रविवार, 24 अगस्त 2008

दूसरे का धर्म दुख देने वाला होता है

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३-३५॥

It is better to perform ones own duty. Own duty (svadharmah), how- so- ever deficiently performed, is superior to the well-accomplished duty of some one else   (prescribed for some one else). Better is death in   one's own duty, as there always remains fear while performing the duty of some one else.

Lesson: For liberation from fear, perform your own obligatory duty rather than attending to the jobs prescribed for some one else.

अच्छी तरह से आचरण में लाए हुए दूसरे के धर्म से गुण रहित भी अपना धर्म अति उत्तम है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है। ॥३५॥  भगवान श्रीकृष्‍ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्‍याय 3 श्र्लोक 35

 

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

दूसरे का धर्म दुःख देने वाला है इस लिए अपने धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए. किसी और धर्म का विचार करके अपने धर्म के अनुसार आचरण न करना ग़लत है.