औषधीय पौधों की खेती से किसानों को लाभ ही लाभ
ग्वालियर 8 अप्रैल 09। भारत के 95 प्रतिशत किसान परम्परागत गेहूँ और धान की खेती मुख्य रूप से करते हैं, जिससे उन्हें कम लाभ होता है। मशीनीकरण के कारण खेती में लागत 40 प्रतिशत बढ़ गई है। 25 साल पहले खेती बैंलों के माध्यम से होती थी, उससे काम तो धीमा होता था, मगर लागत कम आती थी।
इसके अलावा भारतीय कृषि का बीमा न होने के कारण बाढ़, सूखा और ओलावृष्टि क कारण प्राय: किसानों को भारी क्षति उठाना पड़ती है। धीरे-धीरे किसानों के लिये खेती का धन्धा जोखिम का क्षेत्र बनता जा रहा है। फलत: किसानों ने विकल्प की खोज शुरू कर दी है। वे गुजरात के किसानों की भाँति नगदी फसलों जैसे-गन्ना, कपास,सोयाबीन, मूँगफली तथा औषाधीय व सुगन्धित पौधों की खेती पर जोर देने लगे हैं। इससे उनकी माली हालत भी सुधर रही है।
किसान अन्नदाता है। उसकी परेशानी, सबकी परेशानी है। देश की सम्पूर्ण जनता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। देश की आबादी का 70 प्रतिशत किसान है।
किसान सफेद मूसली, अश्वगंधा, कौंच, बच, सतावर, कालिन्दी, कालामेघ जैसे औषधीय पौधे, जापानी पोदीना, लेमन ग्रास, जावा सिट्रोनेला, पामा रोजा सदृश सुगन्धित पौधों की खेती करके लाभ कमा सकते हैं तथा अपना जीवन स्तर सुधार सकते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सफेद मूसली की खेती में मात्र 6 से 8 माह लगते हैं तथा 5 हजार का प्रति एकड़ प्रतिवर्ष आय हो सकती है। इसी प्रकार अश्वगंधा की खेती में मात्र 6 महीने लगते हैं और 20 हजार रूपये अधिक प्रतिएकड़ प्रतिवर्ष आय हो सकती है। इसी प्रकार कौंच की खेती से प्रगतिशील किसान मात्र 6 माह में फसल तैयार कर प्रतिवर्ष प्रतिहेक्टेयर 15 से रूपये से अधिक शुध्द आय प्राप्त कर सकते हैं। इसी प्रकार वार्षिक फसल कलिहारी से किसान प्रतिवर्ष प्रतिहेक्टेयर 25 हजार रूपये से अधिक की आय प्राप्त कर सकते हें। इसी प्रकार कालामेघ, शतावर और बच जैसे औषधीय पौधों से हर साल किसान क्षमतानुसार 10 से 20 हजार रूपये वार्षिक आय अर्जित कर सकते हैं। इन पौधों से बेशकीमती आयुर्वेदीय औषाधियाँ बनती हैं।
इसी प्रकार प्रगतिशील किसान जापानी पोदीना, लेमनग्रास, जावा सिन्ट्रोलेना जैसे सुगन्धित पौघौं की खेती करके हर साल प्रतिएकड़ 15 से 25 हजार रूपये धन उपार्जन कर सकते हैं और खेती को लाभ का धंधा बना सकते हैं।
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