सोमवार, 18 अगस्त 2008

स्वावलंबन का आधार - सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम

स्वावलंबन का आधार - सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम

महावीर प्रसाद लेखक केन्द्र सरकार में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री हैं

भारतवर्ष दुनिया का सबसे युवा देश है तथा हमारी युवा श्रमशक्ति जहाँ एक ओर हमारी सबसे बड़ी ताकत है वहीं दूसरी ओर इस युवा श्रमशक्ति को रोजगार के समुचित अवसर उपलब्ध कराना हमारी सबसे बड़ी चुनौती भी है । रोजगार सृजन की दृष्टि से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र का स्थान कृषि के तुरंत बाद आता है तथा दुनिया भर की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में सूक्ष्म और लघु उद्यमों की पहचान ऐसे महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में की जाती है, जिनका रोजगार के विस्तार और निर्धनता उन्मूलन की दृष्टि से विशिष्ट योगदान है। इसीलिए इस क्षेत्र को रोजगार के स्थायी अवसर तथा स्वावलंबन का आधार माना जाता है।

 

भारत में भी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र का रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने तथा देश की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान है। यह क्षेत्र लगभग 1.3 करोड़ इकाइयों के माध्यम से लगभग 3.2 करोड़ देशवासियों को रोजगार सुलभ करा रहा है। विनिर्माण क्षेत्र में इस क्षेत्र का योगदान लगभग 45 प्रतिशत है जबकि कुल राष्ट्रीय उत्पाद में इसका अंश लगभग 9 प्रतिशत है तथा देश के कुल निर्यात में इस क्षेत्र का योगदान लगभग 40 प्रतिशत है। इसीलिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र का सर्वांगीण विकास हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।

 

हमारी सरकार ने जो बजट देश के समक्ष प्रस्तुत किया है उसमें माननीय वित्त मंत्री जी द्वारा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र द्वारा किये जा रहे महत्त्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया गया है । हमारी सरकार इस क्षेत्र के विकास हेतु कटिबध्द है तथा हमारा निरंतर यही प्रयास है कि सूक्ष्म एवं लघु उद्यम क्षेत्र के सर्वांगीण विकास हेतु नयी योजनाएं लाई जायें तथा वर्तमान में इस क्षेत्र को दी जा रही सुविधाओं को और अधिक बढ़ाया जाये। मुझे प्रसन्नता है कि बजट प्रस्तावों में मंत्रालय के क्रेडिट गारंटी योजना के अंतर्गत पांच लाख रुपये तक के ऋणों पर एकमुश्त गारंटी फीस की दर 1.5 प्रतिशत से घटा कर 1 प्रतिशत कर दी गई है, और वार्षिक सेवा शुल्क की दर को भी 0.75 प्रतिशत से घटा कर 0.5 प्रतिशत कर दिया गया है । इसके अतिरिक्त सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र हेतु ऋण उपलब्धता को सुगम बनाने हेतु सिडबी के स्तर पर 2 हजार करोड़ रुपये की निधि की स्थापना की गई है तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों में पूंजी निवेश सहायता हेतु 2 हजार करोड़ रुपये का रिस्क कैपीटल फंड भी गठित किया जाना प्रस्तावित है।

 

 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र का योजनाबध्द ढंग से विकास करने के लिए हमारी सरकार ने कई अन्य कदम भी उठाए हैं एवं योजनाएं लागू की हैं। इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम -2006 को संसद से पारित कराया जाना है। यह अधिनियम 2 अक्टूबर , 2006 से प्रभावी हो चुका है। इस अधिनियम में न केवल सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को पहली बार परिभाषित किया गया बल्कि उनके संरक्षण , विकास एवं प्रोत्साहन के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं संबंधी प्रावधान भी किए गये हैं। इस अधिनियम में सूक्ष्म और लघु उद्यमों को बड़े उद्यमों एवं आपूर्तिकर्ताओं द्वारा समय से भुगतान सुनिश्चित कराने व उन्हें शोषण से बचाने के लिए प्रावधान किए गए हैं। साथ ही इस अधिनियम में सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को विपणन में सहायता एवं सरकारी खरीद में वरीयता हेतु योजना बनाए जाने का भी प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त इन उद्यमों की विभिन्न समस्याओं के निवारण हेतु विभिन्न स्तरों पर सलाहकार समितियां बनाए जाने की भी व्यवस्था है। आशा है कि इस अधिनियम के पारित हो जाने के बाद इस क्षेत्र के विकास का मार्ग खुलेगा और उन्हें वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी।

      

कभी यह मान्यता थी कि उद्यमी जन्म से ही उत्पन्न होते हैं, परंतु यह मान्यता अब पुरानी पड़ चुकी है एवं मिथ्या सिध्द हो चुकी है। वास्तविकता यह है कि साधारण व्यक्तियों को भी समुचित प्रशिक्षण एवं प्रोत्साहन देकर उद्यमी बनाया जा सकता है जो न केवल स्वयं अपने लिए रोजगार के नए अवसर सृजित करते हैें बल्कि औरों को भी रोजगार उपलब्ध कराते हैं। अत: देश की अपार युवा श्रमशक्ति को आर्थिक विकास की मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य से हमारी सरकार ने उनका कौशल विकास करने एवं उन्हें उद्यमिता विकास प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें स्व-रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हेतु राष्ट्रीय कौशल विकास अभियान की शुरूआत की है, जिसके क्रांतिकारी परिणाम निकट भविष्य में दिखाई देंगे।

 

सूक्ष्म और लघु उद्यमों, विशेषकर प्रथम पीढ़ी के उद्यमियों के विकास के लिए उद्यमिता विकास एवं प्रशिक्षण मुख्य कुंजी है तथा इस महत्त्वपूर्ण कार्य का दायित्व हमारे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय को सौंपा गया है । इस कार्य को नियमित रूप से संचालित करने के लिए हमारे मंत्रालय ने तीन राष्ट्र स्तरीय उद्यमिता विकास संस्थानों - राष्ट्रीय संस्थान-सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, हैदराबाद, भारतीय उद्यमिता संस्थान, गुवाहाटी एवं राष्ट्रीय उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान, नोएडा की स्थापना की है। इसके अतिरिक्त मंत्रालय द्वारा नये उद्यमिता विकास संस्थानों की स्थापना व मौजूदा संस्थानों के प्रशिक्षण अवसंरचना के सुदृढ़ीकरण हेतु सहायता नामक योजना का कार्यान्वयन भी किया जा रहा है जिसके अंतर्गत नए उद्यमिता विकास संस्थानों की स्थापना व पूर्व से संचालित संस्थानों के सुदृढ़ीकरण हेतु मैचिंग आधार पर अधिकतम एक करोड़ रुपए तक की सहायता उपलब्ध कराई जाती है ।

 

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा स्थापित राष्ट्र स्तरीय उद्यमिता विकास संस्थानों, मंत्रालय की सहायता से स्थापित राज्य एवं क्षेत्रीय उद्यमिता विकास संस्थानों व निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं व बैंकों आदि द्वारा स्थापित विभिन्न प्रशिक्षण संस्थाओं द्वारा देश में व्यापक स्तर पर उद्यमिता विकास प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, विकास आयुक्त (सू.ल.म.उ.) कार्यालय के अधीन स्थापित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम - विकास संस्थानों एवं टूल रूम आदि के माध्यम से उद्यमिता एवं कौशल विकास हेतु अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं ।

      

