आ तुझे तेरा भगवन पुकारता, आ मेरे पास आ कब से बुला रहा....
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
राह भगवान की आसान है मगर, मंदिरों में भगवान कभी कैद न रहते ।
सर्वत्र व्यापक, सम रूप से बन्दों के दिल में हैं बसते ।
जब से मंदिरों में धनवान घुस गया, अहंकारी नेता और पुजारी चोर जा बैठा ।
भगवान मंदिरों से बाहर निकल गया, जाकर किसी गरीब की कुटिया में है बैठा ।
क्यों ढूंढ़ते भगवान को मंदिरों में फिर रहे, वह तो गीता में पहले ही कह गया ।
सर्व धर्म परित्यज्यो मामैंकं शरणं व्रज:, पहले सब छोड़ आ फिर मेरे पास आ, जाते जाते संदेश दे गया ।
मैं मिलूंगा वहॉं जहॉं पाप बहुत बढ़े, दुष्ट अधर्मी कुकर्म की प्रवृत्ति जहॉं बढ़े ।
आऊंगा हर बार सदा धर्म बचाने, साधु संत और निर्मलों के प्राण बचाने ।
पत्ते पत्ते कण कण में हर मनुज के सीने में मैं मिल जाऊंगा तुझे, जो दिल से कभी मुझे बुलाओगे ।
मुझे पाना है तो जा किसी गरीब को खोज ले, किसी जाति के अछूत को, मासूम गरीब अबला को खोज ले ।
लाज अबला की बचा , आबरू गरीब की, दे रोटी दो वक्त की, प्रभु जान उनको सम्मान दे, ये राह भगवान की ।
रोक कर चीर हरण द्रोपदी का कोई , विप्र सुदामा जान किसी को मान दे, देख फिर कहॉं हूं मैं, पहचान ले मुझे ।
मित्रता निभा अर्जुन को खोज ले, बीच रण में निहत्था हो, रथ उसका थाम ले, हो शत्रु से घिरा हुआ शर्त ये जान ले ।
भरे संग्राम में सशक्त बली के सामने न्याय कर, महाभारत सा कोई धर्मयुद्ध तो रचा ।
जा किसी कुब्जा कुबड़ी को रूप दे, जा त्याग राजभोग को किसी विदुर का साग खा ।
जा पहले किसी आतातायी कंस से निबट, कुछ अहंकारीयों के मानमर्दन तो करके आ ।
मुझे न तीर्थों में न किसी मंदिर में पायेगा, पायेगा गर तो मुझे तू खुद में ही पायेगा ।
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