साधारण परिचय :- यह बहुवर्षीय आरोही लता जो एशिया, अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया में पायी जाती है । भारत में यह पौधा हिमलाय क्षेत्रों में पाया जाता है । मध्य प्रदेश में यह पौधा साल व मिश्रित जंगलों में पाया जाता है । तीन से पांच फीट उंचा क्षुप, लता जैसा, इसकी पतली शाखाओं पर बारीक पत्तियों जैसे दिखने वाली एक पर्वीय हरी सुई जैसी शाखायें, शाखाओं पर सीधे या टेढे कांटे होते हैं । पुष्प सफेद गुच्छों में फल छोटे गोल हरे, पकने पर लाल इसके मूल कन्द जैसे, लम्बे गुच्छों में जिनका उपयोग औषधि के रूप में होता है । औषधीय गुण :- इसके कन्द जैसे रसयुक्त मांसल मूल का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है जिनका प्रयोग बलवर्धक, सेक्स टानिक, स्त्रियों के लिए टानिक, ल्युकोरिया तथा एनीमिया के उपचार हेतु औषधियों, भूख न लगने तथा पाचन सुधारने हेतु टानिक, मानसिक तनाव से मुक्ति हेतु, दुग्ध बढ़ाने हेतु औषधि के रूप में होता है । सतावर कर जड़ों के उपर पतली छिलका होती है छिलके को हटाने पर सफेद/दुधिया गद्देदार मासल जड़ प्राप्त होता है । जिसको सुखाने के बाद शतावर का सत चूर्ण प्राप्त होता है । यह पचने में भारी प्रभाव में शीतल औषधि है । यह रसायण गुण सम्पन्न दिव्य औषधि है । जो उपर के लिए गए रोगों में काम आता है । इसका चूर्ण 2-3 ग्राम प्रति दिन या 5-10 ग्राम हरा जड़ कूच कर दुध के साथ उबाल के खाते हैं । यह माता या पशु के स्तन में दूध बढ़ाने में अधिक उपयोगी होता है । इसका प्रयोग पीपल एवं शहद के साथ करने से गर्भाशय का दर्द मिटता है । इससे स्त्री पुरूष में काम वासना भी तीव्र हो जाती है । यह अनिंद्रा में भी उपयोगी होता है । एक सतावरी के पौध से 1-4 कि. ग्राम तक गीला जड़ मिलता है । इसकी खेती बहुत ही उपयोगी है । यह एक जन उपयोगी वनौषधीय है जो पारिवारिक औषधीय के रूप में पहचानी जाती है । |
खेती के लिए उपयुक्त भूमि :- बलुई दोमट मिट्टी, अच्छी जल निकासी व्यवस्था, पानी ज्यादा न ठहरता हो ऐसी मिट्टी से कन्द खोदकर बिना क्षति के निकाले जा सकते हैं । काली मिट्टी वाली भुमि इसकी खेती के लिए प्रतिकूल होती है, क्योंकि ऐसी मिट्टी में जलधारण क्षमता अधिक होती है । जलवायु :- उष्ण, आर्द्र जिन क्षेत्रों का तापमान 10-50 अंश सेल्सियस, वार्षिक वर्ष 250 से. मी. तक हो ऐसी जलवायु खेती के लिए उपयुक्त होती है । खेत की तैयारी :- खेती के लिए मई-जून में वर्षा के पूर्व 2-3 बार जुताई कर लेनी चाहिए । इसमें प्रति एकड़ के दर से गोबर की सड़ी हुई खाद 10 टन मिला देनी चाहिये । एक जुताई वर्षा बन्द होने के पश्चात अगस्त माह में कर देनी चाहिए । पौधे तैयार करना :- 1x10 मीटर की क्यारियाँ नर्सरी में तैयार कर इसमें 3:1 के अनुपात में मिट्टी एवं गोबर की खाद मिलाकर क्यारियाँ भर देनी चाहिए । पौधे बीजों द्वारा तैयार की जाती है । प्रति एकड़ पाँच कि. ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है । मई में बीज की क्यारियों में बुवाई कर देनी चाहिए । लगभग अगस्त माह में पौधें रोपाई के लिये तैयार की जाती है । | |
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