ज्ञानी सों ज्ञानी मिलें, होंय ज्ञान की बात । मूरख से मूरख मिलें चलिहें घूंसा लात ।।
थोड़ा बदल कर भारत के अन्य क्षेत्रों में द्वितीय पद यह है – गदहे सों गदहा मिलें, मारें लातई लात ।। भावार्थ यह है कि जब दो विद्वान या चतुर सुजान (सुज्ञान का अपभ्रंश) मनुष्य मिलते हैं तो आपस में विद्वता व ज्ञान तथा सामंजस्य युक्त व्यवहार व आचरण कर बड़ी से बड़ी समस्या का निवारण चुटकियों में आसानी से निकाल लेते हैं, किन्तु जब दो मूर्ख मनुष्य आपस में मिलते हैं तो वे बात बात पर घूंसा और लात चलाते रहते हैं, वे किसी भी समस्या का निवारण नहीं कर पाते और समस्या को उल्टे उलझाते चले जाते हैं, जैसे जब दो गधे मिलते हैं तो सारा समय एक दूसरे को लतियाते रह कर लातें मारते रहते हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस में इसी पद सार को इस प्रकार व्यक्त किया है- जहॉं सुमति तहॉं संपति नाना, जहॉं कुमति तहॉं विपति निधाना ।। अर्थात जहॉं सुमति अर्थात अच्छी मति (बुद्धि) के लोग मिल जुल कर प्रेमपूर्वक सामंजस्यपूर्ण ढंग से रहते हैं वहॉं नाना प्रकार (भांति भांति की या अनेक प्रकार की) की संपत्तियां, सुख व समृद्धियां निवास करतीं हैं, किन्तु जहॉं कुमति अर्थात दुर्बुद्धि से ग्रस्त होकर लोग आपस में कलह क्लेश युक्त वातावरण में परस्पर विद्धेष रख कर लड़ते झगड़ते हुये रहते हैं वहॉं नाना प्रकार की विपत्तियां व संकट अपने आप ही पैदा होते रहते हैं और सुख समृद्धि व समस्त संपत्ति स्वत: नष्ट हो जाती है - संकलित, प्राचीन भारतीय कहावत एवं रामचरित मानस से
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