बुधवार, 26 सितंबर 2007

भारतीय चिकित्सा पध्दतियां और होम्योपैथी-आयुष शिक्षा का विकास

भारतीय चिकित्सा पध्दतियां और होम्योपैथी-आयुष शिक्षा का विकास

भारतीय चिकित्सा पध्दतियां और होम्योपैथी, जिसे आजकल आयुष (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिध्द और होम्योपैथी का परिवर्णी शब्द) चिकित्सा पध्दतियां कहा जाता है, के अंतर्गत भारत में उत्पन्न और विदेश में उत्पन्न, दोनों ही तरह की वे चिकित्सा पध्दतियां शामिल हैं, जिन्हें कालांतर में आधिकारिक मान्यता प्राप्त हुई। भारत में प्रारंभ हुई प्रणालियों में आयुर्वेद, सिध्द, योग और प्राकृतिक चिकित्सा शामिल हैं। होम्योपैथी का सूत्रपात जर्मनी में हुआ, और यह 18वीं सदी के प्रारंभ में भारत में आयी। यूनानी चिकित्सा पध्दति मूल रूप से ग्रीस में प्रारंभ हुई और अरब देशों में विकसित हुई। यह 9वीं सदी के आसपास उस समय भारत आयी, जब चिकित्सा के क्षेत्र में भारतीय और फारसी विचारों का आदान-प्रदान हुआ। कालांतर में यूनानी पध्दति भारतीय पध्दति में समाहित हो गयी, और आज यह किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में अधिक लोकप्रिय है।

नीति समर्थन

भारतीय चिकित्सा पध्दतियां और होम्योपैथी को नीतिगत समर्थन 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही मिल रहा है। तत्संबंधी नीति के लक्ष्यों में आयुष के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का विस्तार, तत्संबंधी सुविधाओं को मुख्य धारा में लाना, गुणवत्ता नियंत्रण और शिक्षा एवं औषधियों का मानकीकरण, उभरती हुई स्वास्थ्य जरूरतों से संबध्द अनुसंधान एवं विकास और आयुष प्रणालियों की सक्षमता और संभावनाओं के प्रति जागरूकता पैदा करना शामिल है। इस नीति का लक्ष्य आयुष प्रणालियों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल विरतण व्यवस्था के साथ एकीकृत करना भी है।

       आयुष के प्रोत्साहन और विकास के लिए आयुष विभाग द्वारा संभावना वाले निम्नांकित क्षेत्रों की पहचान की गयी है :

; शिक्षा के स्तर में सुधार और उन्नयन;

; गुणवत्ता नियंत्रण और मानकीकरण;

; कच्चे माल की निरंतर उपलब्धता;

; प्रणालियों की प्रभावोत्पादकता के बारे में अनुसंधान एवं विकास;

