सेतु विवादम- जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी .......
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
राम पर फिर एक भूचाल बनाम एक निर्विवाद पर विवाद
भारतीय जनमानस में राम की गहरी पैठ है इसमें संदेह नहीं और राम या कृष्ण जैसे विषय न तो लेखबद्ध किये जा सकते है न उन्हें शब्दों या वाक्यों की सीमा तले ही बांधा जा सकता है , उन्हें बहुआयामी और सार्वत्रिक ही रहने दिया जाये इसी में देश का और इस धरा का भला है ।
अब चूंकि राम फिर एक बार विवादों में आ गये हैं, तो मैं भी किंचत विचलित सा हो गया और लगा कि इस बात पर बोलना या लिखना जरूरी है, क्योंकि राम पर तर्क व साक्ष्यों की बात हो रही हो वैज्ञानिक प्रमाणों व अस्तित्व सिद्ध करने की बात हो रही हो तो मुझ जैसे का बोलना या लिखना अपरिहार्य हो जाता है । प्रथमत: मैं हिन्दू हूँ , फिर राजपूत भी, फिर एडवोकेट भी और फिर इंजीनियर और वैज्ञानिक भी, ज्योतिषी और धर्म आध्यात्म तंत्र मंत्र यंत्र का जिज्ञासु साधक भी और राष्ट्रीय जनता दल का प्रदेश स्तरीय नेता भी यानि हर कोण से देख कर और व्यापक व निष्पक्ष सोच के साथ लिख पाना या तर्क लेखन सोच मेरे लिये बड़ी धर्म संकट मय हो गयी । हालांकि मनुष्य जीवन भर जिज्ञासु और विद्यार्थी ही रहता है, और बीच बीच में कुण्ठित लेखनी और अपरिपक्व मस्तिष्कीय विचारधारा से फिजूल द्वंद्व खड़े करता रहता है । फिर भी मैं अपनी बात अपने देशवासीयों विशेषकर हिन्दूओं की ओर से कहने का प्रयास करूंगा ।
मैं स्पष्ट कर दूं , न तो मैं राम का वकील हूँ, न भाजपा, हिन्दू परिषद या इस प्रकार के किसी संगठन से संबंधित हूँ , और न मेरा किसी से कोई ताल्लुक है , मेरी स्वतंत्र साधना और मुक्त व स्वतंत्र विचारधारा है, सारा चिन्तन मौलिक है और प्रस्तुत आलेख देश में व्याप्त विसंगतियों, विरोधाभासों और विभ्रमों पर ज्वलन्त सोच के आशय से है ।
राम कौन थे, क्या है उनका इतिहास
बकौल सरकार-
आज राम को देश ने (सरकार ने) पहचानने और मानने से इंकार कर दिया है, उनका आइडेण्टीफिकेशन, रिकॉगनाइजेशन, और एक्रेडेशन, एफिलियेशन सब पूरी तरह नकार दिया गया है, महज एक विशिष्ट पैराग्राफ के साथ कि राम एक काल्पनिक चरित्र या व्यक्तित्व थे, एक मिथक थे, उनका वास्तविक अस्तित्व कभी नहीं रहा, उनका कोई ऐतिहासिक प्रमाण, वैज्ञानिक प्रमाण और वजूद सिद्ध नहीं है, तथाकथित सेतु (राम सेतु) कभी बनाया ही नहीं गया, राम और रावण का युद्ध कभी हुआ ही नहीं । एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) मानव निर्मित नहीं प्राकृतिक है । वगैरह वगैरह ।
बकौल हिन्दू धर्म ग्रंथ-
रघुवंश में जन्मे राजा दशरथ अयोध्या के राजा थे, उनके चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे । राम सबसे बड़े थे उनकी पत्नी सीता जनकपुर की रहने वाली थीं । लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला थीं, भरत की पत्नी माण्डवी थीं, शत्रुघ्न की पत्नी श्रुतिकीर्ति थीं ।
