बुधवार, 15 अप्रैल 2015

शनीश्चरी अमावस्या 18 अप्रेल को बहुत ही थोड़े समय के लिये वह भी शाम के बाद और रात के वक्त रहेगी, शनि मंदिर में दर्शन संभव किन्तु अन्य कारणों से अमावस्या बिद्धा तिथि‍ रहेगी और उदयकालीन तिथि‍ नहीं रहेगी अबकी बार 18 अप्रेल को शनीश्चरी अमावस्या - नरेन्द्र सिंह तोमर ‘’आनंद’’



शनीश्चरी अमावस्या 18 अप्रेल को बहुत ही थोड़े समय के लिये वह भी शाम के बाद और रात के वक्त रहेगी, शनि मंदिर में दर्शन संभव किन्तु अन्य कारणों से
अमावस्या बिद्धा तिथि‍ रहेगी और उदयकालीन तिथि‍ नहीं रहेगी अबकी बार 18 अप्रेल को शनीश्चरी अमावस्या
नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनंद’’
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शनिवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या की तिथि‍ को शनीश्चरी अमावस्या कहा जाता है और शनीश्चरी अमावस्या को शनिदेव का दर्शन पूजन दान , मान मनौती आदि करना बहुत शुभ माना जाता है । भारतवर्ष और विदेशों में लोग सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या जिसे ‘’सोमवती अमावस्या’’ कहा जाता है में तीर्थ जल स्नान व गंगा स्नान को बहुत पुण्यप्रद व धर्म अर्थ मोक्षादि प्राप्त‍ि हेतु सर्वोत्तम माना जाता है , वहीं शनीवार को पड़ने वाली शनीश्चरी अमावस्या को शनि पूजा, दान, दर्शन, मान मनौती आदि करने के लिये सर्वोत्म माना जाता है ।
इसी प्रकार मंगलवार को पड़ने वाली ‘’भौमवती अमावस्या’’ या शुक्रवती अमावस्या या रविती अमावस्या जो कि रविवार को रहती है , इन सबके अलग अलग अर्थ, फल , धर्म , पुण्य विधान मान्य व प्रचलित है ।
किन्तु सबमें कई चीजें महत्वपूर्ण हो जातीं हैं, मसलन ग्रह स्थ‍िति गणना, नक्षत्र स्थि‍तियां , तिथि‍ की स्थ‍िति, वार आदि की स्थ‍िति , कुल मिलाकर ज्योतिषीय गणना , तंत्रिक गणनायें  इत्यादि , अन्यथा सब व्यर्थ हो जाता है ।
फिलवक्त आने वाली 18 अप्रेल को पड़ने जा रही शनीश्चरी अमावस्या का जिक्र ही इस आलेख की विषवस्तु है । ज्योतिषीय व तांत्रिकीय स्थि‍ति के अनुसार शनिवार 18 अप्रेल को यह उदयकालीन तिथि‍ के रूप में अमावस्या के रूप में नहीं पड़ रही है बल्क‍ि बिद्वा तिथि‍ हो जाने और चतुर्दशी तिथि‍ का क्षय हो जाने के कारण और त्रयोदशी तिथि‍ का कालक्रम बढ़ जाने के कारण इस अमावस्या तिथि‍ का 18 अप्रेल की उदयकाल रात्रि में चला गया है । और रात्रिकाल में यह तिथि‍ में 12 बजकर 26 मिनिट पर उदय होगी , जबकि मुरैना के हिसाब ( शनीश्चरा मंदिर चूकि मुरैना में शनि पर्वत पर स्थापित है , इसलिये मुरैना की तिथि‍ काल गणना मान्य की जायेगी , यह तिथि‍ उदयकाल मुरैना में रात्रि 12 बजकर 06 मिनिट पर होगा ।  जबकि चंद्र राशि‍ परिवर्तन प्रवेश काल सायं 5 बजकर 21 मिनिट पर और मुरैना के हिसाब से सायं 5 बजकर 01 मिनिट पर होगा ।
सूर्य और चन्द्र एकस्थ राशी होकर एक ही अंश पर होने से अमावस्या तिथि‍ का निर्माण व प्रचलन होता है । इसके ठीक उलट विपरीतस्थ आमुख सामुख समान अंश होने पर पूर्ण‍िमा तिथि‍ बनती है ।
