मंगलवार, 31 मार्च 2015

राजपूतों की हुंकार में गरजा चम्बल का शेर , दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर का वंशज नरेन्द्र सिंह तोमर

दशहरा महोत्सव - हजारों हजार (करीब सवा लाख)  राजपूतों का सम्मेलन - तंवरावाटी , सरूण्ड ग्राम - राजस्थान  ओलम्प‍िक में निशानेबाजी के स्वर्ण पदक विजेता  ( मंचासीन - वर्तमान मंत्री - भारत सरकार)  जयपुर सांसद कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर, जोधपुर विश्व विद्यालय के कुलपति एल.एस. राठौर, जोधपुर विश्व विद्यालय के स्पोर्टस डीन एल.एस. शक्तावत, पाटन दरबार राजा साहब राव दिग्व‍िजय सिंह तोमर, राजकुमार रूद्रावत सिंह तोमर , कर्नल वीरेन्द्र सिंह तंवर , कुंअर जय सिंह तोमर (मंडोली- गॉंव का नाम मंडोली है , जयपुर में जय सिंह मंडोली के नाम से ही मशहूर हस्ती हैं, )  तथा अन्य राजपूत राजा महाराजा , सम्मेलन में शामिल अन्य सभी हजारों हजार राजपूत सरदार एवं इंडियन आर्मी के अनेक कर्नल एवं लेफ्टी. कर्नल  गण नीचे सम्मेलन की सभा में आसन ग्रहण किये हुये हैं )

रविवार, 29 मार्च 2015

महाभारत सम्राट दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की दिल्ली से चम्बल में ऐसाहगढ़ी तक की यात्रा और ग्वालियर में तोमर साम्राज्य

महाभारत सम्राट दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की दिल्ली से चम्बल में ऐसाहगढ़ी तक की यात्रा और ग्वालियर में तोमर साम्राज्य
पांडवों की तीन भारी ऐतिहासिक भूलें और बदल गया समूचे महाभारत का इतिहास
भारत नाम किसी भूखंड या देश का नहीं , एक राजकुल का है, जानिये क्यों कहते हैं तोमरों को भारत
नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनंद'' ( एडवोकेट )
Gwalior Times
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चम्बलघाटी सनातन धर्म के प्रचंड व तेजस्वी महाभारत सम्राट और समस्त विश्व भूमंडल के अंतिम चक्रवर्ती सम्राट पांडव अर्जुन के वंशज दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर  की दिल्ली का राज सिंहासन त्यागने के बाद अगली राजधानी और अंतिम पड़ाव और दिल्ली सलतनत का अगला अध्याय, सनातन धर्म की बुनियाद और रक्षा का अंतिम निशान ।
धर्म को लेकर अक्सर विवाद पैदा होता है, लोग अनेक संप्रदाय और पंथों को धर्म कह कर पुकारते हैं, मगर धर्म असल में क्या है और धर्म की असल परिभाषा क्या है , यह सब जानने के लिये हमें भारत के असल इतिहास की ओर अपना ध्यान और स्मृति को काफी पीछे तक खींचना होगा । हमें सनातन धर्म के शास्त्रों में वर्ण‍ित सतयुग , त्रेता युग, द्वापर युग और कलयुग तक भारत के समूचे इतिहास पर न केवल विहंगम सिंहावलोकन व दृष्ट‍िपात करना होगा , बल्क‍ि बहुत गहराई से भारत के असली इतिहास को जानना व समझना होगा । हमें अपने शास्त्रों व ग्रंथों की ओर ही मुख मोड़ना होगा । तभी हम भारत को महाभारत को और उसके असल इतिहास को जान पायेंगें ।
भारत का इतिहास न केवल पूरा का पूरा समूचा बदल दिया गया है बल्क‍ि उसका बहुत लंबा चौड़ा फर्जीकरण कर कभी पैसों व धन के बल पर तो कभी चाटुकारों , चापलूसों से जिन्हें भांड़ या भाट या चारण कहा पुकारा जाता है , दुर्भाग्यवश वही नकली फर्जी इतिहास उन फर्जी मनगढ़ंत व काल्पनिक राजाओं के चारण भाटों और धन पाकर इतिहास लिखने वालों ने कूटरचित एवं विद्रूपित काल्पनिक इतिहास रच डाला है, यह भी दुखद है कि भारत के स्कूलों से लेकर महाविद्यालयीन और विश्वविद्यालयीन छात्रों को वही फर्जी व कूटरचित नकली इतिहास पढ़ाया जाता है ।
भारत में सतयुग , त्रेता, द्वापर और कलयुग के करीब चार हजार साल तक भारत का इतिहास एकदम सही व सटीक मिलता है , जोभी भारत के इतिहास में गड़बड़ी होती है वह विगत करीब एक हजार वर्ष से मिलती है ।
सत्ता लोलुप ख्वाहिशमंदों ने भारत के इतिहास की असल कूटरचना सोलहवीं सदी के बाद की । राजपूत राजा महाराजाओं के तमाम दास और सेवक तथा अनुचर किसी भी राजा महाराजा के न रहने या उनके अभाव में स्वयं को पहले मुगलों का गुलाम , फिर अंग्रेजों का गुलाम कह कर उनकी दासता व गुलामी कर करें श्री व संपत्त‍ि एकत्र कर दबे चुपके पहले स्वयं को राजा और फिर महाराजा बताने कहने लगे ।
असल राजवंश और असल राजपूत राजा अपे गॉंवों , खेतों किसानी जैसे कामों में व्यस्त बने रहे , उधर देश में दासों अनुचरों से एक नई राजा महाराज की फसल उग गई, चाटुकारों ने भी उनका नाम राजा या महाराज रख दिया । लिहाजा वे राजा ये महाराजा बन गये ।
कलयुग में भारत के इतिहास को तीन भागों में बांटा जाना अपरिहार्य व समुचित है ।
प्रथम भाग भारत के इतिहास का महाभारत सम्राट दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर के दिल्ली के शासनकाल तक , दूसरा भाग प्थ्वीराज सिंह चौहान , मोहम्मद गौरी से लेकर मुगल शासनकाल तक का, और तीसरा भाग गुलाम भारत के दासों, अनुचरों के गुलाम और राजा बनने का । चौथे भाग की बात यदि की जाये कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का , तो वस्तुत: यदि आज के परिवेश में देखें तो न तो भारत ऐसा कभी गुलाम हुआ और न भारत कभी ऐसा आजाद हुआ । यदि भारत गुलाम था तो आज तक जस का तस गुलाम है, और यदि भारत अंग्रेजों या मुगलों के दौर में आजाद  था तो भी आज तक जस का तस आजाद है । यह प्रश्न लाजिम है कि क्या मुगल शासन काल में भारत में स्वतंत्रता संग्राम या आजादी की लड़ाई किसी ने नहीं लड़ी ।  
क्रमश: अगले अंक में जारी .......