राम को पिता की आज्ञावश 14 साल के लिये वनवास जाना पड़ा, लक्ष्मण और सीता उनके साथ वनवास चले गये, वहॉं सीता का रावण ने अपहरण कर लिया । फिर राम ने वानर भालूओं और पक्षीयों की मदद से पता लगाया कि सीता कहॉं है ।
पता लगा कि दक्षिण में लंका नामक एक राज्य है, वहॉं का राजा रावण है, रावण ब्राहमण था, विद्वान था लेकिन अनाचारी होकर ब्रहमराक्षस था । उसने सीता का अपहरण अपनी बहिन शूपर्णखां का बदला लेने के लिये किया था, और अपहरण के बाद सीता को लंका स्थित अशोक वाटिका में रखा था ।
पता लग जाने के बाद लंका पहुँचना कठिन काम था, अंगद और हनुमान बिना पुल के उछलते कूदते लंका गये और रावण को सीता की वापसी के लिये समझाया बुझाया, लेकिन रावण नहीं माना , तब राम ने युद्ध चिहिनत किया ।
चूंकि लंका समुद्र के पार थी, और राम को रावण तक पहुँचने के लिये अपनी सेना सहित समुद्र पार करना था, तब समुद्री जहाज नहीं चलते थे, पुष्कर विमान होते थे । सेना पार कराने के लिये राम ने समुद्र से अनुरोध किया और समुद्र से रास्ता देने के लिये विनय की । समुद्र ने अनुरोध नहीं माना । तब राम ने –
''विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीति, बोले राम सकोप तब भय बिन होय न प्रीति''
समुद्र पर हमला करने की कोशिश की, तो समुद्र घबरा कर राम के सामने आया और राम को समुद्र से पार जाने की तरकीब बताई ।
राम की सेना में नल और नील नामक दो विशिष्ट वानर थे । जिन्हें बचपन में श्राप लगा था कि वे जिस चीज को भी उठा कर पानी में फेंकेगे वह डूबेगी नहीं । उधर समुद्र ने मार्ग चिहिनत कर राम को बता दिया तब राम की वानर सेना ने एक पुल बनाया और उस पर से मजे से समुद्र पार कर लंका तक जा पहुँचे ।
लंका में राम और रावण का युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया और सीता को मुक्त करा कर राम वापस (पुष्कर विमान से) लौटे ।
क्या कहता है विज्ञान-
1. लंका और भारत के बीच समुद्र में जलभूगत मार्ग अवस्थित है जिसकी चौड़ाई काफी है और ऐन भारत से लंका तक है । इसे एडम्स ब्रिज यानि आदम का पुल का नाम दिया गया है ।
2. यह पुल हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित रामेश्वरम क्षेत्र से प्रारंभ होता है ।
3. बाद में नासा ने संशोधन करते हुये कहा कि यह मानव निर्मित पुल नहीं बल्कि प्राकृतिक रूप से निर्मित एक संरचना मात्र है , और समुद्र का उथला भू भाग है ।
क्या कहता है तर्क शास्त्र-
1. यदि उस समय पुष्कर विमान उपलब्ध थे तो राम ने अपनी सेना पुष्कर विमान से पार क्यों नहीं करवाई – उत्तर राम को पुष्कर विमान लंका विजय के उपरान्त लंका से मिला, उससे पूर्व राम साधन व संसाधन विहीन थे ।