इस समय चूंकि 14 अप्रेल को सूर्य का राशि‍ संक्रमण (संक्रान्ति‍)   हुआ है और राशि‍ परिवर्तन कर मेषस्थ हुये हैं , जबकि चन्द्रमा का राशि‍ संक्रमण ( चान्द्र संक्रान्त‍ि ) कर राशि‍ परिवर्तन कर 18 अप्रेल को सायंकाल में ऊपर लिखे सायंकाल समय में होगा । इसलिये चान्द्र संक्रमण काल के हिसाब से सायंकाल में 5 बजे के बाद ( मुरैना शनि पर्वत – शनिधाम के लिये) अन्य स्थान पर अन्य समयकाल लागू होंगें , के पश्चात ही शनि प्रावधान लागू किये जा सकते हैं, जो कि बहुत ही हल्के प्रभाव के होंगें क्योंकि शनि व सूर्य दोनों ही अर्थात अमावस्या तिथि‍ इस वक्त सूर्य 3 अंश 34 कला पर होंगें और चन्द्रमा शून्य कला पर होंगें । परिणाम स्वरूप यह तिथि‍ काल हालांकि लगभग प्रभावहीन एवं महत्वहीन होगा जो कि रात्रि में 12 बजे के बाद सूर्य चन्द्र के समान अंश व कला पर आने के बाद और चन्द्र कलायें विकलायें बढ़ने के बाद ही असल तिथि‍ अभ्युदय अमावस्या का उदयकाल गण्यमान्य होगा । 
चूंकि शनि इस समय वक्री चल रहे हैं और वृश्च‍िक राशीस्थ होकर 18 अप्रेल को  करीब 9 अंश 54 कला पर हैं , लिहाजा प्रचण्ड व प्रबल न होकर भी फिलवक्त होशमंद हैं , जो कि कुछ समय बाद स्वयं ही प्रभावहीन होना प्रारंभ हो जायेंगें ।
उधर चूंकि सूर्य मेष राशीस्थ होकर इस समय उच्च राशीस्थ होकर उच्च के सूर्य के रूप में विद्यमान हैं और 23 या 24 अप्रेल से अपने उच्च असर में आ जायेंगें और मई के पहले हफ्ते तक उच्च के प्रबल व प्रचंड प्रभाव में रहेंगें , वहीं इसी दरम्यान ठीक अगले हफ्ते 24 व 25 अप्रेल को चन्द्रमा भी राशि‍ संक्रमण कर वृषस्थ होकर उच्च राशीस्थ हो , चन्द्रमा भी उच्च का हो जायेगा । स्पष्टत: ग्रह स्पष्ट गणना के अनुसार 24 एवं 25 अप्रेल को सूर्य व चन्द्रमा अपनी उच्च स्थ‍िति व उच्च राशि‍ में होर उच्च के रहेंगें , वहीं तब जबकि इस समय गुरू मार्गी हो चुके हैं और अपनी उच्च राशि‍ कर्क में विद्यमान होकर उच्च के गुरू अति प्रचण्ड व बलवान होकर मौजूद हैं । कुल मिलाकर 24 एवं 25 अप्रेल को तीन ग्रह एक साथ , जो कि अति महत्वपूर्ण व ज्योतिष के अनुसार बेहद ज्यादा करामती है और अकेला चन्द्रमा जो 108 राजयोगों का निर्माण कर देता है, अकेला सूर्य अनेक राजयोंगों का निर्माण कर देता है, अकेला गुरू कई सारे राजयोगों का निर्माण कर देता है , जब ये तानों ग्रह एक साथ उच्च के होंगें तो निसंदेह अनेकानेक ( सैकडों या हजारों राजयोगों के निर्माण कर देने में सक्षम होंगें) राजयोग स्वत: ही बना देंगें भले ही शनि बलवान व वक्री होकर इस समय कही भी किसी भी हालत में हो , ये तीन अकेले सब पर बहुत भारी पड़ेंगें ।
अब निष्कर्ष यह प्राप्त होता है कि चूंकि शनिदेव , सूर्य के पुत्र हैं और शनि भले ही सूर्य से शत्रुता मान कर वैर रखते हों लेकिन सूर्य के वे बहुत लाड़ले व प्रिय हैं । लिहाजा जन्म कुंडली में जिना शनि गोचर ठीक चल रहा हो वे शनिवार 18 अप्रेल को सूर्य के उच्च रहते दिन भर में कभी सूर्यास्त पूर्व शनि मंदिर में शनि संबंधी समस्त कार्य भले ही कुशलता पूर्वक संपादित कर सकते हैं , अन्य के लिये व्यर्थ या प्रभावहीन व फलहीन होंगें ।
जबकि चन्द्र राशि‍ संक्रमण काल या सायंकाल के बाद अन्य व्यक्त‍ि भी शनि संबंधी शनीश्चरी अमावस्या की पूजन दर्शन व अन्य क्रियाविधि‍ संपन्न कर सकते हैं , किन्तु असल अमावस्या रात्रिकाल में ही रहेगी और शनि मंदिर में शनीश्चरी अमावस्या संबंधी पूजन , दानादि सहित समस्त कार्यादि संपन्न किये जाने का विधान काल होगा । यद्यपि यह दीगर बात होगी कि 18 अप्रेल रात्रिकाल में भी सूर्य व चंद्र बहुत कम अंश पर विलय कर विलीन होंगें  अत: यह अमावस्या काफी हल्की या बहुत ही कम या अल्प लाक्षणि‍क प्रभाव वाली होगी ।           

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