भारी बिजली कटौती से मची त्राहि त्राहि, किसान छात्र और व्यवसायी संकट में
बिजली कित जाय रई है काऊ को नहीं पता
मुरैना/ भिण्ड/ श्योपुर 17 दिसम्बर 2007 । चम्बल में इन दिनों जहॉं बिजली की भारी दरकार है, वहीं अन्धाधुन्ध अघोषित बिजली कटौती के चलते किसानों, छात्रों और व्यवसायीयों के हलक इस भरी सर्दी में सूखने लगे हैं ।
जहॉं किसान अभी तक खाद, पानी और बिजली की लड़ाई से जूझ रहे हैं वहीं इन दिनों छात्रों की छमाही परीक्षायें चल रही हैं , अनेक छात्र छात्रा तो बोर्ड की परीक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारीयां कर रहे हैं । वहीं छिटपुट कुटीर व्यवसायी जिनकी रोजी रोटी और कारोबार बिजली पर ही आश्रित है पूरी तरह चौपट होकर दिहाड़ी धन्धों से बेगार हो भुखमरी की नौबत तक आ पहुँचे हैं ।
हालांकि बिजली कटौती तो वर्ष भर चलती है और सदाबहार आलम दर्शाती रहती है लेकिन जब पानी सिर से ऊपर हो जाता है तो जनता नर्राती है, लेकिन इस देश का दुर्भग्य है कि यहॉं नेता और अफसर कान में तेल डाल कर बैठे रहते हैं, खैर अंधेरा कायम रहे महामहिम किल्विष ।
किसानों को जहॉं चम्बल नहर से पानी नहीं मिला , खाद नहीं मिली, बिजली नहीं मिली तो वे रो पड़े और कातर स्वरों तथा अविरल ऑंसूओं से धरा भिगोने लगे, उनकी यह दशा देख आसमान भी रो पड़ा और चन्द मावठी बून्दों से उसने भी धरती भिगो दी तो किसानों को जीवन के लिये चन्द सांसें और हासिल हो गयीं ।
अब उन बच्चों का क्या हो, जो इन दिनों छमाही परीक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं या सेमेस्टर परीक्षाओं में व्यस्त हैं, वे भी खून के ऑंसू रो रहे हैं, दिन भर बिजली नहीं तो रात में भी धुऑंधार कटौती, आखिर कब तक जलायें मोमबत्ती और दिये या लालटेन । रिजल्ट बिगड़ेगा तो भी डण्डा उन्हीं के सिर, और पढ़ें तो न दिन बिजली न रात बिजली । पढ़ लिये ठीक है, ज्यादा बच्चे फेल होंगें तो शिक्षित बेरोजगार कम होंगें, वाह क्या आइडिया है । खूब फेल करवाओ, न बेटा पढ़ पाओगे न शिक्षित बेरोजगार कहलाओगे ।
कहॉं तक बयॉं करें हालात ए गुलिस्तां – यहॉं हर शाख पे ..... छोटे मोटे काम धन्धे वाले बिजली पर ही दिहाड़ी कारोबार कर रहे हैं और इन दिनों रात और दिन की धुऑंधार कटौती पर दहाड़ें मार कर रो रहे हैं ।
हमें तो अब सारा जमाना ही रोता दिखता है तो हमने रोना छोड़ दिया । समझ गये, नहीं समझे, इन्तजार करो समझ जाओगे । जय हिन्द ।