इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय को विश्वस्तरीय शिक्षा एवं शोध संस्थाओं की श्रेणी में खड़ा करना है- श्री अर्जुन सिंह
श्री अर्जुन सिंह ने आज अमरकंटक में राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी
मानव संसाधन विकास मंत्री श्री अर्जुन सिंह ने आज मध्य प्रदेश में अमरकंटक में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी । इस अवसर पर श्री अर्जुन सिंह ने कहा, न्न मैं इस अवसर पर यह भी कहना चाहूंगा कि यदि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय को विश्वस्तरीय शोध और अध्ययन की संस्थाओं की श्रेणि में खड़ा करना है तो इसके लिए अत्यधिक परिश्रम व लग्न के साथ-साथ इस क्षेत्र के विकास और यहां के समुदाय के प्रति एक विशेष लगाव भी आवश्यक है और विश्वविद्यालय के मूल उद्देश्यों की सफल पूर्ति के लिए कई तरह की कुरबानियां भी देनी होंगी ।
देश में जनजातीय आबादी के लिए उच्च शिक्षा और शोध सुविधाओं के क्षेत्र में सुविधाएं जुटाने तथा इसे बढावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मध्य प्रदेश के अमरकंटक में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय नामक केन्द्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया है । इससे जनजातीय क्षेत्र में विकास को महत्वपूर्ण दिशा मिल सकेगी । अमरकंटक में मुख्यालय के अतिरिक्त विश्वविद्यालय के अनेक क्षेत्रीय केन्द्र और कैम्पस भी होंगे तथा इसके क्षेत्राधिकार को पूरे भारत में विस्तृत किया जाएगा।
मंत्री महोदय ने आज सुबह अमरकंटक में जवाहर नवोदय विद्यालय के प्रांगण में विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी । इस अवसर पर मध्य प्रदेश के वन एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री श्री विजय शाह और शहडौल से सांसद श्री दलपत सिंह परास्ते भी मौजूद थे । जाने-माने गांधीवादी और राष्ट्रीय सेवा योजना के संस्थापक डॉ. एस एन सुब्बाराव भी इस अवसर पर उपस्थित थे ।
इस अवसर पर श्री अर्जुन सिंह के उद्बोधन का मूल पाठ इस प्रकार है --
आज आप सभी के बीच नये भारत के निर्माताओं में से एक स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी के नाम से जुड़े राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना के अवसर पर उपस्थित होकर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता है। यह एक ऐतिहासिक अवसर है और राष्ट्र के लिए गौरव का दिन है। व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए मेरे सार्वजनिक जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण दिन है, जब आदरणीय इन्दिरा जी के नाम पर इस नये केन्द्रीय विश्वविद्यालय का शिलान्यास करने का सौभाग्य मुझे मिला।
आज हम अमरकंटक की पावन भूमि में एक ऐसे ज्योतिस्तंभ को स्थापित करने जा रहे हैं, जो ज्ञान-विज्ञान की रोशनी से देश के जनजातीय क्षेत्रों में युवावर्ग को भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए नई दिशा देगा और जो दुनिया के किसी भी बेहतर से बेहतर शिक्षा केन्द्र से कम नहीं ऑंका जाएगा। इस विश्वविद्यालय का क्षेत्राधिकार देशव्यापी होगा और इसे अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की तरह केन्द्र सरकार द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के माध्यम से वित्तीय सहायता दी जाएगी।
उच्च शिक्षा में जन-जातीय समुदाय की कम भागीदारी एक गम्भीर मुद्दा है। 11.6 के राष्ट्रीय सकल प्रवेश अनुपात की तुलना में जन-जातियों का अनुपात केवल 6.61 है। जन-जातियों में बालिकाओं का उच्च शिक्षा में अनुपात तो और भी कम (4.69) है। उच्च शिक्षा में जन-जातियों के युवावर्ग का दखल कम होने के कारण उनका शैक्षणिक और आर्थिक स्तर तुलनात्मक रूप से कम है और विकास की दौड़ में उपलब्ध अवसरों का पूरा लाभ नहीं उठा पाने से वे पिछड़ जाते हैं।
उत्तर-पूर्वी राज्यों, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, झारखण्ड, उड़ीसा, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में जन-जातियों की संख्या बहुतायत है। जहाँ प्रत्येक उत्तर-पूर्वी राज्य में कम-से-कम एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय उपलब्ध है, वहीं देश के अन्य जन-जातीय बाहुल्य इलाकों में कोई भी केन्द्रीय विश्वविद्यालय नहीं है। लेकिन यह केन्द्रीय विश्वविद्यालय, जो अमरकंटक में स्थापित किया जा रहा है, को इस बात का अधिकार रहेगा कि वह अन्य जन-जातीय बाहुल्य इलाकों में क्षेत्रीय कैम्पस खोल सकेगा।
इस विश्वविद्यालय का नाम एक ऐसे व्यक्तित्व पर रखा गया है, जो जनजातियों के विकास के लिए आजीवन संघर्ष करती रहीं। इन्दिरा जी सदैव जनजाति समुदायों के धैर्य, उनकी असीम क्षमता और कठिन परिस्थितियों में जुझने की ताकत से प्रभावित रहीं और कई अवसरों पर उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वे जनजातीय समुदाय से घुल-मिलकर कितना आनन्द अनुभव करती थीं। वह मानती थीं कि आदिवासी समुदाय में आर्थिक अभाव के बावजूद अपार उत्साह और उमंग है। वे जनजातीय संस्कृति को बचाए रखने और बढावा देने में भी आगे रहीं। इन्दिरा जी द्वारा सृजित 20 सूत्रीय सामाजिक और आर्थिक कार्यक्रम में समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए और उन्हें शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए कई कदम उठाए थे। और जैसा आपको याद होगा कि 1980 के दशक में मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में जनजातियों को साहूकारों के कुचक्रों से परित्राण के लिए कानून बनाया गया। उनकी भूमि से उन्हें बेदखल करने वालों के विरुध्द कार्रवाई के कानून बने और इस तरह के कई अन्य सामाजिक आर्थिक न्याय संरचना के आधार बनाए। मध्य प्रदेश में तेंदुपत्ता व्यवसाय के सहकारीकरण का एक व्यापक कार्यक्रम हाथ में लिया गया था। उससे तमाम शोषण की शक्तियाँ नाराज हो गई थीं। परन्तु दृढता से उनसे मुकाबला किया गया था। आज अनेक वर्षों के बाद भी उस मूल अधिकार को वापिस नहीं लिया जा सका है। जहाँ इन्दिरा जी ने जनजातीय समुदायों से बहुत कुछ सीखा, वहीं देशभर के जनजातीय समुदायों ने स्वर्गीय इन्दिरा जी को भी अपना भरपूर स्नेह दिया। उन्होंने नेतृत्व क्षमता, कुशलता, कठिन मेहनत और अदम्य साहस पर अपनी आस्था रखी। इस राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय का नाम श्रीमती इन्दिरा गाँधी के नाम से जोड़कर भारत की संसद ने उस महान व्यक्तित्व के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की है।
आमतौर पर विश्वविद्यालय की स्थापना बड़ें शहरों के आसपास किया जाना स्वाभाविक है। इस प्रकार के स्थल-चयन में आवागमन, सम्पर्क, आवासीय व्यवस्था, सामाजिक अधोसंरचना आदि की सुलभता आमतौर पर विश्वविद्यालयों को बड़े शहरों के नजदीक स्थापित करने के कारण होते हैं। परन्तु हमने यह सब जानते हुए भी इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना जनजातीय क्षेत्र में करने का निर्णय लिया। इस सोचे-समझे निर्णय के पीछे न केवल विकास की दौड़ में पिछड़े हुए लोगों को उच्च शिक्षा से जोड़ने का ध्येय रहा है, न केवल इस क्षेत्र के युवावर्ग के लिए उच्चतम स्तरीय शिक्षा एवं शोध के दरवाजे खोलने की चाह रही है, बल्कि साथ ही यह सुसंगत तर्क भी रहा है कि यदि विश्वविद्यालयों का उद्देश्य उपलब्ध ज्ञान और विज्ञान की सम्भावना को बढाना और नए ज्ञान की खोज करना है, तो इसके लिए आवश्यक बौध्दिक क्षमता का उपयोग स्थानीय जनजाति के विकास से संबंधित विषय - जनजातीय भाषा, संस्कृति, कला, ऐतिहासिक विरासत और नैसर्गिक सम्पदा में शोध, खोज और उच्च अध्ययन के लिए किया जाना अनिवार्य है।
मैं इस अवसर पर यह भी कहना चाहूँगा कि यदि इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय को विश्वस्तरीय शोध और अध्ययन की संस्थाओं की श्रेणी में खड़ा करना है तो इसके लिए अत्यधिक परिश्रम व लगन के साथ-साथ इस क्षेत्र के विकास और यहाँ के समुदाय के प्रति एक विशेष लगाव भी आवश्यक है और विश्वविद्यालय के मूल उद्देश्यों की सफल पूर्ति के लिए कई तरह की कुर्बानियाँ भी देनी होंगी।
