क्रिसमस पर विशेष
संता से मांगी एक ’विश’ मुहब्बत की
-फ़िरदौस ख़ान
यह
हमारे देश की सदियों पुरानी परंपरा रही है कि यहां सभी त्यौहारों को
मिलजुल कर मनाया जाता है. हर त्यौहार का अपना ही उत्साह होता है- बिलकुल ईद
और दिवाली की तरह. क्रिसमस ईसाइयों के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में
से एक है. इसे ईसा मसीह के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाता है. क्रिसमस को
बड़े दिन के रूप में भी मनाया जाता है. क्रिसमस से 12 दिन का उत्सव
क्रिसमसटाइड शुरू होता है. ‘क्रिसमस’ शब्द ‘क्राइस्ट्स और मास’ दो शब्दों
से मिलकर बना है, जो मध्य काल के अंग्रेज़ी शब्द ‘क्रिस्टेमसे’ और पुरानी
अंग्रेज़ी शब्द ‘क्रिस्टेसमैसे’ से नक़ल किया गया है. 1038 ई. से इसे
‘क्रिसमस’ कहा जाने लगा. इसमें ‘क्रिस’ का अर्थ ईसा मसीह और ‘मस’ का अर्थ
ईसाइयों का प्रार्थनामय समूह या ‘मास’ है. 16वीं शताब्दी के मध्य से
‘क्राइस्ट’ शब्द को रोमन अक्षर एक्स से दर्शाने की प्रथा चल पड़ी. इसलिए अब
क्रिसमस को एक्समस भी कहा जाता है. भारत सहित दुनिया के ज़्यादातर देशों
में क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया जाता है, लेकिन रूस, जार्जिया, मिस्त्र,
अरमेनिया, युक्रेन और सर्बिया आदि देशों में 7 जनवरी को लोग क्रिसमस मनाते
हैं, क्योंकि पारंपरिक जुलियन कैलंडर का 25 दिसंबर यानी क्रिसमस का दिन
गेगोरियन कैलंडर और रोमन कैलंडर के मुताबिक़ 7 जनवरी को आता है. हालांकि
पवित्र बाइबल में कहीं भी इसका ज़िक्र नहीं है कि क्रिसमस मनाने की परंपरा
आख़िर कैसे, कब और कहां शुरू हुई. एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर
यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था. 25 दिसंबर यीशु मसीह के जन्म की
कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं है.शोधकर्ताओं का कहना है कि ईसा मसीह
के जन्म की निश्चित तिथि के बारे में पता लगाना काफ़ी मुश्किल है. सबसे पहले
रोम के बिशप लिबेरियुस ने ईसाई सदस्यों के साथ मिलकर 354 ई. में 25 दिसंबर
को क्रिसमस मनाया था. उसके बाद 432 ई. में मिस्त्र में पुराने जुलियन
कैलंडर के मुताबिक़ 6 जनवरी को क्रिसमस मनाया गया था. उसके बाद धीरे-धीरे
पूरी दुनिया में जहां भी ईसाइयों की तादाद ज़्यादा थी, यह त्योहार मनाया
जाने लगा. छठी सदी के अंत तक इंग्लैंड में यह एक परंपरा का रूप ले चुका
था.
ग़ौरतलब है ईसा मसीह के जन्म के बारे
में व्यापक रूप से स्वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा के मुताबिक़ प्रभु ने मैरी
नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा. गैब्रियल ने
मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी और बच्चे का नाम जीसस
रखा जाएगा. वह बड़ा होकर राजा बनेगा, तथा उसके राज्य की कोई सीमाएं नहीं
होंगी. देवदूत गैब्रियल, जोसफ़ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक
बच्चे को जन्म देगी, और उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे व उसका
परित्याग न करे. जिस रात को जीसस का जन्म हुआ, उस वक़्त लागू नियमों के
मुताबिक़ अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिए
रास्ते में थे. उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात
को जीसस को जन्म दिया और उसे एक नांद में लिटा दिया. इस प्रकार जीसस का
जन्म हुआ. क्रिसमस समारोह आधी रात के बाद शुरू होता है. इसके बाद मनोरंजन
किया जाता है. सुंदर रंगीन वस्त्र पहने बच्चे ड्रम्स, झांझ-मंजीरों के
आर्केस्ट्रा के साथ हाथ में चमकीली छड़ियां लिए हुए सामूहिक नृत्य करते
हैं.
क्रिसमस का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि
ईसा मसीह के जन्म की कहानी का संता क्लॉज की कहानी के साथ कोई रिश्ता नहीं
है. वैसे तो संता क्लॉज को याद करने का चलन चौथी सदी से शुरू हुआ था और वे
संत निकोलस थे, जो तुर्किस्तान के मीरा नामक शहर के बिशप थे. उन्हें बच्चों
से अत्यंत प्रेम था और वे ग़रीब, अनाथ और बेसहारा बच्चों को तोहफ़े दिया
करते थे.
पुरानी कैथलिक परंपरा के मुताबिक़ क्रिसमस की रात को
ईसाई बच्चे अपनी तमन्नाओं और ज़रूरतों को एक पत्र में लिखकर सोने से पूर्व
अपने घर की खिड़कियों में रख देते थे. यह पत्र बालक ईसा मसीह के नाम लिखा
जाता था. यह मान्यता थी कि फ़रिश्ते उनके पत्रों को बालक ईसा मसीह से
पहुंचा देंगे. क्रिसमस ट्री की कहानी भी बहुत ही रोचक है. किवदंती है कि
सर्दियों के महीने में एक लड़का जंगल में अकेला भटक रहा था. वह सर्दी से
ठिठुर रहा था. वह ठंड से बचने के लिए आसरा तलाशने लगा. तभी उसकी नजर एक
झोपड़ी पर पड़ी. वह झोपडी के पास गया और उसने दरवाजा खटखटाया. कुछ देर बाद
एक लकड़हारे ने दरवाजा खोला. लड़के ने उस लकड़हारे से झोपड़ी के भीतर आने
का अनुरोध किया. जब लकड़हारे ने ठंड में कांपते उस लड़के को देखा, तो उसे
लड़के पर तरस आ गया और उसने उसे अपनी झोपड़ी में बुला लिया और उसे गर्म
कपड़े भी दिए. उसके पास जो रूख-सूखा था, उसने लड़के को बभी खिलाया. इस
अतिथि सत्कार से लड़का बहुत खुश हुआ. वास्तव में वह लड़का एक फ़रिश्ता था और
लकड़हारे की परीक्षा लेने आया था. उसने लकड़हारे के घर के पास खड़े फ़र के
पेड़ से एक तिनका निकाला और लकड़हारे को देकर कहा कि इसे ज़मीन में बो दो.
लकड़हारे ने ठीक वैसा ही किया जैसा लड़के ने बताया था. लकडहारा और उसकी
पत्नी इस पौधे की देखभाल अकरने लगे. एक साल बाद क्रिसमस के दिन उस पेड़ में
फल लग गए. फलों को देखकर लकड़हारा और उसकी पत्नी हैरान रह गए, क्योंकि ये
फल, साधारण फल नहीं थे बल्कि सोने और चांदी के थे. कहा जाता है कि इस पेड़
की याद में आज भी क्रिसमस ट्री सजाया जाता है. मगर मॉडर्न क्रिसमस ट्री
शुरुआत जर्मनी में हुई. उस समय एडम और ईव के नाटक में स्टेज पर फर के पेड़
लगाए जाते थे. इस पर सेब लटके होते थे और स्टेज पर एक पिरामिड भी रखा जाता
था. इस पिरामिड को हरे पत्तों और रंग-बिरंगी मोमबत्तियों से सजाया जाता था.
