बुधवार, 18 अप्रैल 2007

न्यायालय की आसंदी पर सैंडिल फैंकने वाला दंडित

न्यायालय की आसंदी पर सैंडिल फैंकने वाला दंडित

ग्वालियर 17 अप्रैल 2007

       विगत दिनों न्यायालय विशेष न्यायाधीश अंतर्गत अ.जा./ अ.ज.जा. (अत्याचार निवारण) अधिनियम एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश श्री आर.के. महाजन के न्यायालय से हत्या के मामले में सजा दिये जाने पर एक आरोपी जगमोहन ने न्यायालय में आसंदी की तरफ अपने सैंडिल एक-एक करके उछाले ।

       जिला एवं सत्र न्यायाधीश ग्वालियर श्री एन.के. गुप्ता ने बताया कि इस संबंध में न्यायालय ने न्यायालयीन अवमानना का एक मामला माननीय उच्च न्यायालय को रेफर किया था । माननीय उच्च न्यायालय की खण्ड पीठ जिसमें माननीय न्यायमूर्ति श्री ए.के. गोहिल तथा माननीय न्यायमूर्ति श्री एस.ए. नकवी थे ने 13 मार्च 07 को आदेश पारित किया तथा जगमोहन को न्यायालयीन अवमानना के लिए तीन माह के साधारण कारावास की सजा और एक हजार रूपये के अर्थदंड से दंडित किया ।

       माननीय उच्च न्यायालय में जगमोहन ने यह स्वीकार किया कि उसने सजा हो जाने के बाद सैंडिल आसंदी की तरफ उछाले थे परन्तु ऐसा मानसिक सदमें के कारण अपना आपा खो बैठने से करना बताया तथा बिना शर्त क्षमा याचना की थी । माननीय उच्च न्यायालय ने उसकी क्षमा याचना पर विचार करते हुए यह कहा कि जगमोहन पुलिस का एक सिपाही रहा है जिस पर हत्या का मामला इन आधारों पर था कि उसने एक महिला पिंकी को रखा हुआ था और पिंकी के लिए गिज्जू से उसने बलपूर्वक एक मकान दिलवाया और उसके बाद भी पिंकी को और पैसे दिलवाना चाहता था, जिसके लिए मना करने पर गिज्जू पर पिस्तौल से फायर कर उसकी हत्या कर दी । अत:  शुरू से ही जगमोहन का आचरण उद्ण्डता और अवज्ञा का माना गया । ऐसी अवस्था में माननीय उच्च न्यायालय ने ठहराया कि उसने सदमे या मानसिक अस्थिरता के कारण सैंडिल नहीं फैंके, बल्कि उसका कृत्य साशय न्यायालय की अवमानना का था । माननीय उच्च न्यायालय ने विभिन्न उध्दरणों का वर्णन करते हुए यह ठहराया कि किसी भी व्यक्ति को अपने विरूध्द मामला निर्णित हो जाने पर न्यायालय में किसी प्रकार की अशिष्टता या ऐसी कोई बात करने का अधिकार नहीं है जिसमें न्यायालय का अपमान होता हो । यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार का अपमान करता है तो उसके ऐस दुष्कृत्य को कड़ाई के साथ लिया जाना चाहिए ।

 

कोई टिप्पणी नहीं: