रविवार, 26 अक्तूबर 2008

गुलदाऊदी की खेती

गुलदाऊदी की खेती

ग्वालियर 25 अक्टूबर 08। गुलदाऊदी शीत ऋतु का एक अत्यंत लोकप्रिय पुष्पीय पौधा है । इसलिए इसको शरद् ऋतु की रानी भी कहा जाता है। गुलदाऊदी अनेक रंगों के अत्यंत आर्कषक फूल विभिन्न आकार, माप एवं रंग के होते हैं गमलों एवं क्यारियों में लगाने के लिए उपयुक्त गुलदाऊदी की एक वर्षीय और बहुवर्षीय दो प्रकार की जातियाँ पाई जाती हैं । गुलदाऊदी की उत्पत्ति चीन से हुई थी बाद में जापानियों द्वारा इसकी नई जातियों का विकास किया गया ।

       एकवर्षीय गुलदाऊदी सर्दियों में किनारियां बनाने, क्यारिंयों तथा गमलों में लगाने और सामूहिक प्रभाव के लिये अन्य फूलों के साथ मिलाकर लगाने के लिये उपयुक्त है। इसके फूलों का व्यास 6 से 10 सेंमी. होता है तथा इसे लगाने में कम देखरेख की आवश्यकता पड़ती है। इसकी प्रमुख जातियां किसनथि मकेरिनेट्स, किसनथिमम करोनेरियम है। बहुवर्षीय गुलदाऊदी की जातियों में अनेक रंगों के फूल पाऐ जाते है जिसमें पखुड़ियां अनेक पंक्तियों में पाई जाती हैं । इनमें से कुछ प्रमुख जातियां किसनथिमम मैक्सीमम, कि फ्रूटेसेंन्स आदि हैं ।

आकार के आधार पर बड़े पुष्प वाली गुलदाऊदी के फूल का व्यास 10 सेमी.से अधिक तथा छोटे पुष्प वाली गुलदाऊदी के फूल का आकार 10 सेमी. से कम होता   है । अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर बड़े फूलों वाली गुलदाऊदी को 12 श्रेणियों तथा छोटे फूल वाली को 9 श्रेणियों में बांटा गया है।

       ऋतु के आधार पर: सितम्बर -अक्टूबर में फूलने वाली किस्में में शिनकुजी-गुलाबी, शरद् बहार-कत्थई, शरद् तारिका-सफेद, शरद् माला-सफेद तथा शरद् मुक्ता-सफेद कत्थई रंग के फूलों वाली होती है। नवम्बर में फूलने वाली किस्में में मेगामी-गुलाबी, वमन-पीली, ननाको-पीला तथा अप्सरा-सफेद गुलाबी रंग के फूलों वाली होती है। दिसम्बर में फूलने वाली किस्में में पैरागान-टेराकोटा, लिलीपुट-पीला, इन्नोंसेन्स-सफेद, मोली- टेराकोटा, सीता तथा रीता-सफेद रंग के फूलों वाली होती है ।

       उपयोगिता के आधार पर उगाई जानेवाली प्रमुख किस्में में बड़े फलों वाली सफेद-ब्यूटी,वाल,विलियम टर्नर, पीली-चन्द्रमा,जयन्ट,इवनिंग स्टार, बैंगनी व गुलाबी-पिंक क्लाउड, क्लासिक व्यूटी, फिसटेल तथा लाल -अल्फ्रेड सिम्सन, शर्ली मोनार्क कहलाती है। गमलों में उगाने के लिए छोटे फूलों वाली सफेद -मरकरी, परफेक्टा, ज्योत्सना,हनीकाम्ब,शरद,सोना,शरद्माल,पीला इन्सक्वीसिट, टोपाज, लिलीपुट, अरपना, अपराजिता, शरद  शिंगार, हल्का बैंगनी- (माव) मोडेल, मेगामी, अलीसन,चार्म तथा लाल - जंम, विनीफ्रेड,फलर्ट,जीन,गारमेंट के नाम से जानी जाती है। कटे फूलों के व्यापार के लिए सफेद-होराइजन,बीरबलसहानी,इलनी,कास्केड,हिमानी,ज्योत्सना, पीली- बसन्ती,नानाको,सुजाता, कुन्दन, फ्रीडम, बैंगनी - अप्सरा,निलिमा,गैटी,अलिसन तथा लाल- ब्लेज,डेन्टीमेड,जया,फलर्ट कहलाती है। इसके अलावा छोटे फूलों वाली हार के लिए सफेद -बीरबल सहानी,करोल,इलनी,कास्केड,लिलिथ,शरद शोभा तथा पीली-बसन्ती,फ्रीडम,होसर येजो कुन्दन,हरिस का प्रचलन में है ।  

       सर्कस द्वारा प्रवर्धन हेतु फूल समाप्त होने के बाद पौधों को अर्ध छाया में लगा देते हैं तथा पर्याप्त सिंचाई एवं उर्वरक देते हैं जिससे सर्कस ज्यादा से ज्यादा निकलें । जब सर्कस 10-15 सेमी.लम्बे हो जाए तब उन्हें अलग करके फरवरी मार्च के महीने में गमले में लगा देते हैं । शीर्ष कर्तन द्वारा प्रबर्धन हेतु फूल समाप्त होने के बाद पौधों को जमीन की सतह से काट दिया जाता है । नये प्ररोह पत्तियों के एक्सील एवं तने के आधार से निकलते हैं । शीर्ष कर्तन जो 5-8 सेमी.लम्बा हो गांठ के ऊपर से काट देना चाहिए । कर्तन के नीचे की पत्तियों को हटा देना चाहिए एवं आधार भाग को सेरेडिक्स - 1 नमक हार्मोेंस से उपचारित कर देना चाहिए उसके बाद कर्तन को गमले या क्यारियों में लगा देना चाहिए ।

       गमले एवं क्यारियों में एक दिन में 4-5 बार पानी देना चाहिए । कर्तन लगने के 2-3 सप्ताह में उसमें जड़ें निकलती है और रोपण के लिए तैयार हो जाती है। सड़न से बचने के लिए कर्तन को कैप्टान नामक दवा 0.3 प्रतिशत को सिंचाई जल मे मिला देना चाहिए ।

गमलों में उगाई गुलदाऊदी को थोड़े-थोड़े समय पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए । वर्षा ऋतु में आवश्यकता अनुसार जाड़ों में 15 दिन मेंऔर गर्मियों में 7 दिन में एक बार सिंचाई जरूरी है । गमलों तथा क्यारियों दोनों में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ।

खरपतवार का पूर्ण नियंत्रण रखना जरूरी होता है क्यारियों से खरतवारों को खुरपी तथा गमलों से हाथ द्वारा निकालना चाहिए । गमलों में उगाये पौधों को सहारे की आवश्यकता होती है जिसके लिए तीन-चार डण्डे गमले के किनारे पर गाड़ देते   हैं । तथा नीचे से ऊपर सुतली से बांध दिया जाता है ताकि शाखाओं को सहारा मिल सके । पूर्ण खिले फूलों की कटाई देर से जब ओंस की बूंद समाप्त हो जाये तब करनी चाहिए । फूलों को कटाई के तुरन्त बाद 5-6 किलो ग्राम की टोकरी या गत्ते के डिब्बों में पैक करना चाहिए ।

 गुलदाऊदी की व्यवसायिक खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतीली मिट्टी जिसमें जैविक पदार्थ ज्यादा तथा पी.एच.6'7 हो चुनना चाहिए । जून में भी दो-तीन जुताई बहुत जरूरी है तथा प्रत्येक जुलाई के बाद सुहागा लगाना चाहिए ताकि मिट्टी पूरी तरह भुरभुरी हो जाए,खेत की तैयारी से पहले 30 टन सड़ी गोबर की खाद 100 कि.ग्रा.फासफोरस, 140 किग्रा.पोटाश प्रति 5 एकड़ बेसल डोज के रूप में मिला देना चाहिए । अच्छी जड़ युक्त कर्तन 40- 30 सेमी.दूरी पर मध्य जुलाई में रोपण करना चाहिए । रोपण के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए । 30 दिन के अन्तर पर 80 किलो नत्रजन दो बार में चाहिए । पौध से पौध की दूरी किस्म पर निर्भर करती है । सामान्य पंक्ति के बीच की दूरी 35 से 40 सेमी.रखीजाती है ।

फूल अधिक संख्या में प्राप्त करने के लिए प्रारंभिक बढ़वार के दौरान प्रमुख शाखाओं को शीर्ष पर से नोच देना लाभदायी होता है जिसका उपयुक्त समय 4-7 सप्ताह होता है । इसकी शाखा से अतिरिक्त कलियों को निकालकर एक दो कलियों को छोड़कर फूल के आकार में सुधार लाया जा सकता है ।

 

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