ऐसा पाया गया है कि नए उद्यमी सामान्य तौर पर, सरकार#वित्तीय संस्थानों की विभिन्न स्कीमों के तहत पूरा लाभ उठाने में, विभिन्न कानूनों#विनियमों के तहत विविध औपचारिकताओं और कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने और अनुपालन करने, उपयुक्त प्रौद्योगिकी का चुनाव करने, क्रेताओं और विक्रेताओं के साथ संपर्क करने, आदि में मुश्किलों का सामना करते हैं । संभावित उद्यमियों की अपेक्षाओं तथा जमीनी हकीकत के  बीच के फासले को दूर करने के लिए यह जरूरी है कि संभावित उद्यमियों को उनके उद्यमों की स्थापना और प्रबंधन के शुरूआती स्तरों पर पथ-प्रदर्शन (हैंड-होल्डिंग) हेतु समर्थन दिया जाए और उनका पोषण किया जाए। उद्यमिता विकास प्रशिक्षण प्राप्त प्रथम पीढ़ी के नव उद्यमियों को उद्यम स्थापना हेतु मार्गदर्शन एवं सहायता उपलब्ध कराने तथा प्रशिक्षार्थियों की सफलता दर को बेहतर बनाने के उद्देश्य से मेरे मंत्रालय ने हाल ही में राजीव गांधी उद्यमी मित्र योजना नामक एक नई योजना की शुरुआत की है । इस योजना का मुख्य उद्देश्य उद्यमी मित्रों के माध्यम से प्रथम पीढ़ी के संभावित उद्यमियों को उद्यम स्थापित करने व इस हेतु विभिन्न विधिक औपचारिकताओं एवं अपेक्षाओं को पूरा करने में सहायता एवं मार्गदर्शन प्रदान करना है ।

 

       हमारे मंत्रालय के सार्वजनिक उपक्रम राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एन.एस.आई.सी.)  के माध्यम से भी सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के विकास के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हैं जिसमें नए उद्यम स्थापित करने, तकनीकी सेवाएं प्रदान करने, विपणन की सुविधा उपलब्ध कराने तथा वित्तीय सेवाएं इत्यादि शामिल हैं । राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम द्वारा सूक्ष्म एवं लघु उद्यमियों को सहायता प्रदान करने हेतु कई नई योजनाएं प्रारंभ की गई हैं जैसे कि स्टील, कॉपर आदि का वितरण, बैंकों के साथ  मिलकर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना, ई.सी.जी.सी. के साथ मिलकर एक्सपोर्ट क्रेडिट इन्श्योरेन्स की सुविधा, इंक्यूबेटर्स द्वारा नए उद्यमियों का विकास, उद्यमों की परफॉरमेंस तथा क्रेडिट रेटिंग और लघु उद्यमी संगठनों के साथ समझौता   ज्ञापन करना इत्यादि सम्मिलित हैं । इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम द्वारा पूर्व में चलाई जा रही योजनाओं की कार्य पध्दतियों में भी सुधार किए गए हैं तथा उन्हें सरल बनाया गया है । राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम के इन प्रयासों के फलस्वरूप निगम द्वारा प्रदत्त सेवाओं में कई गुना वृध्दि हुई है तथा पिछले दो वर्षाें में लाभ की स्थिति प्राप्त हुई है तथा वित्तीय वर्ष 2006-07 के लिए निगम द्वारा सरकार को लाभांश भी प्रदान किया गया है ।

 

भारत सरकार उद्योगों के विकास हेतु क्लस्टर विकास पर विशेष जोर दे रही है तथा क्लस्टर विकास के लिए नीति निर्धारण एवं इसके कार्यान्वयन का निरीक्षण करने के लिए मंत्रियों का सशक्त अधिकार प्राप्त समूह का गठन किया  गया है। इस समूह का कार्य केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित किये जा रहे मौजूदा क्लस्टर विकास कार्यक्रमों की समीक्षा करना तथा इन कार्यक्रमों के बीच सामंजस्य एवं तालमेल स्थापित करने के लिए व्यापक नीतिगत दिशानिर्देश तथा कार्यान्वयन संबंधी उपाय निर्धारित करना है ।

 

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार ने सूक्ष्म, लघु उद्यमों और उनके संगठनों की उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए एक मुख्य रणनीति के रूप में क्लस्टर विकास दृष्टिकोण अपनाया है। यद्यपि वर्ष 1998 में क्लस्टर आधारित एक योजना प्रौद्योगिकी उन्नयन और प्रबंध कार्यक्रम (अपटेक) के नाम से प्रारंभ की गई थी परंतु यह योजना मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी उन्नयन पर केंद्रित थी। सूक्ष्म एवं लघु इकाइयों के क्लस्टर के समग्र विकास हेतु अगस्त, 2003 में इस योजना का पुन: नामकरण लघु उद्योग क्लस्टर विकास कार्यक्रम  (एसआई-सीडीपी) किया गया। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम पारित हो जाने व सूक्ष्म व लघु उद्यमों हेतु संवर्धन पैकेज की घोषणा के बाद इस योजना का नाम बदलकर सूक्ष्म एवं लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम (माइक्रो एंड स्माल इंटरप्राइजेस क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम - एमएसई-सीडीपी) कर दिया गया है तथा इस योजना के अंतर्गत विभिन्न औद्योगिक क्लस्टरों का अध्ययन कराकर, इकाईयों की आवश्यकताओं के अनुसार उनके तकनीकी उन्नयन, गुणवत्ता सुधार व क्षमता निर्माण करके उन्हें अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जाता है।

 

 एमएसई-सीडीपी के तहत अब तक हमने पूरे देश में 156 क्लस्टरों के समेकित विकास के लिए 61 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की है। इसके अतिरिक्त 172 से अधिक क्लस्टरों का अध्ययन कराया जा रहा है । इन अध्ययनों से क्लस्टरों की समस्याओं का पता चलेगा, साथ ही उनके समाधानों के लिए कारगर उपाय भी किये जायेंगे ।

 

       पूर्व से स्थापित औद्योगिक क्लस्टरों के अतिरिक्त ऐसे नए औद्योगिक क्लस्टरों की स्थापना की प्रक्रिया भी आरंभ की जा रही है जो रोजग़ारोन्मुखी हो। विशेषकर, पढ़े लिखे बेरोजग़ार युवाओं के लिए यह क्लस्टर 10 या  उससे अधिक इकाइयों का एक ऐसा समूह होगा जिसमें वे युवा, जिन्होंने भारत सरकार की किसी ऋण# अनुदान योजना के अंतर्गत सहायता प्राप्त की हो या किसी सरकारी#बैंक प्रायोजित योजना में भाग लिया हो, मिलकर एक क्लस्टर की स्थापना करेंगे जिसमें वे सारी सुविधाएं एवं लाभ प्राप्त होंगे जो क्लस्टर योजना के अंतर्गत उपलब्ध हैं । संबंधित मंत्रालय की सहमति से इस योजना के तहत भारत सरकार के अन्य मंत्रालयों के प्रशासनिक कार्यक्षेत्र के तहत आने वाले उत्पादों का विनिर्माण करने वाली सूक्ष्म एवं लघु उद्योग इकाइयों के क्लस्टरों पर भी विचार किया जा सकता है । क्लस्टर चुनते समय और उसके विकास के लिए रणनीति और#या कार्य योजना बनाते समय संबंधित राज्य सरकार से परामर्श करना और उसकी राय लेना भी आवश्यक होगा । स्व-रोजगार के इच्छुक युवाओं द्वारा गठित कार्यकारी संस्था (एस.पी.वी.) सीधे निदेशक, एम.एस.एम.ई.-डी.आई. या विकास आयुक्त (एम.एस.एम.ई.) को प्रस्ताव भेज सकते हैं । महिलाओं एवं अशिक्षित व पिछड़े वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जाति#जनजाति के लोगों को रोजगार प्रदान करने के लिए इनकी वृहद् उपस्थिति वाले क्लस्टरों को प्राथमिकता दी जाती है ।

 

इसी प्रकार स्फूर्ति योजना के अंतर्गत खादी, कयर एवं ग्रामोद्योग क्षेत्रों के 118 क्लस्टरों को विकसित करने के लिए अनुमोदित किया गया है । इसके तहत हरेक क्लस्टर के विकास के लिए औसतन 85 लाख रुपए से लेकर एक करोड़ दस लाख रुपए के बीच खर्च आएगा ।

      

हमारे मंत्रालय के सांविधिक निकाय नामत: खादी और ग्रामोद्योग आयोग और कयर बोर्ड के माध्यम से भी खादी, ग्रामोद्योग एवं कयर क्षेत्र के विकास एंव संवर्धन के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। खादी और ग्रामोद्योग आयोग देश के ग्रामीण क्षेत्र में खादी और ग्रामोद्योग क्षेत्र को सुदृढ़ करने और रोजगार सृजित करने के लिए विभिन्न योजनाएं जैसे ब्याज सब्सिडी पात्रता प्रमाणपत्र (आईएसईसी) योजना, रिबेट योजना, उत्पाद विकास, डिजायन मध्यस्थता एवं पैकेजिंग (प्रोदीप), ग्रामीण उद्योग सेवा केन्द्र (आरआईएससी), खादी कारीगर जनश्री बीमा योजना इत्यादि का कार्यान्वयन कर रहा है। खादी और ग्रामोद्योग क्षेत्र में अनुमानित 99.18 लाख (खादी क्षेत्र में 9.15 लाख और ग्रामोद्योग क्षेत्र में 90.03 लाख) रोजगार के अवसर सृजित हुए है।

 

खादी और ग्रामोद्योग क्षेत्र के कतिनों और बुनकरों के कल्याण और उनका विकास सुनिश्चित करने हेतु हमारे मंत्रालय द्वारा कई नई योजनाएं भी प्रारंभ की गई हैं। खादी कारीगरों के लिए वर्कशेड योजना के अंतर्गत प्रति इकाई 25 हजार रूपए की अधिकतम लागत पर 38 हजार खादी कारीगरों को वर्कशेड उपलब्ध कराए जाएंगे। इस योजना के माध्यम से विशेष रूप से कतिनों को बेहतर कार्य वातावरण उपलब्ध होगा जिससे उनकी उत्पादकता तथा आमदनी में सुधार होगा।

 

खादी उद्योगों और कारीगरों की उत्पादकता और उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए एक अन्य योजना को हाल ही में स्वीकृति दी गई है जिसके अंतर्गत 200 संस्थाओं के चरखों और करघों को बदलने तथा खादी उद्योग को अधिक प्रतियोगी और लाभप्रद बनाने के लिए 84 करोड़ रूपए की सहायता प्रस्तावित है। इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति# अनुसूचित जनजाति के लोगों द्वारा संचालित 45 संस्थाओं को भी शामिल करने की योजना है। यह योजना खादी उद्योग को अधिक बाजारोन्मुखी बनाएगी तथा कारीगरों को अधिक मजदूरी उपलब्ध कराएगी। इसी प्रकार ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना करते हुए रोजगार के नए अवसरों के सृजन हेतु प्रधान मंत्री रोजगार योजना (पीएमआरवाई) और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (आरईजीपी) को मिलाते हुए प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) नामक एक नई क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम लागू करने का प्रस्ताव किया गया है।                  

 

इसके अतिरिक्त यह मंत्रालय कयर उद्योग के उत्थान के लिए भी अनेक योजनाएं संचालित कर रहा है। कयर उद्योग एक कृषि-आधारित, पारंपरिक, श्रम-गहन, निर्यात-उन्मुखी उद्योग है जिसमें 80 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत हैं । इस उद्योग के विकास के लिए कार्यान्वित की जा रही विभिन्न योजनाओं में महिला कयर योजना, उत्पादन अवसंरचना का विकास, घरेलू बाजार संवर्धन और विदेशी बाजार विकास सहायता आदि शामिल हैं। हाल ही में कयर उद्योग के पुनरूत्थान, आधुनिकीकरण और प्रौद्योगिकी उन्नयन हेतु एक नई केन्द्रीय क्षेत्र स्कीम शुरू की गई है। इस योजना के अन्तर्गत पारंपरिक कतिन और बुनकरों के कार्यकलापों के उत्थान के लिए वर्कशेड, नये उपकरण प्रदान किये जाने की व्यवस्था है।         

    

       असंगठित क्षेत्र में रोजगार-अवसरों और कामगारों के सामने आने वाली विभिन्न कठिनाइयों को समाप्त करने के लिए भी हमारे मंत्रालय की ओर से आवश्यक उपाय किये गए हैं जिनके सकारात्मक परिणाम जल्द ही सभी को नजर आएंगे, और इससे असंगठित क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों का उत्थान होगा।

 

       हमारा लक्ष्य है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के माध्यम से हम बेरोजगारी और गरीबी की चुनौती का सामना करते हुए अधिक से अधिक युवाओं को रोजगार के अवसर सुलभ कराकर उन्हें स्वावलंबी बनाएं व आर्थिक विकास की मुख्य धारा में जोड़ दें।

 

 

लेखक केन्द्र सरकार में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री हैं ।

 

कोई टिप्पणी नहीं: