भारत में साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने की एक और कोशिश हुई नाकाम
तनवीर जांफरी
(सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी)
भारतवर्ष दुनिया का अकेला ऐसा देश है जोकि 'अनेकता में एकता' के क्षेत्र में अपनी सबसे अलग और अनूठी पहचान र¹ता है। परन्तु मानवता की दुश्मन कुछ साम्प्रदायिक शक्तियों द्वारा भारत की इस अनूठी धर्म निरपेक्ष पहचान को सहन नहीं किया जा रहा है। आतंकवादी संगठनों के कंधों पर बैठकर यह साम्प्रदायिक शक्तियां पहले तो भारत में भीड़-भाड़ वाले स्थानों को अपना निशाना बनाया करती थीं। ंजाहिर है इसके पीछे उनका मंकसद अधिक से अधिक लोगों को हताहत करना ही हुआ करता था। इस प्रकार के कई बम धमाके देश में विभिन्न स्थानों पर हुए। परन्तु उसके बावजूद जब देश का साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ नहीं सका तो इन्हीं आतंकवादियों द्वारा भारत के प्रमु¹ धर्मस्थलों को अथवा धार्मिक त्यौहारों के अवसरों को चुनकर अपने अपवित्र इरादों के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा।
रघुनाथ मन्दिर, जम्मु तथा अक्षरधाम मन्दिर, अहमदाबाद को पूर्व में निशाना बनाया जाना इसी योजना की एक अहम कड़ी कही जा सकती है। परन्तु इतने प्राचीन व ऐतिहासिक धर्मस्थलों को निशाना बनाए जाने के बावजूद भी जब भारत के अमन पसंद नागरिक आतंकवादियों व साम्प्रदायिक शक्तियों के वरंगलाने में नहीं आए फिर इन्हीं इन्सानियत के दुश्मनों द्वारा भारत के सर्वप्रमु¹ त्यौहारों ईद और दीवाली से ठीक पहले 28 अक्तूबर 2005 को दिल्ली के उन भीड़ भरे बांजारों में बम धमाके किए गए जहां कि हिन्दू व मुसलमान दोनों ही सम्प्रदाय के लोग सामूहिक रूप से अपने-अपने त्यौहारों से संबंधित ¹रीद-ंफरोख्त करने में व्यस्त थे। कई बांजारों में एक साथ हुए इन बम विस्ंफोटों में 50 से अधिक लोग मारे गए थे जबकि 100 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे। इस हादसे के परिणामस्वरूप हालांकि प्रभावित लोगों के घरों में त्यौहार की जगह मातम का माहौल तो ंजरूर बन गया परन्तु देश के साम्प्रदायिक सद्भाव के वातावरण का फिर भी बाल बांका न हो सका।
वाराणसी के ऐतिहासिक एवं प्राचीन संकटमोचन मंदिर में किया गया विस्ंफोट भी आतंकवादियों के साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने वाले उनके नापाक इरादों की तर्जुमानी करता है। इस हादसे में भी 30 से अधिक बेगुनाह लोगों ने अपनी जानें गंवाई थीं। जब इन आतंकवादियों को देश के इतने बड़े, प्राचीन व ऐतिहासिक महत्व र¹ने वाले धर्मस्थलों में बम विस्ंफोट किए जाने तथा इन्हें अपने नापाक ¹ून से अपवित्र किए जाने पर कुछ भी हासिल नहीं हुआ, फिर इनके द्वारा अपनी आतंकी रणनीति में परिवर्तन किया जाने लगा। देश के ऐतिहासिक हिन्दू आस्था से जुड़े धर्मस्थलों को अपने आतंक का निशाना बनाए जाने के बाद जब इन्हें इनकी योजना व उम्मीदों के अनुरूप कुछ हासिल नहीं हुआ फिर इन्हीं अधार्मिक आतताईयों द्वारा ऐतिहासिक महत्व र¹ने वाले मुस्लिम लक्ष्य को अपनी हिट लिस्ट में शामिल किया गया।
14 अप्रैल 2006 को दिल्ली की प्रसिद्ध शाही जामा मस्जिद के भीतर शुक्रवार की नमांज के बाद एक बम धमाका किया गया था जिसमें लगभग 1 दर्जन लोग बुरी तरह से घायल हो गए थे। इसके पश्चात दिल्ली से लाहौर जाने वाली समझौता एक्सप्रेस की तीन बोगियों को इसी इरादे से जलाकर रा¹ कर दिया गया ताकि न सिंर्फ पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों में ¹टास पैदा हो बल्कि भारत का साम्प्रदायिक सौहार्द्र भी चूर-चूर हो जाए। परन्तु आतंकवादियों के एक के बाद एक किए जाने वाले यह सभी दुष्प्रयास लगातार असफल होते गए। उसके पश्चात महाराष्ट्र के नांदेड़ व मालेगांव में भी मस्जिद व कब्रिस्तान को शब-ए-बारात जैसे प्रमु¹ मुस्लि त्यौहार के दिन उस समय निशाना बनाया गया जबकि आम लोग इबादत करने में व्यस्त थे। इस हादसे में भी कई लोगों की जानें गईं तथा अनेकों लोग बुरी तरह से घायल भी हुए थे। आतंकवादियों द्वारा पूर्व में किए गए हमलों की ही तरह इन सभी हादसों के समय भी आम जनता का क्रोध आतंकवादियों के प्रति तो ंजरूर फूटा परन्तु भारत के आम लोगों ने अपना आपा नहीं ¹ोया तथा आतंकवादियों की मंशा के अनुरूप देश के साम्प्रदायिक सद्भाव को हरगिंज बिगड़ने नहीं दिया।