2. राम की सेना के प्रमुख नायक हनुमान का पुत्र मकरध्वज था जो कि एक समुद्री मछली से उत्पन्न हुआ और उससे हनुमान का द्वंद्व युद्ध भी हुआ । प्रश्न यह है कि आखिर सीता कितने समय तक रावण के कब्जे में रहीं कि हनुमान का पुत्र भी हो गया और उनसे युद्ध करने लायक भी हो गया । हिन्दू ग्रंथों के मुताबिक एक माह अवधि तात्पर्यित है , लेकिन एक माह में – वर्तमान ऐतिहासिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ऐसा हो पाना असंभव है – उत्तर राम के समय में काल गणना की पद्धति क्या रही होगी चूंकि मामला ईसा से लाखों साल पहले का है अत: ईसवी सन पद्धति जो कि महज 2000 साल पुरानी है या चान्द्र पंचांग आधारित विक्रम संवत्सरीय पद्धति जो कि महज 2064 साल पुरानी है, या हिजरी साल जो कि 1428 साल पुराना मात्र है, से तय माह व वर्ष गणना के आधार निश्चित ही राम के काल में नहीं रहे होगें और वर्ष , मास व दिनों की गणना की भिन्न पद्धति अस्तित्व में रही होगी । संभवत: भारत का सबसे प्राचीन काल गणना पद्धति जिसे ''सौर सिद्धान्त'' कहते हैं, की काल पद्धति उस समय अस्तित्व में रही हो इसे वैदिक पद्धति में सामान्य तौर पर मान्य किया जाता है । और उस गणना में वर्ष गणना भिन्न रही हो क्योंकि हिन्दू शास्त्र ग्रंथ बार बार मूहूर्त शोधन का उल्लेख करते हैं और संस्कार पद्धति यथा नामकरण आदि का वर्णन करते हैं तो निश्चित ही गणना या ज्योतिष तो अस्तित्व में रहा ही होगा । बिना गणना पद्धति के मुहूर्त शोधन संभव नहीं है ।
3. जिसे हमने देखा नहीं तो क्या उसका अस्तित्व नहीं । हमने आस्ट्रेलिया नहीं देखा, लेकिन सब लोग कहते हैं कि विश्व में कहीं आस्ट्रेलिया है तो मैं भी मान लेता हूँ कि हॉं भाई जब सब कह रहे हैं तो होगा ही । मैंने जवाहर लाल नेहरू नहीं देखे लेकिन मेरे पिता ने देखे थे वे कहते हैं कि उनका अस्तित्व था तो मैं मान लेता हूँ कि हॉं होंगें । मैंने अपने परदादा को कभी नहीं देखा, उनकी तस्वीर या चित्र या भू आलेख या शिलालेख कहीं नहीं है, अब मैं कैसे मानूँ कि वे कभी थे, लेकिन सब कहते है और मैं वर्तमान में उनका वंशज हूँ जीवित हूँ तो अपने मूल को या अपनी जड़ को मान लेता हूँ और सामान्य तौर पर स्वीकार कर लेता हूँ कि हॉं वे रहे होगें । और इस पर मैं कोई विवाद किसी से नहीं करता, यदि उनके भूतकालीन अस्तित्व पर विवाद करूंगा, तो मैं स्वयं ही प्रश्नचिहिनत हो जाऊंगा और अपने ही अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दूंगा कि फिर मैं कहॉं से आया ।
गणित का प्रमेय सिद्ध करने का एक सामान्य सा तरीका है कि जो प्रमेय सीधे सीधे सिद्ध करना संभव न हो उसे विपरीत रीति से यानि उसकी सत्यता के विपरीत चल कर परिणाम असत्य सिद्ध होने पर उस प्रमेय को सिद्ध हुआ मान लेने का सार्वभौमिक सिद्धान्त आज तक प्रचलित व प्रतिपादित है । यदि इस सूत्र के सहारे आगे बढ़ें तो बताईये कि यदि राम या कृष्ण के होने का कोई प्रमाण नहीं है, चलिये मैं इसे मान लेता हूँ और आपके मुताबिक उन्हें काल्पनिक स्वीकार कर लेता हूँ तो अब आप उनके न होने का या अस्तित्वहीन होने का प्रमाण दीजिये, यदि इस विपरीत प्रमेय को आप सिद्ध नहीं कर सकते तो प्रमेय सिद्ध स्वीकार करिये कि वे थे और उनका अस्तित्व था या है । यदि होने का प्रमाण नहीं है तो न होने का प्रमाण दीजिये ।
इस सूत्र को सिद्ध करने में अहम बात यह है कि हमें सत्य खोजना है, प्रमाण नहीं, अर्थात साक्ष्य का अभाव या प्रमाण का अभाव किसी प्रमेय को सिद्ध करने का एक पद या एक साधन हो सकता है सम्पूर्ण प्रमेय या उसका समग्र व सिद्ध परिणाम नहीं । प्रमेय सिद्ध करने के लिये प्रमाण या अप्रमाण जो भी हो सिद्ध तो करना ही होगा ।
यदि प्रमेय सिद्ध होने से परे होकर निरपेक्ष हो उठी है और किसी वजूद या अस्तित्व का होना या न होना सिद्ध किया जाना संभव नहीं है तो गणित के दूसरे सर्वमान्य आश्रय का सहारा लीजिये और पहेली हल कर डालिये, यानि फिर इसे अभिगृहीत स्वीकार कर लीजिये यानि पाश्च्युलेट मानिये और बिना तर्क या विवाद के ग्रहण व स्वीकार कर लीजिये और इसकी प्रमेय परीक्षा मत करिये । ( अभिगृहीत या पाश्च्युलेट गणित में स्वयंसिद्ध व सत्य व मान्य किन्तु असंभव असिद्ध अवस्था नियमों व सूत्रों को कहा जाता है )
अब लाखों साल पुराने राम या उनकी सेना का वीडियो दिखाओ, या हनुमान व अंगद की न्यायालय में गवाही करवाओ या रावण का पत्नी मन्दोदरी के नाम समन जारी करवाओं और अदालत में बयान दिलवाओ – यह बातें हास्यास्पद या उपहास सा प्रतीत होकर भारतीय लोकतंत्र के लिये शर्मनाक और खोखले मस्तिष्कों की खोखली कल्पना मात्र हैं ।
अब राम को या रावण को पता होता कि उनके होने के इतने साल बाद सन 2007 में उन्हें अपने होने और अपने संग्राम को सिद्ध करना पड़ेगा तो शायद वे जरूर कुछ शिलालेख खुदवा जाते या अपना वीडियो गूगल वीडियो या यू टयूब पर अपलोड कर जाते अरे कुछ नहीं तो एक गुप फोटो खिंचवा कर तो इण्टरनेट पर डाल ही जाते । बड़ी गलती की, आखिर उन्हें क्या पता था अपने ही देश में वे बेगाने हो जायेगें । और उनके अपने ही उनसे उनके होने का सबूत मांगेंगे ।
पहले अयोध्या फिर सेतु परियोजना दोनों बार राम ही लपेटे में आये, और राम जो इतने साल निर्विवाद बने रहे देश आजाद होने के बाद विवादित हो गये ।
स्वतंत्रता संग्राम चला, मुगलों ने मन्दिर खण्डित किये, एक नितान्त लम्बे संघर्ष में राम विवादों में नहीं फंसे । हम आजाद हो गये चैन से भरपेट रोटी मिलने लगी तो बैठे ठाले राम को विवाद में घसीट लिया । किसी के लिये आस्था का सवाल बन गये तो किसी के लिये प्रमाण का । राम राम न हुये फुटबाल हो गये, सबकी पारी में खिल रहे हैं सबकी लातें खा रहे हैं , वह उन्हें उधर उछाल देता है तो दूसरा उधर ।
राम सीधे साधे थे जब तक रहे तब तक संकट भोगते रहे, अब नहीं है तो भी संकट में हैं कि नहीं हैं ।
श्रीकृष्ण चालू थे, स्वतंत्रता के बाद संकट से बच बच निकले, विवादों से दूर रह कर देश से बाहर भी पैर फैला लिये , विदेशी चेले चेलियों की फौज बना ली, अपनी गीता के हर भाषा में अनुवाद करवा डाले । स्वतंत्रता संग्राम में भी घुस बैठे, गांधी, तिलक, सुभाष चन्द्र बोस, राम प्रसाद विस्मिल, भगत सिंह से लेकर हर शहीदे आजम को गीता पढ़वा दी और भाष्य लिखवा लिये । अब भी छाये हैं तब भी छाये थे । वे जीवन काल में विवादित रहे अब निर्विवाद हो गये । राम के साथ उल्टा हुआ ।
