· एक और गुलामी की ओर बढ़ते भारत के कदम
· बड़ी मछलियों को छोटी मछलियों और बरगदों को चने की परवरिश का जिम्मा
ü गॉंवो की हाट मण्डियों पर लपलपाती देश के विदेशीयों की जीभें
ü किसानों और गरीबों के तबेले और अनाज की कोठीयां धन्ना सेठों के हवाले
ü देश बिकने के बाद अब गॉंवों और आम आदमी की बिक्री के लिये खुले सरकारी दरवाजे
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
भारत देश विशाल है, काश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है, हम अखण्ड है, हमारा लोकतंत्र सबसे विशाल है, बड़ी मुश्किल से हमने आजादी पायी है वगैरह वगैरह ऐसे सैकड़ों नेतियाई तकिया कलाम सुनते सुनते भारतवासीयों के कान पक गये और स्वतंत्रता संग्राम के गीतों से लेकर भजन और आरतीयों के पश्चिमीकरण से तो मानो अब संगीत में भी सड़ांध आने लगी है !
स्वामी विवेकानन्द ने कहा कि ''पश्चिम के अनुकरण से बचो, पश्चिम से सीखो मगर स्वयं की आत्महत्या किये बगैर जो अपना सकते हो अपनाओ ! पूरब से उगा सूरज पश्चिम में जाते ही डूब जाता है ! तुम भी पश्चिमोन्मुखी हुये तो डूब जाओगे !
ळमने आजादी के साठ साल के भीतर स्वामी विवेकानन्द की कही बातों को भुला दिया, भगवान श्री कृष्ण द्वारा कही बातों को भुला दिया और तो और स्कूलों में बच्चों को यह पढ़वा दिया कि राम और कृष्ण काल्पनिक लोग थे ! कल हम अपने बच्चों को पढ़वायेंगें कि इन्दिरा गांधी, जवाहर लाल, सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्रशेखर सब काल्पनिक थे ! यदि लोगों ने राम और कृष्ण को नहीं देखा तो इसमें राम या कृष्ण का क्या दोष है ? कल ऐसे कितने लोग होंगें जिन्होंने इन्दिरा गांधी, जवाहर लाल, सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्रशेखर या राजीव गांधी को देखा होगा !
पहले जमाने में यानि राम या कृष्ण के जमाने में न फोटो खिंचते थे और न कैमरे होते थे सो उस समय जैसा था वैसा मूर्ति अंकन या चित्रांकन हो गया, अब राम और कृष्ण के फोटो नहीं खिंच पाये तो इसमें राम या कृष्ण क्या कर लें ! अब तो दिनों दिन टैक्नोलॉजी विकसित हो रही है , आने वाले कल में यदि फोटो क्लोनिंग से सजीव व्यक्तित्व निर्माण संभव हुआ तो कौन विश्वास करेगा कि इन्दिरा गांधी, जवाहर लाल, सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्रशेखर के चित्र विश्वसनीय हैं !
स्कूल शिक्षा मानव मात्र की आधारिक शिक्षा होती है और वहाँ इस प्रकार की गलती या भूल या जानबूझ कर की गयी बदमाशी क्षम्य कैसे हो सकती है ? हमारा देश यदि ऐसे धृष्टता और शरारती आचरण को यदि बर्दाश्त करता है तो हमें अपनी कानूनी कमजोरीयों और संविधान के खोखलेपन को ईमानदारी से स्वीकार कर लेने में हर्ज क्या है ?
यदि हम सत्य को स्वीकार नहीं कर सकते, तो समय अपने आप सत्य के पथ पर हमें धकेल ही देता है ! हम भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और नाकारापन, अनसुनेपन और अयोग्य प्रशासकों की फौज तले योग्य प्रतिभाओं को रौंदे जाने की बीमारी च्यथा से पहले ही पीड़ित हैं और चाटुकार रिश्वतबली धन्ना सेठों की दूकान तले अपनी योग्य प्रतिभाओं को गुलाम बनाने जैसी लाइलाज बीमारी से पहले ही पीड़ित हैं, यदि ऐसे में अगर हम कहतें कि एडस और एस.एस.पी.ई सहित कैन्सर और टी.वी जैसी बीमारीयों का इलाज तो संभव है लेकिन खोखले लोकतंत्र या कमजोर लचीले और सुराखों वाले कानून का कोई इलाज संभव नहीं-तो क्या गलत है ?
हमने देश को भ्रष्टों, लापरवाहों और नक्कारखानों तथा सैकड़ों ईस्ट इण्डिया कॅम्पनीयों के हवाले कर रखा है फिर किस मुँह और किस शान से हम अपने लोकतंत्र पर गर्व करते हैं ! एक ओर देशी स्वदेशी और गांधी के ग्राम स्वराज तथा अपना देश अपना व्यापार की बात करते हैं और दूसरी ओर दोगुला या दोमुँहा व्यवहार व आचरण कर देशी विदेशीयों के हाथ देश की आजादी गिरवी रखते जा रहे हैं !
उत्तर प्रदेश में मायावती ने रिटेल यानि खुदरा पर रोक लगा कर एक बात तो जाहिर की ही है कि देशी विदेशी कम्पनीयों के खिलाफ चिन्गारी तो कहीं भड़क ही रही है, इसमें तपिश भी है और आगे होने वाले गृह-विस्फोट और गृह क्रान्ति का आगाज भी ! इस गुप्त संदेश को हालांकि सब समझ रहे हैं ! लेकिन हिम्मत या यूं कहिये कि दु:साहस अकेली मायावती ही दिखा पायी ! मायावती ने फुरसत के समय बहुत अच्छा होमवर्क किया है इसमें कोई शक नहीं और उनके प्रचण्ड बहुमत के साथ सत्तासीन होने से लेकर अब तक के उनके विचारों और बयानों को गौर से देखें तो यह तो साफ हो ही जाता है कि वह आम आदमी के काफी नजदीक से बोल रहीं हैं और अन्य दलों के पास आम आदमी की इस सोच और अहसास से दूरी बहुत अधिक है, चमचे चाटुकार और तेल लगाऊ नेता और अफसर दलों के नेताओं को अपनी चपेट में इस कदर घेर कर रखते हैं, कि भारत की जमीनी सोच और व्यवहार से सफां जुदा रखते हैं, और नेतृत्व को भारतीय भावना और जमीनी आक्रोश से परिचित ही नहीं होने देते, सब्जबागों और हवाई झूलों में झूलते नेतृत्वों के मुँह पर मायावती ने बेशक करारा झापड़ जड़ दिया है ! मायावती को आने वाले वक्त में इसका लाभ भी मिलेगा ! आम आदमी के लिये वह क्या कर रहीं हैं यह दीगर बात है लेकिन कम से कम बोल तो उसकी भाषा में ही रहीं हैं !
आगे मायावती को इससे फायदा होगा तो चमचे उन पर रिसर्च शुरू कर देंगें कभी सोशल इंजीनियरिंग का बेताज बादशाह कहेंगें तो कभी करिश्माई व्यक्तित्व या कमालवती कह डालेंगें !
चमचों और चाटुकारों से घिरे इस देश में नेता के पद पर पहुँचते ही उसके निरे हिमायती पैदा हो जाते हैं, नित नये रिश्तेदार और सम्बन्धी घेर लेते हैं और इन खरपतवारों के बीच फंस कर उसे प्राकृतिक रोशनी पानी और खाद पानी मिलना सब बन्द हो जाते हैं अंतत: नेता पराभव को प्राप्त हो जाते हैं ! मैंने सैकड़ों हजारों और कई नेताओं को यूं ही बनते बिगड़ते ओर मिटते देखा है !
विज्ञापनों पर पलता मीडिया भी आखिरी दम तक यानि नेता के ताबूत में आखिरी कील ठुकने तक सच से परहेज करता रहा है और सरकार बदलते ही केवल एक लाइन कि सरकार बदल गयी की खबर के साथ अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ लेता है और नई सरकार के संग हो लेता है , मीडिया एक वह था जिसे मुशी प्रेमचन्द, लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर जैसे लोगों ने चलाया और एक आज है ! अपवाद स्वरूप यदि कुछेक को छोड़ दें तो मीडिया की स्थिति कालगर्ल या वेश्याओं जैसी हो गयी है, जो एक फोन पर हाजिर हो कर प्रेम व्यक्त करने हमबिस्तर जा होता है और फिर नये ग्राहक की तलाश या इन्तजार शुरू कर देता है ! मीडिया मार्केटिंग या मार्केटिंग मीडिया के इस जमाने में सच तो बहुत पीछे छूट गया है और मीडिया को अपनी मार्केटिंग की तलाश है और मार्केटरों को मीडिया की दोनों इस पूरकता की पूर्ति बखूबी करने में लगे हैं !
कार्पोरेट सेक्टर, आर्गानाइज्ड सेक्टर भारत के लिये सबसे बड़े अभिशाप रहे हैं, हमने इन्हें खुले दिल अपनाया है और आम आदमी अब तक आम आदमी ही रहा है हम अभी तक उसे खास नहीं बना पाये ! आम आदमी और उसकी बात करना मीडिया की शान घटाता है दूसरे आम आदमी की बात यदि कोई मीडिया उठाता भी है तो उसकी आवाज पर कार्यवाही का स्तर क्या है यह किसी से नहीं छिपा !
बरसों पहले पुर्तगाली, और अंग्रेज व्यापारीयों ने देश की चौखट दबे पांव उलांघी और फिर बाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साये तले देश पर एकक्षत्र हुकूमत कायम कर ली ! हमारे देश का युवा लहू नदियों के मानिन्द बहा, वफादारी और गददारी के बीच एक संघर्ष चला और काफी लम्बा चला, जो तब देश द्रोही और अपराधी कहे गये बाद में वे देश भक्त और स्वतंत्रता सेनानी हो गये ! एक लम्बी दास्तान सदियों से गुजर कर अब लम्हों में सिमट गयी और आजादी के साठ साल मनाते ही देश के साठ सालीया वाकयों का सिंहावलोकन यदि करें तो महज आजादी के सठियाने के सिवा कोई मंजर नहीं दिखाई पड़ता !
हमने अपने युवाओं को और प्रतिभाओं को, देश के स्वदेशी और ग्राम स्वराज को जैसे बर्बादी की चौखट पर धकेल कर खड़ा कर दिया है !
पहले ईस्ट इण्डिया कम्पनी विदेश से आयी थी और अब हमने देशी विदेशीयों के हाथों अपनी आजादी और देश की समृध्दि गिरवी रख दी है ! हमारे लोकतंत्र की हालत इतनी खस्ता हो गयी है कि सरकार इंतजार करती है कि चम्बल के किसी दूर गांव में सब्जी बेचने का ठेका किसी कार्पोरेट या आर्गानाइज्ड सेक्टर को दे दिया जाये ! गांव का सब्जी विक्रेता ऐसी तैसी कराये, गाँव का काछी उस तथा कथित कार्पोरेट या आर्गानाइज्ड का गुलाम विक्रेता मात्र बन कर रह जाये !
हमारे गाँव में सूचना संचार और प्रौद्योगिकी तो हो लेकिन कोई देशी विदेशी कार्पोरेट या आर्गानाइज्ड सेक्टर ही यह काम करे, उस गाँव का ग्रामीण उस तथाकथित देशी विदेशी कम्पनी का महज उपभोक्ता बन कर उसे अपना पैसा देकर अपने जिले से बाहर या प्रदेश से बाहर या गाँव से बाहर भेजता रहे ! हाँ मित्र मेरा सीधा इशारा, गाँवों में खुलने जा रहे कॉमन सर्विस सेण्टर्स की ओर है, स्थानीय संस्थाओं और स्थानीय निवासीयों के बजाय, ग्राम स्वराज और ग्राम अर्थव्यवस्था को धता बता कर सरकार इन गाँवों को विदेशीयों -अपने ही देश के विदेशीयों के हवाले करने जा रही है ! इस धन्धे की बारीक बात यह है कि इसे खोलने की शर्तें ही ऐंसी है कि स्थानीय संस्थायें या निवासी इन शर्तों का पालन ही नहीं कर पायें और गांवो तक आम लोगों तक सूचना प्रौद्योगिकी के लाभ पहुँचाने की सरकारी कवायद भी महज चन्द धन्ना सेठों की तिजोरीयों में गिरवी रखने जा रही है जो स्थानीय नहीं होंगें बल्कि अपने ही देश के विदेशी कार्पोरेटर या आर्गानाइज्ड विदेशी होंगें और अब गाँव या जिले का पैसा भी जबरन जेबों से निकाल कर बाकायदा एक योजना के तहत धन्ना सेठों के पास पहुँच जायेगा !
कोई ऐसी स्वयं सेवी संस्था है जो डेढ़ करोड़ रू. सालाना का करोबार कर रही हो आपके ऐरिया में ? समझ गये आप ? नहीं समझे ? समझ जाओगे !
देश को जिस कदर कार्पोरेट और आर्गानाइज्ड के नाम पर बेवकूफ बना कर ग्राम स्वराज, स्वदेशी पन को खत्म किया जा रहा है ! आने वाला वक्त स्वयं बता देगा !
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