पेड़ के ऊपर एक चमकता तारा लगाया जाता था. बाद में सोलहवीं शताब्दी में फर
का पेड़ और पिरामिड एक हो गए और इसका नाम हो गया क्रिसमस ट्री अट्ठारहवीं
सदी तक क्रिसमस ट्री बेहद लोकप्रिय हो चुका था. जर्मनी के राजकुमार अल्बर्ट
की पत्नी महारानी विक्टोरिया के देश इंग्लैंड में भी धीरे-धीरे यह
लोकप्रिय होने लगा. इंग्लैंड के लोगों ने क्रिसमस ट्री को रिबन से सजाकर और
आकर्षक बना दिया. उन्नीसवीं शताब्दी तक क्रिसमस ट्री उत्तरी अमेरिका तक जा
पहुंचा और वहां से यह पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गया. क्रिसमस के मौक़े
पर अन्य त्यौहारों की तरह अपने घर में तैयार की हुई मिठाइयां और व्यंजनों
को आपस में बांटने व क्रिसमस के नाम से तोहफ़े देने की परंपरा भी काफ़ी
पुरानी है. इसके अलावा बालक ईसा मसीह के जन्म की कहानी के आधार पर बेथलेहम
शहर के एक गौशाले की चरनी में लेटे बालक ईसा मसीह और गाय-बैलों की
मूर्तियों के साथ पहाड़ों के ऊपर फ़रिश्तों और चमकते तारों को सजा कर
झांकियां बनाई जाती हैं, जो दो हज़ार साल पुरानी ईसा मसीह के जन्म की याद
दिलाती हैं.
दिसंबर का महीना शुरू होते ही
क्रिसमस की तैयारियां शुरू हो जाती हैं . गिरजाघरों को सजाया जाता है. भारत
में अन्य धर्मों के लोग भी क्रिसमस के उत्सव में शामिल होते हैं. क्रिसमस
के दौरान प्रभु की प्रशंसा में लोग कैरोल गाते हैं. वे प्रेम और भाईचारे का
संदेश देते हुए घर-घर जाते हैं. भारत में विशेषकर गोवा में कुछ लोकप्रिय
चर्च हैं, जहां क्रिसमस बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. इनमें से
ज़्यादातर चर्च भारत में ब्रिटिश वऔरपुर्तगाली शासन के दौरान बनाए गए थे.
इनके अलावा देश के अन्य बड़े भारत के कुछ बड़े चर्चों मे सेंट जोसफ़
कैथेड्रिल, आंध्र प्रदेश का मेढक चर्च, सेंट कैथेड्रल, चर्च ऑफ़ सेंट
फ्रांसिस ऑफ़ आसीसि और गोवा का बैसिलिका व बोर्न जीसस, सेंट जांस चर्च इन
विल्डरनेस और हिमाचल में क्राइस्ट चर्च, सांता क्लाज बैसिलिका चर्च, और
केरल का सेंट फ्रासिस चर्च, होली क्राइस्ट चर्च, महाराष्ट्र में माउन्ट
मेरी चर्च, तमिलनाडु में क्राइस्ट द किंग चर्च व वेलान्कन्नी चर्च, और
आल सेंट्स चर्च और उत्तर प्रदेश का कानपुर मेमोरियल चर्च शामिल हैं.
बहरहाल, देश के सभी छोटे-बड़े चर्चों में रौनक़ है.
तीज-त्यौहार
ख़ुशियां लाते हैं. और जब बात क्रिसमस की हो, तो उम्मीदें और भी ज़्यादा बढ़
जाती हैं. माना जाता है कि क्रिसमस पर सांता क्लाज़ आते हैं और सबकी ’विश’
पूरी करते हैं. आज के दौर में जब नफ़रतें बढ़ रही हैं, तो ऐसे में मुहब्बत की
विश की ज़रूरत है, ताकि हर तरफ़ बस मुहब्बत का उजियारा हो और नफ़रतों का
अंधेरा हमेशा के लिए छंट जाए. हर इंसान ख़ुशहाल हो, सबका अपना घरबार हो,
सबकी ज़िन्दगी में चैन-सुकून हो. (स्टार न्यूज़ एजेंसी)
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