चाणक्य ने शायद इसीलिये कहा कि जंगल में देखो सिर्फ सीधे पेड़ ही काटे जाते है, टेढ़े मेढ़े पेड़ कोई नहीं काटता ।
भारत की राजनीति में नागनाथ भी हैं सांपनाथ भी । वे राम नाम का कटोरा थामे ही रहते हैं , और दिल्ली पर सत्तासीन हो जाते हैं, राम उन्हें बार बार चान्स भी खूब देते हैं , पहले अयोध्या काण्ड और अब सेतु काण्ड अगली बार फिर कोई नई चीज मिल ही जायेगी । उनके लिये भी मजे की बात है कि राम के बारे में कुछ भी कह दो मानना ही पड़ेगा । अगर वे कहेंगें कि राम ने अमुक जगह स्नान किया था या अमुक जगह विश्राम या कुछ और किया था तो मानना ही पड़ेगा कि भई किया होगा । अब हम तो उस वक्त थे नहीं, वे रहे होगें अब वे कह रहे हैं तो मानना पड़ेगा ।
मुसलमानों के अल्लाह, खुदा या पैगम्बर का होने या अस्तित्व का क्या सबूत है, या ईसा मसीह के होने का या वीनस के होने का क्या सबूत है, बाइबिल में वर्णित ईसा मसीह के चमत्कारों का क्या सबूत है, कुरान शरीफ की आयतों में कथित बातों और दुआओं का क्या सबूत है । ताबीज टोने टोटके तंत्र मंत्र यंत्र आदि का क्या सबूत है । जरा मुसलमानों से या ईसाईयों से कह कर देखिये, एक झापड़ में तबियत ठीक कर देंगें । शाहजहॉं के होने का क्या सबूत है, औरंगजेब के होने का क्या सबूत है, या भारत के होने का क्या सबूत है, जरा और आगे चलिये आपके सबूत विश्वसनीय और सच्चे व सही हैं इसका क्या सबूत है । सबूत का सबूत मांगना लाजमी है क्योंकि मसला जरा टेढ़ा है ।
दरअसल सबूत जिन्हें आप कहते हैं या मानते हैं, वे फिजीकल यानि भौतिक है , भौतिक वस्तुयें तो रची जा सकतीं हैं या कृत्रिम हो सकतीं हैं, कृत्रिम रत्न, कृत्रिम पाषाणखण्ड, या कृत्रिम शिलालेख या कृत्रिम पाण्डुलिपियॉं या कृत्रिम ऐतिहासिक दस्तावेज या कृत्रिम डेटिंग सिस्टम (कार्बन डेटिंग) आखिर आप किसे सबूत मानते हैं ।
पत्थर कितना पुराना है आखिर कमाल की बात है कैसे तय किया जा सकता है, नये पत्थर कुदरत में बन ही कहॉं रहे हैं , जो भी हैं सब पुराने ही हैं । बस खदान खोदते जाओ निकालते जाओ फिर भी बता दिया जाये कि कतना पुराना है कमाल की बात है । जहॉं तक सर्फेस यानि सतह टेस्टिंग का सवाल है, हिन्दू मूर्तियां व पत्थर जो कहीं दबे या ढंके हैं और जिनकी सतह धूल मिटटी और काई से अछूती रही है, यानि उनकी परत यथावत है उनकी डेटिंग क्या संभव है । पत्थर की उम्र तो एक ही है वह यह कि वह कब पैदा हुआ, न कि यह कि कब उसकी मूर्ति या शिलालेख बना ।
विज्ञान में अनेक ऐसी विधियां उपलब्ध है । एक ताजा पत्थर को चन्द घण्टों के लिये रासायनिक क्रियाओं के सम्पर्क में लाईये वह हजारों साल पुरानी डेटिंग देने लगेगा । यही हाल कागजों और दस्तावेजो या पाण्डुलिपियों का है थोड़ी सी रासायनिक क्रिया के बाद ही वे युगों पुराने बन जाते हैं ।
क्रमश: जारी अगले अंक में .......
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