जैसा मैंने पूर्व में भी कहा, इस विश्वविद्यालय की स्थापना जनजातीय क्षेत्र में किए जाने के साथ-साथ यह भी तय किया गया कि विश्वविद्यालय का मुख्यालय पवित्र नर्मदा और सोन नदियों के उद्गम स्थल, अमरकंटक की इस पावन-भूमि पर स्थापित किया जाए। इस विश्वविद्यालय की स्थापना से अब धार्मिक तीर्थ और दर्शनीय स्थल के अपनी पहचान के साथ-साथ, अमरकंटक अब ज्ञान सरोवर का भी उद्गम स्थल बन गया है। यहाँ से असीम ज्ञान प्रवाहित होगा और पूरे देश और पूरा विश्व उससे लाभान्वित होगा। मैं इस संदर्भ में कहना चाहूँगा कि हमारी इच्छा है कि इस विश्वविद्यालय का परिसर अमरकंटक की वादी में ही हो। मुझे मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी ने विश्वास दिलाया है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए उपयुक्त मात्रा में जमीन उपलब्ध करेंगे और साथ ही वहाँ उपयुक्त बिजली और जल संसाधन की सुविधा भी उपलब्ध कराएँगे। मुझे पूरा विश्वास है कि उनके सहयोग से इस परिसर की संरचना जल्दी ही शुरू की जाएगी।
इस विश्वविद्यालय को, जैसा कि आप जानते हैं क्षेत्रीय कैम्पस खोलने का अधिकार दिया गया है। हमने संसद में विश्वविद्यालय के कानून के बारे में हुई बहस के दौरान यह वायदा किया है कि प्रत्येक क्षेत्रीय कैम्पस उस क्षेत्र से जुड़े ऐतिहासिक महापुरुषों के नाम से स्थापित होंगे। इस प्रकार आने वाले समय में हम शहीद वीर नारायण सिंह, पराक्रमी गुंडाधूर, बिरसा मुण्डा जी आदि के नाम पर सम्बन्धित जनजातीय क्षेत्रों में विश्वविद्यालय के कैम्पस की स्थापना कर, उन क्षेत्रों का विकास करने के साथ-साथ इन महापुरुषों को अपनी सच्ची श्रध्दांजलि भी देंगे।
यह विश्वविद्यालय अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों, आदिवासी शोध संस्थानों और अन्य उच्च शिक्षण और शोध संस्थानों के साथ अपना जीवन्त सम्बन्ध और सम्पर्क स्थापित करेगा और देश और विश्व के हर कोने से उपलब्ध ज्ञान का अपने मूल उद्देश्य की पूर्ति के लिए उपयोग करेगा। आजकल विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों की बात की जाती है, परन्तु मैं इस अवसर पर इस धारणा के प्रति भी सचेत करना चाहूँगा कि विश्वस्तरीय संस्थान केवल कैम्पस निर्माण की आधुनिक शैलियों, बहुमंजिली इमारतों, वातानुकूलित कक्षों और दिखावे के आडम्बर के आधार पर नहीं, बल्कि ज्ञान और विज्ञान के प्रति सच्ची श्रध्दा, अन्वेषण के लिए आवश्यक कौतूहल, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवीय मूल्यों के प्रति सम्मान और इन सबसे परे सादगीपूर्ण और गम्भीर आचरण से ही बन सकता है।
मैं आशा करता हूँ कि विश्वविद्यालय के सभी प्राधिकारियों का जल्द-से-जल्द चयन होगा, इस विश्वविद्यालय के कानून में यह विशेष व्यवस्था है कि विश्वविद्यालय की कोर्ट, कार्यकारी परिषद्, शैक्षणिक परिषद्, प्रशासन, अध्यापन और दाखिलों में जनजातीय समुदायों का विशेष और पर्याप्त प्रतिनिधित्व होगा।
वैसे तो 11वीं पंचवर्षीय योजना में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में केन्द्र सरकार द्वारा कई नए केन्द्रीय विश्वविद्यालय, विश्व स्तरीय संस्थान, आई.आई.टी., एन.आई.टी., विज्ञान और प्रबन्ध संस्थान खोले जाएँगे, परन्तु इन सबमें आज स्थापित होने वाले च्इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की एक अहम् भूमिका बनी रहेगी और इस विश्वविद्यालय को उसके उत्कृष्ट दर्जे पर बनाए रखने के लिए विश्वविद्यालय से जुड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति का, मध्य प्रदेश और जहाँ कहीं भी विश्वविद्यालय का कैम्पस स्थापित होगा, उन राज्य सरकारों का, और स्थानीय समुदायों का बहुमूल्य योगदान मिलता रहेगा, इसी उम्मीद के साथ मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूँ कि इस ऐतिहासिक घड़ी में आपने मुझे आमंत्रित किया। आपकी खुशहाली और विकास के लिए, इस क्षेत्र के जनजातियों के विकास के लिए, मैं अपनी शुभकामनाएँ देता हूँ। धन्यवाद !
जयहिन्द !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें