाह
म.प्र. में सहकारिता आंदोलन मृत प्राय: हो चुका है : कांग्रेस के सहकारिता प्रकोष्ठ की राय
 
भोपाल 08 अक्टूबर । प्रदेष कांग्रेस द्वारा हाल ही में गठित सहकारिता प्रकोष्ठ की प्रथम बैठक विगत दिवस प्रकोष्ठ के अध्यक्ष पूर्व मंत्री भगवानसिंह यादव की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस बैठक में प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष और विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की विषेष उपस्थिति में पारित एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव में आरोप लगाया गया है कि कांग्रेस के शासनकाल में ठीक से काम कर रही सहकारी संस्थाओं को भाजपा नेताआें ने अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के खातिर चारागाह बना डाला है। इसके साथ ही इन संस्थाओं को अब कांग्रेस के पूर्व पदाधिकारियों से राजनीतिक शत्रुता निकालने का अखाड़ा बना दिया गया है। इसी कारणये संस्थाएं अब कृषकों और समाज के कमजोर वर्गों की मदद का साधन नहीं रह गई हैं।
पूर्व सहकारिता मंत्री एवं कांग्रेस के विधायक डॉ. गोविंदसिंह भी इस बैठक में उपस्थित थे। बैठक में सर्वानुमति से पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि भाजपा की गलत नीतियों के कारण म.प्र. में सहकारिता आंदोलन मृत प्राय: हो चुका है। कांग्रेस के शासनकाल में खनिज, कृषि, गृह निर्माण, दुग्ध उत्पादन, मत्स्य पालन, आवास आदि के क्षेत्र में जो सहकारी संस्थाएं अच्छा काम कर रही थीं, वे भी बर्बादी के कगार पर पहुंच गई हैं। आवास संघ के माध्यम में 50 करोड़ के फर्जी ऋण वितरण करने वाले और खनिज रायल्टी की चोरी करने वाले अधिकारियों को भाजपा शासन द्वारा बचाया जा रहा है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का जिक्र करते हुए प्रस्ताव में सहकारी प्रकोष्ठ ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सामग्री को प्रदेष भर में काले बाजार में बिकवा रही है। मुख्य मंत्री ने भी पिछले दिनों इस सच को स्वयं स्वीकार किया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सहकारी संस्थाओं को होने वाली हानि की कांग्रेस शासनकाल में जो क्षतिपूर्ति की जाती थी-वह भाजपा ने रोक दी है। वर्ष 2004 से अब तक लगभग 140 करोड़ की क्षतिपूर्ति की राषि भाजपा सरकार दबाये बैठी है। राज्य सरकार के इस रवैये के कारण सहकारी संस्थाओं की कमर टूट गई है।
समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी को ''भ्रष्टाचार का पर्याय'' बताते हुए प्रस्ताव में आरोप लगाया गया है कि पिछले सीजन में समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी को लेकर कृषकों को भाजपा सरकार ने खूब परेषान किया। समय पर भंडारण, बारदाना और भुगतान की व्यवस्था न की जाने से कृषकाें को अपना गेहूं कम मूल्य पर व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा था। यही गेहूं बाद में ऊंचे दामों पर समर्थन मूल्य के नाम पर सरकार ने खरीद कर व्यापारियों को भरपूर कमाई का अवसर दिया है।
प्रस्ताव में राज्य सरकार को चेतावनी दी गई है कि सहकारिता के क्षेत्र में वह अपनी मनमानी बंद करे। यदि उसके कुचक्र इसी तरह जारी रहे तो कांग्रेस प्रदेषव्यापी आंदोलन करेगी।  

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