विश्व आटिज्म दिवस
(2 अप्रेल 08 पर विशेष)
आटिज्म : शीघ्र पहचान व उपचार ही निदान है
श्रीमती राजबाला अरोड़ा
क्या आपने ऐसे व्यक्ति या बच्चे को देखा है जो प्रत्यक्ष रूप से तो सामान्य दिखता है लेकिन उससे बात करने पर वह न तो किसी बात का जवाब देता है व ना ही ऑंख से ऑंख मिलाकर बात करता है और न ही प्रश्न का उत्तर देता है अपितु उसी प्रश्न को दोहराता है । इस प्रकार की समस्या को आदिज्म कहते हैं ।
आटिज्म अर्थात स्वपरायणता या यूँ कहें स्वत: प्रेम, नाम से ही जाहिर है ऐसा व्यक्ति अपने आप में केन्द्रित रहता है । आटिज्म को सबसे पहले सन् 1943 में कानर ने वार्णित किया था । आटिज्म स्नायु विकास (न्यूरो डेवलेपमेंट) में आई विकृति है । यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक व्यवहारिक विकृति (डिसआर्डर) है । ऐसी अवस्थाओं के लक्षण या तो जन्म से या बच्चों के सामान्य विकास की अवधि के बाद दिखाई देते हैं । आदिज्म के लक्षणों के कारणों का अभी तक कोई वैज्ञानिक आधार स्पष्ट नहीं है परन्तु नवीन खोजों व शोधों के अनुसार इन अवस्थाओं के उद्भवों का कारण जेनेटिक तत्व है ।
यह पाया गया है कि लड़कियों की अपेक्षा लड़के आटिज्म से अधिक प्रभावित होते हैं । इनका अनुपात 1:4 है । अर्थात प्रभावितों में 80 प्रतिशत लड़के हैं । भारत में अब तक 4 करोड़ आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसआर्डर से ग्रसित बच्चों को चिन्हित किया जा चुका है ।
प्रत्यक्षतौर पर शारीरिक विकलांगता के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं । इसलिये इस प्रकार की विकृति को 'अदृश्य विकृति ' भी कह सकते हैं । ऐसे बच्चों की शारीरिक बनावट सामान्य बच्चों जैसी होती है , फिर भी हम उनके व्यवहार के आधार पर उन्हें पहचान सकते हैं ।
पहचाने आटिस्टिक व्यक्ति को
1- भाषा के आधार -
1 भाषा को समझ्ना व उनका प्रयोग करने में नाकाम भाषा अस्पष्ट ।
2 शब्दों, गानों या कविताओं को बार-बार दोहराना ।
3 संवादहीनता की कमी ।
2- सामाजिक आधार पर ।
1 ऑंख से ऑंख मिलाकर बात नहीं करते ।
2 दोस्त बनाने में उदासीन
3 अकेले खेलना पसंद । अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने के बजाय अपने से बड़े या अपने से छोटों के साथ खेलना पसंद करते हैं ।
3- असामान्य व्यवहार के आधार पर ।
1 कोई बदलाव पसंद नहीं करते , मसलन यदि टीवी या उसकी कोई वस्तु निर्धारित जगह से हटाकर दूसरी जगह रख दें तो उत्तेजित हो जाते हैं ।
2 तेज आवाज जैसे कुकर की सीटी की आवाज, जेट या हवई जहाज की आवाज पर अपने कान बंद कर लेते हैं या चिल्लाने लगते हैं ।
3 अकारण उत्तेजित हो जाते हैं ।
4 गर्म , सर्द या दर्द के एहसास की कमी होती है ।
5 घूमती वस्तु जैसे लट्टू , पंखा, पहिया के प्रति आकर्षित होते हैं ।
6 अकारण हंसना, ताली बजाना या कूदना ।
स्वपरायणता अर्थात आटिज्म से प्रभावित बच्चों की पहचान जितनी जल्दी हो सके उतनी ही जल्दी उसे सही उपचार मिलने की संभावना रहती है । जिसके परिणामस्वरूप बच्चा जल्दी ही अन्य सामान्य बच्चों की तरह जीवन की मुख्यधारा से जुड़ सकता है । दरअसल 18 माह की अविधि से ही आटिज्म प्रभावितों को पहचाना जा सकता है और तभी से उपचार की पहल भी की जा सकती है । आटिज्म की पहचान में विलम्ब अथवा उपचार में देरी प्रभावितों को मुख्याधारा में लाने का कार्य दुरूह बना देती है ।
स्वत: प्रेम या स्वपरायणता अर्थात आटिज्म की रोकथाम मुश्किल है क्योंकि इसके कारण अभी तक अस्पष्ट हैं । शीघ्र पहचान, शीघ्र उपचार व स्ट्रक्चर्ड ट्रेनिंग प्रोग्राम ही ऐसे बच्चों के लिये प्रभावी इलाज है ।
यदि आप के आसपास या परिवार में ऐसा कोई व्यक्ति अथवा बच्चा दिखाई दे तो उसे आप शिशुरोग विशेषज्ञ, मनोचिकित्सक, मनोविज्ञानी, विशेष बच्चों की देखभाल करने वाले प्रोफेशनल्स या ऐसी संस्थाएं मसलन ग्वालियर में 'रोशनी' रामकृष्ण आश्रम , स्नेहालय, एहसास जैसी संस्थाओं से भी उपचार अथवा मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं ।
श्रीमती राजबाला अरोड़ा
एम.एस.सी, बी.जे.सी.
स्पेशल एजूकेटर
स्वयंसेवी कार्यकर्ता
रोशनी, रामकृष्ण आश्रम,ग्वलियर
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