; राष्ट्रीय स्वास्थ्य, देखभाल, वितरण प्रणाली में अयूश को मुख्य धारा में लाना और

; जागरूकता एवं सूचना।

1995 में आयुष यानी भारतीय चिकित्सा पध्दति एवं होम्योपैथी नाम के अलग विभाग की स्थापना के बाद से आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी एवं सिध्द प्रणालियों सहित देशी चिकित्सा प्रणाली के संवर्ध्दन एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए अनेक उपाय किए गए हैं। नौंवी पंचवर्षीय योजना की प्रारंभिक अवधि का इस्तेमाल अंतरालों की पहचान करने, उन अंतरालों को दूर करने के लिए कार्यनीति विकसित करने, उपयुक्त स्टाफ की नियुक्ति#भर्ती आदि के लिए किया गया। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, गुणवत्ता पूर्ण औषधियों के विकास, अनुसंधान प्रोत्साहन और प्रणालियों को मुख्य धारा में लाने के प्रयासों और विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन की शुरूआत का संकेत इस बात से मिलता है कि दसवीं पंचवर्षीय योजना, विशेषकर 2004-05 की अवधि से आयुष योजना कार्यक्रमों के अंतर्गत परिव्यय में भारी वृध्दि की गयी। योजना परिव्यय 2002-03 में 89.78 करोड़ रुपये था, जिसे 2005-06 में 290.96 करोड़ रुपये कर दिया गया। 2006-07 में यह खर्च बढ़कर 320 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। इन प्रयासों को आगे जारी रखते हुए भारतीय चिकित्सा पध्दतियों एवं होम्योपैथी के बारे में 2002 में राष्ट्रीय नीति तय की गयी। इसमें यह प्रावधान किया गया कि भारतीय चिकित्सा पध्दतियों और होम्योपैथी के संवर्ध्दन एवं विकास के लिए योजना कार्यक्रमों के वास्ते धन आवंटन में बढ़ोतरी की जाए। तदनुरूप, आयुष विभाग के लिए योजना परिव्यय की हिस्सेदारी (10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान कुल स्वास्थ्य परिव्यय के 2.5 प्रतिशत से) बढ़ाकर स्वास्थ्य संबंधी कुल योजना बजट का 10 प्रतिशत की गयी। इसी तरह कुल स्वास्थ्य परिव्यय में भारतीय चिकित्सा पध्दतियों और होम्योपैथी से संबंधित योजना कार्यक्रमों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान अतिरिक्त#नई योजनाएं प्रस्तावित की गयी हैं, ताकि गैर सरकारी#निजी क्षेत्र में मान्यता प्राप्त आयुष उत्कृष्टता केन्द्रों का विकास किया जा सके, आयुष औद्योगिक समूहों के लिए सामान्य सुविधाएं प्रदान की जा सकें, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मजबूत किया जा सके और अस्पतालों में विशेषज्ञता क्लिनिकों की स्थापना के लिए सरकारी-निजी भागीदारी प्रोत्साहित की जा सके। साथ ही दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान कार्यान्वयन के जरिए प्राप्त अनुभवों के संदर्भ में मौजूदा केंद्र प्रायोजित योजनाओं में संशोधन करने पर भी विचार किया जा रहा है, ताकि उन्हें अधिक संकेन्द्रित और कारगर ढंग से अमल में लाया जा सके। घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार की कच्चे माल की जरूरत पूरी करने के लिए औषधीय पौधों के संरक्षण और खेती की योजनाओं पर 11वीं पंचवर्षीय योजना के प्रस्तावों में पर्याप्त ध्यान दिया गया है, ताकि उनकी पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए तत्संबंधी आवंटन दसवीं पंचवर्षीय योजना के 134.21 करोड़ रुपये के आवंटन की तलना में 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 1000 करोड़ रुपये से अधिक आवंटन किया गया है। इन उपायों#परिवर्तनों को देखते हुए विभाग की योजनाओं के परिव्यय में 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान भारी बढ़ोतरी करने का प्रस्ताव है। लाभार्थियों को केन्द्रीय सहायता के हस्तांतरण में होने वाले विलंम्ब में कमी लाने के लिए आयुष विभाग की केंद्र प्रायोजित योजनाओं के अंतर्गत धन का आवंटन वर्ष 2007-08 से राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण समितियों के जरिए प्रारंभ किया गया है।

      तेजी से बदलते माहौल में विभाग ने अपने को एक गतिशील और लचीले संगठन के रूप में विकसित करने की आवश्यकता महसूस की है। इसके लिए प्राथमिकता क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के नीतिगत उपाय किए जा रहे हैं। इनमें शैक्षिक मानकों का उन्नयन, गुणवत्ता नियंत्रण और औषधियों का मानकीकरण, कच्चे माल की उपलब्धता में सुधार, समयबध्द अनुसंधान और प्रणालियों की प्रभावोत्पादकता के बारे में जागरूकता पैदा करना तथा भारत से बाहर आयुष का प्रचार करना, जैसे उपाय शामिल हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) और प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य जैसे कार्यक्रमों के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल वितरण प्रणाली में आयुष को शामिल करने पर भी बल दिया जा रहा है।

      विभाग शिक्षा का स्तर बनाये रखने को वरीयता देता है। विभिन्न प्रणालियों की शिक्षण और क्लिनिकल पध्दतियां कायम करने के लिए मौजूदा राष्ट्रीय संस्थानों को सुदृढ़ बनाने के प्रयास किए गए हैं। विभाग इस बात पर भी जोर दे रहा है कि कुकुरमुत्तो की तरह बढ़ रहे घटिया कालेजों की संख्या पर रोक लगायी जाये और यह लक्ष्य हासिल करने के लिए नियामक परिषदों एवं राज्य सरकारों का सक्रिय सहयोग लिया जाए। नियामक अधिनियमों में संशोधन किया गया है, ताकि नए कालेजों की स्थापना की अनुमति प्रदान करने, प्रवेश क्षमता में वृध्दि और अध्ययन के नए तथा उच्चतर पाठयक्रमों में बढ़ोतरी करने के अधिकार केंद्र सरकार को सौंपे जा सकेें।

केन्द्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद

      केन्द्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद एक सांविधिक निकाय है, जिसका गठन केन्द्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1970 के अंतर्गत किया गया है। इस केंद्रीय परिषद के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं :

त्) भारतीय चिकित्सा पध्दतियों यानी आयुर्वेद,सिध्द और यूनानी तिब्ब. में न्यूनतम शैक्षिक मानक निर्धारित करना।

त्त्) आईएमसीसी अधिनियम, 1970 की दूसरी अनुसूची में वर्णित चिकित्सा योग्यताओं को मान्यता प्रदान करने तथा मान्यता समाप्त करने संबंधी मामलों में सरकार को परामर्श देना।

त्त्त्) भारतीय चिकित्सा के बारे में केन्द्रीय रजिस्टर बनाना और उसे समय समय पर संशोधित करना।

त्ध्) चिकित्सकों द्वारा अपनाए जाने के लिए व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और आचार संहिता के मानक निर्धारित करना।

ध्त्) केन्द्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद आयुर्वेद, सिध्द और यूनानी में शिक्षा के एक समान मानदंड बनाए रखने और इन प्रणालियों में प्रैक्टिस को नियमित करने के प्रति जिम्मेदार है। इन प्रणालियों में स्नातक और स्नातकोत्तार शिक्षा के लिए समान पाठयक्रम और अध्ययन सामग्री पहले ही तय की जा चुकी है।

आयुर्वेद में शिक्षण और प्रशिक्षण में सुधार के पिछले 50 वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में 22 विशेषज्ञता क्षेत्रों का विकास किया जा चुका है।

इसी प्रकार यूनानी चिकित्सा पध्दति (यूएसएम) में सुधार के पिछले 50 वर्षों के दौरान आठ स्नातकोत्तर विभागों की स्थापना की जा चुकी है। केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति लेकर विभिन्न प्रकार के नियम भी बनाए गए हैं। जरूरत के मुताबिक समय समय पर इन नियमों में संशोधन भी किया गया है। परिषद ने व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और भारतीय पध्दतियों की प्रैक्टिस के लिए आचार संहिता भी निर्धारित की है। परिषद ने विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान की जाने वाली चिकित्सा योग्यताओं को आईएमसीसी अधिनियम, 1970 की दूसरी अनुसूची में शामिल करने के मुद्दे पर विचार किया है और अपनी उपयुक्त सिफारिशें केंद्र सरकार को भेजी हैं।

भारतीय चिकित्सा पध्दतियों का केन्द्रीय रजिस्टर तैयार करना और उसका रखरखाव केन्द्रीय परिषद के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। आईएमसीसी अधिनियम, 1970 के प्रावधान के अनुसार केन्द्रीय परिषद भारतीय चिकित्सा पध्दतियों के केन्द्रीय रजिस्टर का रखरखाव करती है।

केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद

केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद का गठन केन्द्र सरकार द्वारा केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद अधिनियम, 1973 के प्रावधानों के अंतगर्त किया गया। इसका प्रमुख उद्देश्य देश में होम्योपैथी चिकित्सा शिक्षा का नियमन, होम्योपैथी के केन्द्रीय रजिस्टर का रखरखाव और तत्संबंधी अन्य कार्य तथा होम्योपैथी के चिकित्सकों के व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और आचार संहिता के मानकीकरण की व्यवस्था करना है। केन्द्रीय परिषद ने होम्योपैथी में शिक्षा के न्यूनतम मानक निर्धारित किए हैं, जिनके आधार पर भारत में विश्वविद्यालय, संस्थान या बोर्ड मान्यताप्राप्त चिकित्सा योग्यता प्रमाणपत्र प्रदान करते हैं।

राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान

राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान की स्थापना 7 फरवरी 1976 को भारत सरकार द्वारा जयपुर में की गई थी। यह देश में आयुर्वेद का शीर्ष संस्थान है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ आयुर्वेद चिकित्सा पध्दति के सभी पहलुओं में शिक्षण, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान गतिविधियों में संलग्न है और साथ ही आयुर्वेद में पीएच.डी करने वाले बाहरी शोधार्थियों का मार्ग-दर्शन भी करता है।

राष्ट्रीय सिध्द संस्थान

राष्ट्रीय सिध्द संस्थान, चेन्नई आयुष विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्ता संगठन है। संस्थान का उद्देश्य सिध्द प्रणाली के विद्यार्थियों के लिए चिकित्सा देखभाल प्रदान करना, इसके विभिन्न पहलुओं में अनुसंधान का संचालन करना, और इस पध्दति का विकास, संवर्ध्दन एवं प्रचार करना है।

      संस्थान ने छह विशेषज्ञता क्षेत्रों में स्नातकोत्तार पाठयक्रम प्रारंभ किया है। प्रत्येक विशेषज्ञता क्षेत्र में पांच विद्याथियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था है।

राष्ट्रीय होम्योपैथी संस्थान

राष्ट्रीय होम्योपैथी संस्थान, कोलकाता, की स्थापना दिसम्बर 1975 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्ता संगठन के रूप में की गई। यह देश में होम्योपैथी का एक आदर्श संस्थान है।

      संस्थान के मुख्य उद्देश्यों में होम्योपैथी में बढ़ोतरी एवं विकास को प्रोत्साहित करना; स्नातक एवं स्नातकोत्तार तैयार करना; विभिन्न पहलुओं में अनुसंधान संचालित करना; रोगियों को होम्योपैथी के जरिए चिकित्सा देखभाल प्रदान करना और अनुसंधान, मूल्यांकन, प्रशिक्षण, परामर्श और मार्गदर्शन के लिए सेवाएं एवं सुविधाएं प्रदान करना तथा होम्योपैथी के विभिन्न पहलुओं में स्नातक एवं स्नातकोत्तार शिक्षा में शिक्षण पध्दतियां विकसित करना शामिल है।

राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान

राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान, पुणे, का पंजीकरण 1984 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत किया गया और यह 1986 में बापू भवन में अस्तित्तव में आया। इसका नामकरण महात्मा गांधी के नाम पर किया गया। इसके उद्देश्यों में देश भर में प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा देना और प्रचारित करना, उसे एक पध्दति एवं जीवन शैली के रूप में विकसित करने के लिए अनुसंधान संचालित एवं प्रोत्साहित करना, तत्संबधी सुविधाएं मुहैया करना और इस पध्दति में सभी प्रकार के उपचार, बीमारियों की रोकथाम और बेहतर स्वास्थ्य के लक्ष्य हासिल करने की सुविधाएं प्रदान करना शामिल हैं। यह संस्थान पूरे भारत में प्राकृतिक चिकित्सा का संवर्ध्दन और प्रचार करने वाले गैर-सरकारी संगठनों को सहायता अनुदान भी प्रदान करता है।

राष्ट्रीय यूनानी चिकित्सा संस्थान

राष्ट्रीय यूनानी चिकित्सा संस्थान, बंगलौर, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्ता संगठन है। यह भारत सरकार और कर्नाटक सरकार का संयुक्त उपक्रम है, जिसकी स्थापना 1984 में की गयी थी। इसके उद्देश्यों में यूनानी चिकित्सा के पुरातन सिध्दांतों की संभावनाओं को खंगालना, इस पध्दति का वैज्ञानिक आधार पर निर्माण करना, यूनानी पध्दति में स्नातकोत्तार विद्यार्थियों और अनुसंधान-कर्ताओं को बढ़ावा देना तथा संस्थान को एक उत्कृष्टता केन्द्र के रूप में विकसित करना शामिल है।

आयुर्वेद स्नातकोत्तर शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय

आयुर्वेद स्नातकोत्तार शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जामनगर का अभिन्न अंग है। यह आयुर्वेद के स्नातकोत्तार केन्द्रों में सबसे पुराना है, जिसकी स्थापना सरकार द्वारा की गयी और जिसके रखरखाव एवं विकास के लिए सरकार अनुदान के माध्यम से पूर्ण वित्ता-व्यवस्था करती है।

राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ

राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ (आरएवी), नई दिल्ली स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्ता निकाय है जिसकी स्थापना फरवरी 1988 में की गयी थी। इसका लक्ष्य जाने-माने विशेषज्ञों के माध्यमों से युवा पीढ़ी को आयुर्वेद का ज्ञान हस्तांतरित करना है। विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के मौजूदा आयुर्वेद शिक्षण और प्रशिक्षण पाठयक्रमों में मूल आयुर्वेद ग्रंथो जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, वाग्भट्ट की जानकारी और परम्परागत कौशल, जैसे नाड़ी विज्ञान, नेत्र विज्ञान, अस्थि चिकित्सा आदि का अभाव है। ये सभी कौशल वैद्य कुल परम्परा के माध्यम से सीखे जा सकते हैं। राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ कार्यक्रम के जरिए इस अंतराल को दूर करने के प्रयास किए जा रहें हैं।

राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ 45 वर्ष से कम आयु के आयुर्वेद स्नातकों और स्नातकोत्तारों को गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करती है।

मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान

मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान (एमडीएनआईवाई), नई दिल्ली, का पंजीकरण 1860 के सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत किया गया और इसने अप्रैल 1998 से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अयूश विभाग के अंतर्गत काम करना शुरू किया।

संस्थान के उद्देश्यों में योग के उत्कृष्ट केंद्र के रूप में काम करना, योग विज्ञान का विकास, संवर्ध्दन और प्रचार करना तथा उपरोक्त उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण, शिक्षण और अनुसंधान की सुविधाएं प्रदान करना और उन्हें प्रोत्साहित करना।

आयुष प्रणालियां देश में कई राज्यों में लोकप्रिय हैं। 18 राज्यों में भारतीय चिकित्सा पध्दतियों और होम्योपैथी के लिए अलग निदेशालय हैं। इसी प्रकार राज्यों में एएसयू औषधि लाइसेंसिंग प्राधिकरण, चिकित्सकों के पंजीकरण के लिए बोर्ड#परिषद और राज्य औषधीय पादप बोर्ड काम कर रहे हैं। हालांकि आयुर्वेद इन सभी राज्यों में लोकप्रिय हैं, फिर भी केरल, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, और उड़ीसा में यह पध्दति अधिक प्रचलित है। यूनानी पध्दति विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु,, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में लोकप्रिय है। होम्पयोपैथी का प्रचलन देश के सभी भागों में है, परंतु उत्तर प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडू, बिहार, गुजरात और पूर्वोत्तर राज्यों में इसका प्रयोग व्यापक रूप में किया जाता है, जहां यह अधिक लोकप्रिय है। यह भी प्रणालियां हमारे देश की संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा बन गयी हैं।

 

 

 

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