पुरातत्व में कालगणना का आधार त्रियुगीय पध्दति
पुरासंपदा का महत्व उसकी प्राचीनता पर निर्भर करता है। कोई भी वस्तु किस काल की है इसका पता लगाने के लिए पुराविदों द्वारा त्रियुगीय पध्दति का उपयोग किया जाता है। पुरातत्व के क्षेत्र में त्रियुगीय पध्दति का प्रारम्भ 1816 ई. में कोपनहेगन (डेन्मार्क) के सी.जे. थामसन द्वारा किया गया था। इस पध्दति में काल निर्धारण का क्रम इस प्रकार है :-
1. पाषाण युग (Stone Age)
2. ताम्र-कांस्य युग (Copper / Bronze Age)
3. लौह युग (Iron Age)
सन 1887 के बाद पुराअध्ययन के संबंध में प्रागैतिहासिक संस्कृतियों के लिए क्रम इस प्रकार दिया गया । पुरा पाषाण काल (Palaeolithic Period), मध्य पाषाण काल (Mesolithic Period), नव पाषाण काल (Neolithic Period)। भारत में सर्वसम्मति से पुरापाषाण काल (Palaeolithic Period) को विभक्त कर क्रम इस प्रकार दिया गया । पुरापाषाण काल (Palaeolithic Period) में क. निम्न पुरापाषाण काल (Lower Palaeolithic), ख. मध्य पुरापाषाण काल (Middile Palaeolithic Period) और ग. उत्तर पाषाण काल (Upper Palaeolithic), मध्य पाषाण काल (Mesolithic Period) और नव पाषाण काल (Neolithic Period) हैं।
पुरापाषाण काल - इस काल को भी तीन भागों में विभक्त किया गया है। क. निम्न पुरापाषाण काल - इस काल के उपकरणों में मुख्य रूप से पैबुल उपकरण, हैडेक्स, क्लीपर आदि हैं। ख. मध्य पुरापाषाण काल - यह संस्कृति पुरापाषाण काल के द्वितीय चरण की है। निम्न पुरापाषाण काल की तुलना में इस काल के उपकरण मुलायम पाषाण पर निर्मित एवं अधिक विकसित हैं। मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरणों में स्क्रेप एवं बोरर मुख्य हैं। ग. उत्तर पुरापाषाण काल - उत्तर पुरापाषाण कालीन उपकरण मुख्यत: ब्लेड पर निर्मित है। ब्लेड, ब्यूरिन आदि उपकरण का प्रादुर्भाव हुआ। इस काल में ज्यामितीय उपकरण भी बनने लगे।
मध्यपाषाण काल - यह काल पुरा पाषाणकाल एवं नव पाषाणकाल के बीच की कड़ी समझा जाता है। इस काल के उपकरण अत्यंत लघु हो जाते हैं। इस काल में थम्बनेल, स्क्रेपर, माईक्रो ब्यूरिन आदि उपकरण का प्रादुर्भाव हुआ। इस काल में ज्यामितीय उपकरण भी बनने लगे।
नवपाषाण काल - यह काल सामाजिक उत्थान में क्रांति का काल समझा जाता था। मानव ने एक नि'चित स्थान पर बस कर खेती, प'ाु पालन आदि प्रारम्भ कर दिया। इस काल में नवीन उपकरण निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई जैसे - फ्लेकिंग, ग्राइडिंग, पालि'ािंग। इन विधियों से उपकरण चमकदार हो जाता था।
राजधानी भोपाल की 'मामला पहाड़ी पर बने राज्य पुरातत्व संग्रहालय की प्रागैतिहासिक वीथी में विभिन्न कालक्रम के उपकरण प्रदर्शित किये गये हैं। इस दीर्घा में भौडे पाषाण उपकरणों से कु'ाल धुनर्धारी बन जाने तक मानव जीवन विकास क्रम को प्रद'ार्ित किया गया है। वह किन-किन प्रविधियों से पाषाण उपकरणों का निर्माण करता था और किस प्रकार उनका उपयोग करता था और किस प्रकार उनका उपयोग करता था और यहां उन्हें भी दर्शाया गया है।
यहां इस वीथी में निम्नपुरापाषाण युगीन लगभग (4 लाख से 80 हजार वर्ष पूर्व), मध्यपाषाण युगीन (80 हजार से 20 हजार पूर्व), उत्तर पाषाण युगीन (20 हजार से 10 हजार वर्ष पूर्व), मध्य पाषाण काल (10 हजार से 5 हजार वर्ष पूर्व), नव पाषाण काल (5 हजार से 4 हजार वर्ष पूर्व) ताढााश्मकाल (4 हजार वर्ष पूर्व) के उपकरणों को प्रदर्शित किया गया है। कुछ उपकरणों को हस्तकुठार, वाणाग्र एवं हंसिया के रूप जनसामान्य के लिए लकड़ी के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया गया है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें