शनिवार, 21 अप्रैल 2007

बाबुल की दुआयें लेती जा...........

बाबुल की दुआयें लेती जा...........

मुख्‍समंत्री कन्‍यादान योजना एक बेवाक आलेख

नरेन्‍द्र सिंह तोमर''आनन्‍द'' प्रधान सम्‍पादक ग्‍वालियर टाइम्‍स

 

मुरेना 21 अप्रेल 2007 । इसमें कोई शक नहीं कि हर पिता का अरमान अपनी प्‍यारी बेटी को हसरतों से विदा करने का । बहुतेरे ऐसे भी लोग हम सबके बीच हैं, जहॉं समूचे के समूचे परिवारों को दो जून रोटी भी मयस्‍सर नहीं है ।

एक मशहूर कहावत है , कि तीन काम आदमी को तोड़ भी देते हैं, और बर्बाद कर कर्जदार भी बना देते हैं जिसमें बेटी का ब्‍याह करना और किसी चुनाव का लड़ना तथा मकान का बनवाना । यह तीन काम जिसने भी किये वही तबाह होता आया है । यह तीनों काम अच्‍छे अच्‍छों को हाथ फैलाने पर मजबूर करते हैं ।

गरीबों की कहानी भी अजीब होती है, जीवन भर रोटी के टुकड़े के लिये सारा परिवार जूझता रहता है, पूर्ति नहीं होने पर उनके परिवार के लोग उस काम को भी करने पर बाध्‍य हो जाते हैं, जिसे आम खाता पीता आदमी हेय, घृणित या तुच्‍छ समझता है । तो कई बार ऐसे परिवार मजबूरी में अपराध की राह पर कदम रख बैठते हैं ।

पेट की आग बुझाने के लिये कई बार गरीबों की बेटियों को देह व्‍यापार जैसे व्‍यवसाय मजबूरन करना पड़ते हैं ।

बड़े लोग गलत करें चाहे सही, उन्‍हें किसी बात पर दोष नहीं दिया जाता, उनके द्वारा किया हर कार्य चाहे वह सरासर गलत या आपराधिक ही क्‍यों न हो, उसे नियम या कानून का दर्जा तुरन्‍त मिल जाता है, जबकि गरीब कितना भी सही करे, उसके हर काम में दोष व गलती ढूंढ़ कर आरोपित, प्रताडि़त व लांछित करना भारतीय समाज की पुरानी आदत है । इसी लिये तुलसीदास ने कहा 'समरथ को नहिं दोष गुसाईं'

गरीब के लिये भारतीय परिवेश हमेशा दोहरे मानदण्‍ड अपनाता आया है, हम गरीब को हमेशा चोर, अपराधी और कौमजात अपराधी के नजरिये से ही नापते आये हैं, अपराध शास्‍त्र में तो खुलकर कुछ विशेष जाति और रंग रूप वाले लोगों को आपराधिक जाति कह दिया गया है, जबकि सच्‍चाई ठीक इसके विपरीत है, मेरे पास सैकड़ों उदाहरण हैं तहॉं वे राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्‍यमंत्री बनने के अलावा उच्‍च प्रशासनिक पदों तक पहुँचे हैं । लेकिन मिथ्‍या अवधारणाओं ने समाज को बहुत गहराई तक अपने में लपेट रखा है ।

गरीब की बेटी की शादी भी एक मजाक मात्र बनकर रह गयी है, अव्‍वल तो उसकी शादी या तो मजबूरन या परिस्थितियों वश हो ही नहीं पाती या यदि हो भी तो भारतीय समाज उसमें भी सौ छिद्र खोजने की कोशिश कर किसी न किसी तरह उसका चुटकुला बनाने का काम करता आया है ।

ऐसी विकट परिस्थितियों में मध्‍यप्रदेश सरकार विशेषकर व्‍यक्तिगत तौर पर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह ने गरीबों की बेटियों के विवाह कराने का एक विकट अश्‍वमेध यज्ञ प्रारंभ किया है, वाकई तहे दिल से काबिल ए तारीफ है । मध्‍यप्रदेश सरकार और शिवराज सिंह को इन गरीब कन्‍याओं का धर्म पिता कहा जाये तो कोई शक नहीं कि यह सम्‍बोधन मेरी नजर में एकदम उचित ही है, वाकई शिवराज सिंह जो कर सकता था , उससे कहीं ज्‍यादा उसने कर भी दिया और करने की हिम्‍मत भी दिखाई । हजारों लाखों बेटियों का बाबुल या जनक बन पाना हरेक की कूबत भी नहीं और मुकददर भी नहीं । भई वाकई कमाल किया है, अच्‍छी बात है ।

लाड़ली लक्ष्‍मी योजना जहॉं बेटियों के लिये वरदान ही नहीं हुयी बल्कि उनकी जीवन दायिनी भी बन गयी, इसके अलावा गरीबों के आत्‍म सम्‍मान की रक्षा का भी एक दीर्घ कालीय मूल भी सिद्ध होगी, इसमें भी शक नहीं ।

मेरी नजर में इन योजनाओं को जाति, धर्म, सम्‍प्रदाय और वर्ग विशेष के अर्जी फर्जी एजेण्‍डों के बजाय सारे के सारे समाज के लिये बिजा लाग लपेट और बिना भेदभाव लागू किये जाना ही इनका सकारात्‍मक उपलब्धियों का प्रमुख कारण रहा है ।

इससे पहले सरकारें किसी जाति या वर्ग विशेष को केन्द्रित कर योजनायें बनाती और चलाती आयी है परिणामत: न केवल वे असफल हों गयीं बल्कि सामाजिक विषमता की गहरी खाई को और पारस्‍परिक घृणा को बढ़ाती ही आयीं हैं ।

निसंदेह मध्‍यप्रदेश सरकार को और उसके मुखिया शिवराज सिंह को इसके लिये साधुवाद दिया जाना चाहिये , बल्कि पुरूस्‍कार और सामाजिक सम्‍मान भी दिया जाना चाहिये ।

इन अच्‍छी योजनाओं का अब वर्तमान तकाजा यह है , कि इन योजनाओं में केन्‍द्र सरकार को विस्‍तार दृश्‍य लागू करना चाहिये, जिससे गरीबों को इन योजनाओं में मिलने वाली इमदाद में कुछ बढ़ोत्‍तरी हो सके । और यदि ऐसा हुआ, तो सचमुच गजब हो जायेगा, मध्‍यप्रदेश सरकार जो कर सकती थी, उसने अपनी क्षमता से कहीं ज्‍यादा कर दिखाया है, अब केन्‍द्र सरकार की बारी है कि जाति वर्ग समुदाय के अर्जी फर्जी ढकोसले छोड़ कर हर तबके और हर समाज के हर आदमी के लिये एकसार विस्‍तार दृश्‍य कल्पित करे और अमल में लाये, तभी कुछ वास्‍तविक कमाल हो पायेगा ।

कोई चोर नहीं आया

इन योजनाओं के क्रियान्‍वयन और पालन की सबसे बड़ी चमात्‍कारिक विशेषता यह रही है कि ,सरकार द्वारा सबके लिये खुल्‍लेआम योजनायें छोड़ देने से लाभ लेने वाले हितग्राही केवल वही लोग रहे जो वाकई इसके पात्र थे, किसी चोरी और बेईमानी का कोई मामला सामने नहीं आया, वाकई हैरत अंगेज है । क्‍या जनता ने संदेश दिया है कि अगर चोर कहोगे तो जरूर चोरी करेंगें और बेईमानी भी वरना भारतवासीयों से अधिक ईमानदार और सच्‍चा समूचे विश्‍व में दूसरा कौन है ।

चरम उपलब्धि और सफलता के भावी संकेत इन योजनाओं की भावी सफलता सम्‍भवत: अतुलनीय हो सकती है, ऐसे पूर्वाभास हो रहे हैं । चूंकि अभी तक इन योजनाओं का ग्रास रूट लेवल यानि जमीनी स्‍तर पर प्रचार व फैलाव नहीं हो पाया था लेकिन जंगल की आग की तरह फैलती इनकी शोहरत वाकई बहुत बड़े परिणाम का खुद ब खुद आगाज करती है ।

मीडिया का रोल शर्मनाक यह सचमुच शर्मनाक व चिन्‍ताजनक है कि जब मध्‍यप्रदेश गरीब की बेटियों की शादीयां करवा रहा था, मीडिया बेशर्मी से अमीरों की शादी की प्रतीक्षा के सामने प्रतीक्षा कर रहा था, वह भी ऐसी जगह जहॉं न उसे बुलाया गया न तवज्‍जुह दी गई, फिर भी मीडिया दीवालें दरवाजें ताक ताक कर अपने को धन्‍य मानता रहा, मगर धन्‍य है अमिताभ बच्‍चन जिसने भारतीय मीडिया को उसकी जात और औकात बता कर कुत्‍तों की तरह दरवाजे के बाहर ही भौंकते रहने दिया । जब गरीब बेटियों की हजारों शादीयां हो रही थीं, मीडिया वहॉं से नदारद था, गरीब की लुगाई सारे गांव की भौजाई, यह पुरानी कहावत है, मगर भारत के मीडिया के लिये शर्मनाक और चुल्‍लू भर पानी में डूब मरने लायक ।

''वे कत्‍ल भी कर दें तो चर्चा नहीं होता, हम आह भी भरें तो हो जाते हैं बदनाम''

गरीब की बेटियों की शादी के इवेण्‍ट तो इवेण्‍ट नहीं होते, वे कवरेज योग्‍य भी नहीं होते ।

 

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