दिल्ली की किल्ली : जब कांप उठी धरा , थर्रा गये सब धरा मेरू , कंपित हो कांपे शेषनाग ,
आया सारी धरती पर भूकंप
महाभारत सम्राट
दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की दिल्ली से चम्बल में ऐसाहगढ़ी तक की
यात्रा और ग्वालियर में तोमरों का साम्राज्य- 3
* पांडवों की तीन भारी
ऐतिहासिक भूलें और बदल गया समूचे महाभारत का इतिहास * भारत नाम किसी भूखंड या देश
का नहीं , एक राजकुल का है, जानिये
क्यों कहते हैं तोमरों को भारत * ययाति
और पुरू के वंशज चन्द्रवंशीय क्षत्रिय राजपूत ( पौरव - पांडव )
नरेन्द्र सिंह तोमर
‘’आनंद’’ ( एडवोकेट )
Gwalior Times
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(
गतांक से आगे भाग-3 ) पिछले अंक में दिल्ली की किल्ली का जिक्र आ
चुका है,
या कहिये कि ‘’दिल्ली की किल्ली’’ जिसे आज लौह स्तम्भ या भीमलाट कहा जाता है और आज के महरौली नामक स्थान
पर कुतुब मीनार जिसे आजकल कहा जाता है ,
के निकट मौजूद व स्थापित है ( इस स्थान का नाम
जबकि वंशावली एवं शास्त्रों एवं प्राप्त शिलालेखों एवं दिल्ली की किल्ली पर खुदे
लेख के अनुसार अलग है, जिसका जिक्र हम आगे करेंगें, इसे जिसे कुतुब मीनार कहा जाता
है, उसका असल नाम विजय आरोह पूजन स्तंभ या श्री हरिपूजन व ध्वज पताका फहराने
के लिये बनवाया गया एक समानांतर आरोही स्थल है , तोमर राजवंश की वंशावली में यह कीर्ति पताका ध्वज स्तंभ एवं श्री हरि दर्शन पूजन का आरोही स्थल के रूप में वर्णित है ।
दिल्ली
की किल्ली की स्थापना – तोमर राजवंश
की महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर की राजघराने की मूल वंशावली, इंद्रप्रस्थ के किले , लालकोट
परिसर व आसपास मिले प्राचीन शिलालेखों और स्वयं दिल्ली की किल्ली पर खुदे लेख में
, किल्ली की स्थापना का व उस पर लेख खोदे जाने के समय काल का
वर्णन है , जो कि विक्रम
संवत 1109 से महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर (द्वितीय) के महाराजा बनने का
समय अंकित है, जिसमें महाराजा
अनंगपाल सिंह तोमर ( द्वितीय )
द्वारा इसे गाड़कर स्थापित करने एवं भूकंप कर धरती
व शेषनाग को थर्रा देने का जिक्र है । शिलालेखों एवं तत्समय लिखे गये
ग्रंथों ‘’विबुध श्रीधर’’
और ‘’पृथ्वीराज
रासो’’ में उल्लेख है कि शेषनाग जो अपने शीष पर मणियों
की महामणियां धारण करते हैं , उन्हें कंपा देने वाला या
हिला दे कर थर्रा देने वाला कार्य आज तक किसी ने नहीं किया , वह कार्य चन्द्रवंश के राजपूत क्षत्रिय
महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर ने कर दिखाया , महाराजा
अनंगपाल सिंह तोमर के एक ही हाथ से, एक ही हुंकार में कील
धरा में बल भर कर ठोक देने से शेषनाग कंपित हो गये और बुरी तरह थरथरा गये ,
यह कार्य सूर्यवंश , चन्द्र वंश ही कोई भी नहीं
बल्कि इस चर अचर संपूर्ण जगत में ,
सुर , असुर , लोक परलोक
में आज तक कोई नहीं कर पाया, शेषनाग के थरथरा कर कांप जाने
से से सारी भूमि धरा पृथ्वी कांप गई और समूची भूमि कंपित हो कर बुरी तरह हिल उठी ।
खैर यह जिक्र व विषय विस्तार हम आगे करेंगें और इन ग्रंथों में कही गयी बातों पर एवं
इस किल्ली की स्थापना की वजह एवं स्थापित करने का तरीका और कारण पर आगे विस्तृत विस्तार
से चर्चा करेंगें ।
लौह
स्तंभ यानि कि दिल्ली की किल्ली पर खुदे लेख , तोमर
राजवंश की वंशावली और प्राप्त शिलालेखों या शिलापट्टिकाओं या अन्य चिह्नों व
निशानों पर महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर का राजतिलक व शासनकाल की शुरूआत व इस कील के
स्थापना लेखादि में, इस कील या लौह स्तम्भ या किल्ली पर लेख में
महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर का शासन काल विक्रम संवत 1109 से एवं अग्रेजी में सन के
हिसाब से कहें तो ( ईसवी सन के अनुसार ई. सन 1052) से शुरू होना व कील की स्थापना करना अंकित है और
इस लेख व किल्ली स्थापना ( गाड़े जाने) के लेख में चन्द्रवंश के प्रतापी राजपूत क्षत्रिय
महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर ( द्वितीय) द्वारा इसकी स्थापना का उल्लेख है ।
.... क्रमश: अगले अंक में जारी
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