शुक्रवार, 17 जून 2011

राज्यों के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रियों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री का भाषण

राज्यों के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रियों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री का भाषण
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने आज राज्यों के सामाजिक और अधिकारिता मंत्रियों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री श्री मुकुल वासनिक ने स्वागत भाषण दिया और सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री श्री नेपोलियन ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया।

प्रधानमंत्री के भाषण का अनूदित पाठ इस प्रकार हैः

"राज्यों के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रियों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में आज आप सभी के बीच उपस्थित होने की मुझे खुशी है। समाज के सभी वर्गों, खासतौर पर कमज़ोर वर्गों के लिए समान विकास को सुनिश्चित करना सरकार के समावेशी विकास एजेंडा का केंद्रीय बिंदु है।

हमारे काम की सफलता का पैमाना इस बात से तय किया जाएगा कि हम अपने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछडा वर्ग, विकलांग और वरिष्ठ नागरिक भाईयों और बहनों हैं को राहत दिलाने में कितने सक्षम हैं। हालांकि विभिन्न सरकारों ने उन लोगों के मूलभूत अधिकारों और गरिमा के संरक्षण के लिए प्रगतिशील कानून बनाए हैं जो एक या अन्य रूप से वंचित हैं, वास्तविक प्रश्न यह है कि इन कानूनों को प्रभावी ढ़ंग से इस प्रकार से कार्यान्वित और लागू किया जाए, और पर्याप्त संसाधनों के ज़रिए इसको परिपुष्ट किया जा सके। यह आवश्यक है कि हम नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को लागू करे। हमें यह सुनिश्चित करने कि ज़रूरत है कि राज्य और ज़िला स्तर पर सतर्कता और निगरानी समिति की नियमित बैठकों का आयोजन हो। इस विषय के संदर्भ में मैंने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है। मैं आशा करता हूं कि राज्यों के अधिकारिता मंत्री इस पत्र औऱ अधिनियम की भावना को दृढ़ता के साथ लागू करेंगे। इस प्रयोजन के लिए उपलब्ध केन्द्रीय सहायता का लाभ उठाने के लिए मैं आप सभी को आमंत्रित करता हूं जिसमें इस विषय से संबंधित अपराधो की शीघ्र सुनवाई के लिए बडी संख्या में अलग से विशेष न्यायालयों की स्थापना शामिल है। हमारी विकास प्रक्रिया में यह तथ्य एक गहरा धब्बा है कि स्वतंत्रता के 64 वर्षों के बाद भी हाथ से मल निकासी की कुप्रथा समाप्त नहीं हुई है। मैं प्रतिज्ञा लेता हूं कि यह अगले छह महीने के भीतर देश के हर कोने से इस कुप्रथा को खत्म कर दिया जाएगा। शुष्क शौचालयों को एक बार हमेशा के लिए रूपांतरित कर दिया जाना चाहिए।

गृह मंत्रालय का हालिया परामर्श आपके हाथों में एक मजबूत और निषेधात्मक साधन है जिसमें किसी अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को मैला ढोने के लिए मल निकासक के रुप में नियुक्त करना अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 के तहत दंडनीय माना जाएगा। मैं आपसे इसका पूर्ण इस्तेमाल करने का आग्रह करता हूं। अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के लिए मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना को जुलाई 2010 में संशोधित किया गया था। विकास के सोपान पर ऊँचा चढ़ने के लिए हमारे समुदाय के वंचित वर्गों का सशक्तिकरण ज़रुरी है, जिसके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और कौशल विकास तीन बेहद महत्वपूर्ण आवश्यकताएं हैं। इसलिए हमारे नागरिकों में इन वर्गों से आने वाले विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति का यह प्रावधान काफी महत्व रखता है। इन वित्तीय उत्तरदायित्वों का वहन संपूर्ण पंचवर्षीय योजना के लिए केन्द्र द्वारा किया जाएगा। राज्यों का भाग मात्र तेरहवीं पंचवर्षीय योजना यानि 2017 से देय होगा। अनुसूचित जाति के बच्चे अपेक्षित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल कर सके इसे सुनिश्चित करने के लिए केन्द्र सरकार ने स्वेच्छा से इस अतिरिक्त प्रतिबद्धता को ग्रहण किया है। राज्य सरकारों को हालांकि यह सुनिश्चित करना होगा कि संशोधित योजना का लाभ न सिर्फ अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों तक पहुंचे बल्कि ऐसा इसमे पारदर्शिता अपनाई जाए। ताकि वे तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा समेत तृतीयक शिक्षा में अपनी भागीदारी को सुधारने में सक्षम हो सकें।

पारदर्शिता के कदम के रुप में छात्रों को इस प्रकार प्रदत्त छात्रवृत्ति योजना के भुगतान कार्यक्रम का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाना चाहिए। जैसा कि (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री) मुकुल वासनिक जी ने उल्लेख किया, हम अन्य पिछडा वर्ग के छात्रों के लिए भी मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना के तहत छात्रवृत्ति दरों में संशोधन का प्रस्ताव भी रखते हैं। जैसा कि आप जानते हैं अनुसूचित जाति और आम जनता के बीच विकास के अंतर को दूर को संबोधित करने में अनुसूचित जाति उप-योजना हमारे लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है मैं जानता हूं कि अनुसूचित जाति की जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जाति उप-योजना के तहत निधि निर्धारित करने के लिए राज्यों द्वारा कोशिश की जा रही है। किंतु यह कोशिश प्रारूपों को परिणामों में बदलने में कितनी प्रभावी है? स्पष्ट है कि इसको और अधिक संगठित और प्रत्यक्ष किए जाने की ज़रुरत है। राज्य सरकारों को पूरी तत्परता के साथ अनुसूचित जाति उप-योजना को बनाना और लागू करना चाहिए ताकि इसका लाभ उन लोगों तक पहुंच सके जिन्हें वास्तव में इसकी ज़रूरत है। लाभ को आगे बढ़ाने के लिए अभिसरण आवश्यक है जिससे मौजूदा विकास का अंतर शीघ्र और अधिक प्रभावी रूप से कम हो। केन्द्र सरकार ने पांच राज्यों- असम. बिहार, हिमाचल प्रद्श, राजस्थान और तमिलनाडु में केन्द्र प्रायोजित पायलट योजना "प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना" की शुरुआत की है। यह अनुसूचित जाति जनसंख्या बहुल 1000 गाँवों के समेकित विकास के लिए है। पायलट परियोजना में विश्वास और उत्साहजनक परिणाम के प्राप्त होने पर बारहवीं पंचवर्षीय योजना में इस योजना के विस्तार पर विचार किया जा सकता है। विकलांग व्यक्तियों की चिंताओं को दूर करने के लिए बहुत से कदम उठाए गए हैं। लेकिन मैं यह मानता हूं कि इस संदर्भ में हमें और भी बहुत कुछ करना है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति विकलांगता अधिनियम, 1955 की जगह पर एक नए कानून का मसौदा तैयार कर रही है। राज्य सरकार और अन्य हितधारकों से परामर्श करके इस अधिनियम को संसद में प्रस्तुत करने का प्रस्ताव है। हमारे विकलांग भाईयों और बहनों की एक सतत परेशानी विकलांगता प्रमाणपत्र प्राप्त करना है। एक सरल और विकेंद्रीकृत संस्थागत तंत्र के जरिए प्रमाणपत्र जारी करने के लिए विकलांगता अधिनियम के तहत केन्द्रीय नियमों में दिसंबर 2009 में संशोधन किया गया था। मैं राज्य सरकारों से अनुरोध करता हूं कि वे इसका पालन वरीयता के आधार पर करे। कुछ हद तक यह अलग तरह से सक्षम लोगों की पीड़ा को कम करेगा। हमारे वरिष्ठ नागरिकों की स्वास्थ्य-देखभाल, सुरक्षा और कल्याण के लिए कदम उठाए गए हैं। लेकिन इस संदर्भ में हमें कुछ और करने की भी ज़रुरत है। हमने वरिष्ठ नागरिकों के लिए कर और यात्रा रियायतों को बढ़ाया है। पर जैसा कि मैंने कहा कि और भी बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है। वृद्धों की नाजुक स्थिति और विशेष संरक्षण ज़रूरतों के प्रति संवेदनशीलता बढाने और कानून लागू करने वाले तंत्र के झुकाव को बढाने के लिए पंचायत तथा वरिष्ठ नागरिक एसोसिएशनों और अन्य समुदाय आधारित समूहों की मदद ली जानी चाहिए। हमारे कमज़ोर तबको को रोजगार प्रदान करने के संदर्भ में सकारात्मक कदमों में वृद्दि करने के लिए यूपीए सरकार ने कॉरपोरेट क्षेत्र के सहयोग से अनेक पहलों को दिशा दी है। कुछ नतीजे सकारात्मक रहे हैं। प्रभावी सकारात्मक कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए कई कॉरपोरेट घरानों ने स्वेच्छापूर्वक कुछ नियमों को अपनाया है। एकल बिंदु जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए जांच अधिकारी की नियुक्ति की गई है। उद्यम विकास और अन्य कार्यक्रमों के अंतर्गत लगभग 12 हजार युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है। पर इस मामले में भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। हम एक वार्षिक स्वैच्छिक प्रकटीकरण व्यवस्था पर भी साथ काम कर रहे हैं। विकलांगों द्वारा चलाए जाने वाले सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम से प्राप्त कुछ प्रतिशत को चिह्नित करने की सरकार की योजना है। साथियो यह महत्वपूर्ण है कि इस सम्मेलन का आयोजन ऐसे समय पर हो रहा है जब हम बारहवीं पंचवर्षीय योजना को तैयार करने की दहलीज पर खड़े हैं। मैं आप सबसे अनुरोध करता हूं कि सामाजिक न्याय के हमारे इस एजेंडे में, बेहद गंभीर इन मामलों के बारे में की गई प्रगति की समीक्षा करें । मैं आपसे उन क्षेत्रों की पहचान जिसपर कम ध्यान दिया गया है और बारहवी पंचवर्षीय योजना में आगे की राह के रूप में आप क्या देखते हैं इस संबंध में आप सुझाव दें, इसका आग्रह करता हूं।

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