आयुर्वेद में पंचगव्य शब्द का प्रयोग होता है, जो पांच महत्वपूर्ण गोवंशीय उत्पादों का उल्लेख करता है। ये उत्पाद हैं- दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर। कई बीमारियों के उपचार के लिए इनका उपयोग या तो अलग-अलग किया जाता है या दूसरी जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर इन्हें प्रयोग में लाया जाता है। समझा जाता है कि इनके गुण, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं।
यदि हम गायों के चारे और उनकी देखभाल और पूरे जीवन में उनके द्वारा दिए जाने वाले दूध को ध्यान मे रखें, तो संकर गायों की तुलना में भारतीय गायों पर खर्चा कम आता है। जैव उर्वरकों के लिए गोबर और गोमूत्र तथा खेती और ढुलाई के लिए बैलों के इस्तेमाल को देखें, तो लगेगा कि संकर किस्म की गाय या बैल कम उपयोगी होते हैं। आर्थिक दृष्टि से देखें, तो स्वदेशी गायें संकर प्रजातियों की तुलना में कहीं अधिक लाभदायक होती हैं।
रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग, भूजल के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल और उच्च पैदावार देने वाले महंगे बीजों के कारण मिट्टी की उर्वरता कम हो गई है। अनाज उत्पादन के वर्तमान स्तरों के लिए ऊंची लागत लगानी पड़ी है। संतुलन बनाए रखने का एकमात्र तरीका जैव कृषि को फिर से अपनाना है। गाय, गोवंश की अन्य प्रजातियां तथा दूसरे मवेशियों से इस दिशा में मदद मिल सकती है। इसलिए गोबर, गोमूत्र और जैव उर्वरकों तथा जैव कीटनाशकों के प्रयोग को बढावा देने की जरूरत है, ताकि कृषि से लगातार उत्तम परिणाम हासिल किए जा सकें। इसके अलावा यह सबसे कम खर्चीला भी है।
गायों की स्वदेशी नस्लों के संरक्षण की जरूरत है। इसके लिए गौशालाओं तथा गायों की संख्या बढाने के निर्धारित कार्यक्रमों से मदद मिल सकती है। स्वदेशी नस्ल की गायों की प्रजनन क्षमता, उत्पादकता और गुणवत्ता बढाने के लिए मवेशी अनुसंधान केन्द्र स्थापित किए जाने चाहिए।
देश में लगभग 4000 गौशालाएं हैं। देश के पशुधन में सुधार के लिए इनमें समन्वय की जरूरत है। गौशालाओं से भारतीय नस्लों को सुधारने और संरक्षित करने में जर्बदस्त सहायता मिल सकती है।
गोबर गैस संयंत्रों की स्थापना, गोबर की खाद बनाने और पंचगव्य के औषधीय गुणों पर अनुसंधान भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसके लिए गौशालाओं को गोवंश विकास केन्द्र घोषित किया जा सकता है।
अपरम्परागत ऊर्जा तैयार करने के लिए गोबर एक महत्वपूर्ण साधन है। यह जलाऊ लकड़ी और बिजली का विकल्प है। परिणामस्वरूप वनों को कटने से बचाया जा सकता है और वन्य प्राणियों के रूप में मौजूद सम्पत्ति को बढाया जा सकता है। शुरूआत में सभी गोशालाओं और गोसदनों में गोबर गैस संयंत्र लगाए जा सकते हैं। इन संयंत्रों से बचे अपशिष्ट का इस्तेमाल, खाद के रूप मे किया जा सकता है।
गोमूत्र और गोबर, फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिध्द हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गोमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केन्द्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना, खेतिहर उत्पादन बढाने की अपार क्षमता है।
स्वदेशी गाय एक विशेष प्रजाति है। इसके दूध, दही और घी में विशेष औषधीय गुण होते हैं। गाय के दूध में कम कैलोरी, कम कैलोस्ट्रोल, उच्च माइक्रोपोषक तत्व और विटामिन होते हैं, इसलिए यह एक स्वास्थ्यवर्धक आहार माना जाता है।
गाय, हमारे जीवन और जैव- विविधता के लिए महत्वपूर्ण है। मवेशी क्षेत्र में गरीबी दूर करने और रोजगार के अवसर उत्पन्न करने की भारी संभावनाएं हैं। इसे हर स्तर पर बढावा दिया जाना चाहिए।
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