गर्व से कहो तुम हिन्दू हो ........
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
राजा वह जो न्याय करे, धर्म वह जो धारण हो, कर्म वह जो कारण हो, गुण वह जो त्रयगुणातीतो हो, राजपूत राजा देव अवतार होता है उसमें देव अंश रहता है, समदर्शिता उसका प्रधान लक्षण है जो समदर्शी नहीं वह प्रभु भक्त नहीं, प्रभु का प्रधान गुण है धर्म की रक्षा, धर्म मगर कौनसा ? क्या हिन्दू धर्म ... किस शास्त्र में वर्णित है शब्द हिन्दू या हिन्दू धर्म ? किस गंथ या शास्त्र या किस राजा ने घोषित किया है एक समुदाय को हिन्दू ? जब हमारा राज्य था महाभारत पर , दिल्ली पर तब तक तो तुम कोई भी नहीं थे हिन्दू .... तुर्क आये मुगल आये उन्होंनें तुम्हारा हिन्दू ... तुम्हें कहा गुलाम और दास ... सारी गुलामी और दासत्व को एक नाम दे दिया हिन्दू .... और तुमने उसे सीने से चिपका लिया , गौरवान्वित होकर एक गुलाम तमगा हिन्दू शब्द पाकर ... कहते हो सबसे कि ''गर्व से कहो हम हिन्दू है'' ... अपनी मुगल और तुर्क गुलामी व दासता का बड़े गौरव से प्रचार करते हो ... जब अपने कुल के न हो सके तुम, अपनी खुद की मॉं के न हो सके, अपने वंश और अपने राजा के न हुये तो मातृभूमि के कैसे हो सकते हो .... जाओ विचार करो ... हम थे दिल्ली के राजा ... भारत के राजा .. महाभारत के राजा ... दिल्ली और आजाद भारत के आखरी हिन्दू राजा और राजवंश ... हमने तो नहीं दिया ये ''हिन्दू'' नाम तुम्हें .... उल्टे जो तुम्हारे भाई बंधु वंश व मातृभूमि के लोग जबरन धर्म परिवर्तन करा मुसलमान बना दिये उन्हीं अपने भाईयों को आज गालियां देते हो , उनकी बहिन बेटियों की आबरू लूटते हो , कत्ल कर देते हो ... धिक्कार है ... अपने ही लहू को नहीं पहचानते ... फिर गर्व से ये और कहते हो मातृभूमि ... किसकी नहीं है ये मातृभूमि .... क्या यही है श्रीकृष्ण और अर्जुन का बनाया हुआ महाभारत जहॉं दो तिहाई विश्व , और भूभाग ही नहीं , संस्कृति, सभ्यता और भाषाओं , जातियों, समुदायों को मिला कर एक कर दिया था, हर भारत भरतवंशी श्रीकृष्ण , अर्जुन और पांडव के वंशज के लिये समूची धरा ही मातृभूमि है और वसुधैव कुटुम्बकम इस वंश का सूत्र है .... ध्यान रहे यह सम्पूर्ण धरा मातृभूमि है ... धर्म के जो चार चरण हैं उन्हें भुला कैसे दिया तुमने ... चार प्रकार के धर्मों का वर्णन है उसे भुला कैसे दिया तुमने ... धर्म जन्म से नहीं प्राप्त होता .. धारण किया जाता है उसे भुला कैसे दिया तुमने ... आज के राजाओं का भी पूर्ण वर्णन शास्त्रों और ग्रंथों में है ... मगर अफसोस ... शास्त्रों और ग्रंथों का इन एक भी अर्जी फर्जी नेताओं / आज के राजाओं को ज्ञान नहीं है ... अगर भूले से भी एक बार भी शास्त्र या ग्रंथ पढ़ लेंगें तो ये खुद को हिन्दू कहना तत्काल उसी वक्त से बंद कर देंगें और संपूर्ण धरा इनकी मातृभूमि और समचा विश्व इनका साम्राज्य और पुन: महाभारत की स्थापना एवं भारत का समूचे विश्व पर एकक्षत्र निष्कंटक राज्य होगा ...
2 टिप्पणियां:
दोहे के आगे दोहे
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मानवीय - व्यवहार का, परिशोधक है धर्म।
पुष्ट किया करते जिसे, शील और सत्कर्म॥
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सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
दोहों के आगे दोहा
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माने हैं धर्मार्थ के, करना अच्छे कर्म।
अर्थ लगाया जगत ने, मुठ्ठी करना गर्म॥
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धर्मार्थ= धर्म का उद्देश्य, धर्म का धन, अर्थ = मतलब, धन-दौलत
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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