बुधवार, 17 नवंबर 2010

एक मूर्खतापूर्ण सरकारी फरमान से लोग परेशान, सरकारी दफ्तर ठप्‍प

एक मूर्खतापूर्ण सरकारी फरमान से लोग परेशान, सरकारी दफ्तर ठप्‍प

मुरैना 17 नवम्‍बर 2010 , कभी कभी कुछ मूर्खतापूर्ण सरकारी फरमान न केवल आम जनता के लिये परेशानी का सवब बन जाते हैं बल्कि खद सरकारी कामकाज को ही ठप्‍प करा देते हैं । ऐसा ही एक विचित्र सरकारी फरमान पिछले एक साल से मुरैना में जिला प्रशासन ने जारी करके न केवल जिले के व्‍यावसायियों को चौपट करने के कगार पर ला खड़ा किया है बल्कि मुरैना के सरकारी कार्यालयों में कुर्सियॉं खाली रहने का भी सवब बन गया है ।

गुमाश्‍ता एक्‍ट या शॉप एक्‍ट के तहत लगभग एक साल पहले जिला प्रशासन ने मुरैना में रविवार को सभी दूकानें व प्रतिष्‍ठान बन्‍द रखने का या जबरदस्‍ती बन्‍द कराने का एक मूर्खतापूर्ण फरमान न केवल जारी ही कर दिया बल्कि डण्‍डे के जोर से जबरन इसे लागू भी करा दिया ।

हुआ ये कि बकौल भारत सरकार और मध्‍यप्रदेश सरकार की वर्षो पुरानी पारम्परिक सोच और रिवाज के मुताबिक लोगों को हफ्ते में एक तयशुदा दिन का अवकाश यानि रविवार का पारम्‍परिक अवकाश दिया जाता है । वह इसलिये कि लोग हफ्ते भर की थकान और सुस्‍ती दूर कर लें अपने परिवार को थोड़ा वक्‍त दे सके उनकी जरूरतें पूरी कर सकें तथा साथ ही अपने अवश्‍यक घरेलू कामकाज व खरीददारी आदि भी कर सकें ।

बकौल हुक्‍म ए जिला प्रशासन मुरैना इसी घोषित पारम्‍परिक रकारी अनिवार्य अवकाश को सारा शहर मुरैना इस दिन बन्‍द रहता है । लोग जो हफ्ते भर बाद अपने या अपने परिवार के लिये जरूरत का कुछ भी सामान खरीदना चाहें तो या बाजार घूना चाहें तो सारा का शहर और दूकानें बन्‍द देखकर यहॉं तक कि पान की दूकानें और चाय ठेले तथा सब्‍जी भाजी तक की दूकानें बन्‍द पाकर मुँह बाये घर वापस आने के और कोई चारा नहीं रहता ।

हालांकि ग्‍वालियर जैसे बड़े शहर में भी सप्‍ताह के अलग अलग दिन अलग अलग बाजार बन्‍द रखने का नियम है जैसे बाड़ा मंगलवार को तो लोहिया बाजार या अन्‍य बाजार अन्‍य दिन को लेकिन मुरैना का हाल ये है कि समूचा शहर एक ही दिन को पूरी तरह बन्‍द और वह भी रविवार को ।

परिणाम ये होता है कि रविवार को शहर में त्राहि त्राहि मच जाती है । सभी चाय पानी और सब्‍जी भाजी तक को तरस जाते हैं ।

केवल आम जनता ही इससे परेशान हो ऐसा नहीं है, सरकारी कर्मचारी भी इसी दिन इसी हाल से गुजरते हैं । प्रायवेट कार्यालयों के कर्मचारीयों और फैक्‍ट्री मजदूरों का हाल तो इससे भी बुरा है । उनका साप्‍ताहिक अवकाश लगभग पूरी तरह बेकार ही जाता है । मजे की बात ये है कि इसका परिणाम ये है कि सरकारी गाडि़यों में साहबों की बीवियॉं , साहब और उनके बच्‍चे साप्‍ताह के अन्‍य दिनों में दिन भर न केवल मुरैना शहर की दूकानों में मटरगश्‍ती करते हैं बल्कि सरकारी दफ्तर और सरकारी कामकाज छोड़कर घरेलू खरीददारी और बाजारी काम काज में लगे रहते हैं , मौके नजाकत और हालात का लाभ उठाकर अफसरों की देखा देखी नीचे के मातहत कर्मचारी भी साहब , साहब की बीवी और साब के जरखरीद गुलामों की देखा देखी साहब के पग चिह्नों पर चल पड़ते हैं , और सरकारी कार्यालय और सीट कामकाज छोड़कर फरार रहते हैं ।   

 

1 टिप्पणी:

Arvind Mishra ने कहा…

यह तो ठीक नहीं ....