एक बार फिर भारत में ऐसा ही प्रयास आतंकवादियों द्वारा पुन: किया गया है। गत् 18 मई शुक्रवार को हैदराबाद की ऐतिहासिक मक्का मस्जिद को इन इन्सानी दुश्मनों द्वारा निशाना बनाया गया है। मक्का मस्जिद को दक्षिण भारत की सबसे बड़ी एवं ऐतिहासिक महत्व की उन मस्जिदों में गिना जाता है जिससे कि आम लोगों की गहन भावनाएं सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं। हैदराबाद स्थित विश्व के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल चारमीनार के निकट स्थित 17वीं शताब्दी में निर्मित इस मस्जिद के विषय में यह कहा जाता है कि इसके निर्माण में मक्का (सऊदी अरब) से लाई गई ईंटों का प्रयोग किया गया है। इसी कारण इसका नाम 'मक्का मस्जिद' पड़ा है। शुक्रवार की नमांज के समय हुए इस विस्ंफोट के समय हंजारों लोग इस मस्जिद में नमांज पढ़ने के लिए एकत्रित हुए थे। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस आर रेड्डी के अनुसार पिछले ढाई महीनों से केन्द्रीय गृह मंत्रालय व राज्य की ¹ुंफिया एजेन्सियों द्वारा लगातार ऐसी सूचनाएं दी जा रही थीं कि अमन के दुश्मन हैदराबाद जैसे ऐतिहासिक नगर में शान्ति भंग करने का प्रयास कर सकते हैं। आि ¹रकार आतंकवादियों द्वारा गत् 18 मई को दक्षिण भारत की इस सबसे बड़ी मस्जिद को निशाना बना ही दिया गया। यहां भी वंजू¹ाना (नमांज से पूर्व जल द्वारा पवित्र होने हेतु किया गया जल भंडारण) के समीप एक टिंफिन बाक्स में र¹े बम को रिमोट कन्ट्रोल अथवा मोबाईल ंफोन के माध्यम से उड़ाया गया। जिसके परिणामस्वरूप 13 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे जबकि दर्जनों लोग घायल हो गए।
हालांकि हैदराबाद में हुए इस धमाके के बाद हैदराबाद पुलिस ने बम विस्ंफोट के परिणामस्वरूप ंगुस्से में आई भीड़ को ंकाबू में करने के लिए निहत्थे लोगों को निशाना बनाकर ंफायरिंग कर आम लोगों के ंगुस्से को और अधिक भड़का दिया परन्तु उसके बावजूद हैदराबाद में साम्प्रदायिक सद्भाव का वातावरण पूरी तरह ंकायम रहा। हैदराबाद विस्ंफोट के विषय में कुछ लोगों का मानना है कि चूंकि इन विस्ंफोटों की प्रकृति नांदेड़, मालेगांव तथा दिल्ली की जामा मस्जिद में हुए विस्ंफोटों से मेल ¹ाती है लिहांजा यह सभी विस्ंफोट एक ही संगठन या एक ही विचारधारा के आतंकियों द्वारा किए गए प्रतीत होते हैं।
यहां भी देश के लोगों को बड़ी गंभीरता से यह समझना होगा कि पिछले सभी आतंकवादी हमलों को तथा भविष्य में इनके द्वारा अंजाम दी जाने वाली घटनाओं को भी किसी भी संप्रदाय विशेष की कारगुंजारियों के दृष्टिकोण से ंकतई न दे¹ा जाए। निश्चित रूप से जांच एजेन्सियां यथाशीघ्र इस नतीजे पर पहुंच जाएंगी कि यह बम विस्ंफोट किन संगठनों के द्वारा किए गए हैं। परन्तु हम सभी देशवासियों को कम से कम यह तो मान ही लेना चाहिए कि इन आतंकवादियों का न तो अपना कोई धर्म है, न सम्प्रदाय और न ईमान। यह शरारती तत्व किसी भी सम्प्रदाय के सदस्य तथा किसी भी संगठन से जुड़े हुए हो सकते हैं। ऐसा विचार ंकतई दिमांग में लाना ही नहीं चाहिए कि हिन्दू धर्मस्थल पर आतंक की इबारत लि¹ने वाला शख्स केवल मुसलमान ही हो सकता है अथवा मुस्लिम धर्म स्थान को निशाना बनाने वाला व्यक्ति केवल हिन्दू या ंगैर मुस्लिम। आतंकवादी का पहला धर्म तो आतंक फैलाना ही होता है। इनका धर्म अपने आंकाओं के इशारों पर मात्र रिमोट की तरह अपने निर्देशित मिशन को अंजाम देना होता है। अत: सराहना के पात्र हैं हैदराबाद के वह शान्तिप्रिय लोग जिन्होंने ऐसे संकटकालीन समय में अपनी भावनाओं को नियंत्रित र¹ा तथा ऐतिहासिक महत्व के इस प्राचीन शहर को साम्प्रदायिकता की आग में झुलसने से बचा लिया। निश्चित रूप से भारत की सहनशील जनता का आतंकवादियों द्वारा किए जाने वाले हमलों का इसी प्रकार शान्ति और भाईचारे से जवाब देना ही उनके हौसले पस्त करने का सबसे प्रमु¹ कारण बनकर रहेगा। इसके लिए ंजरूरत है साम्प्रदायिक सद्भाव व एकता को बनाए र¹ने की तथा आतंकवादियों की सभी चालों को ब ¹ूबी समझने की।
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