सामाजिक समरसता बनाने में परिवार परामर्श केन्द्रों का महत्वपूर्ण योगदान -जस्टिस श्री धर्माधिकारी
'महिलाओं पर अपराधों की रोकथाम में पुलिस की भूमिका' विषय पर कार्यशाला आयोजित
ग्वालियर 1 अगस्त 08 । मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस श्री डी एम धर्माधिकारी ने कहा है कि सामाजिक समसरता बनाने में पुलिस विभाग द्वारा संचालित परिवार परामर्श केन्द्रों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । इनके कार्यों से आम आदमी में पुलिस की छबि संवेदनशील बनी है । श्री धर्माधिकारी ने यह बात आज यहां महिलाओं पर अपराधों की रोकथाम में पुलिस की भूमिका विषय पर आयोजित कार्यशाला में कही । कार्यशाला में आयोग के सदस्य द्वय जस्टिस श्री नारायण सिंह 'आजाद', श्री विजय शुक्ल, प्रमुख सचिव डा. ए एन अस्थाना, ग्वालियर और चंबल रेंज के आई जी द्वय श्री डी एस सेंगर और श्री अरविंद कुमार, डीआईजी श्री आदर्श कटियार, पुलिस अधीक्षक श्री व्ही के सूर्यवंशी, आयोग मित्र, एनजीओ के पदाधिकारी, महिला और बाल विकास तथा लोक स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और पुलिस कर्मी उपस्थित थे ।
श्री धर्माधिकारी ने कहा कि महिलाओं पर होने वाले अपराधों में पुलिस की विवेचना का स्तर कमजोर होता है । एफआईआर भी अपूर्ण लिखी जाती है, इससे न्यायालयों में जब ऐसे चालान प्रस्तुत होते हैं तो वास्तविक दोषी को सजा नहीं मिल पाती । श्री धर्माधिकारी ने कहाकि संभवत: इसीलिये केन्द्र सरकार द्वारा महिलाओं पर घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 में पुलिस की भूमिका को कम कर दिया गया है । उन्होंने कहा कि पुलिस अपनी विश्वसनीयता को बनाये रखने के लिये विवेचना कि गुणवत्ता के स्तर को बेहतर बनाये । उन्होंने कहा कि केवल दहेज से ही नहीं, भारतीय समाज में अन्यान्य कारणों से भी महिलाओं पर अत्याचार होता है । विवाहोपरांत तो पिता पक्ष भी महिला को सहयोग नहीं करता है । महिलाओं के विरूध्द अत्याचारों पर रोकथाम नहीं हुई तो समाज में विषमता की स्थिति बन सकती है । उन्होंने कहा कि भोपाल में एसओएस बाल ग्राम और गुजरात में इला भट्ट जैसी समाज सेविकायें बेहतरीन उदाहरण पेश कर रहीं हैं , तो उनका अनुसरण करते हुये अन्य स्थानों पर भी ऐसे सेवा प्रकल्प शुरू क्यों नहीं हो पा रहे हैं । बाल कल्याण समितियो में राजनीतिक लोगों को सदस्य बनाया जाता है ,उनमें उस क्षेत्र की जानकारियों का अभाव और सेवा भावना की कमी के कारण वे ऐसी संस्थाओं में काम नहीं कर पाते हैं । श्री धर्माधिकारी ने कहा कि अत्याचारों से पीड़ित महिलाओं से काउंसलिंग गोपनीय तरीके से होनी चाहिये । वैसे ही हमारी समाज व्यवस्था में महिलाओं को द्वितीय श्रेणी का नागरिक माना जाता है । श्री धर्माधिकारी ने सुझाव दिया कि पुलिस पर काम का दबाव बढ़ रहा है। छुट-पुट आपराधिक के मामले भी अब बड़ी संख्या में पुलिस के पास आने लगे हैं, ऐसे में कम्युनिटी पुलिसिंग प्रणाली शुरू कर आम आदमी का सहयोग लेना समय की मांग बन गया है । श्री धर्माधिकारी ने कहा कि महिला और बाल विकास अधिकारियों को घरेलू हिंसा अधिनियम में संरक्षण अधिकारी बनाया गया है। उन्हे इस काम को बेहतर ढंग से अंजाम देने के लिये प्रशिक्षित करना जरूरी है । श्री धर्माधिकारी ने कहा कि समाज में मानवीय मूल्यों के बढ़ने से ही मानव अधिकारों का संरक्षण होगा ।
आयोग के सदस्य श्री नारायण सिंह 'आजाद' ने कहा कि सरकार द्वारा अनेक निषेधात्मक अधिनियम बना देने के बाद भी महिलाओं पर अत्याचार कम नहीं हो रहे हैं । राज्य के कुछ क्षेत्रों में तो कन्या भ्रूण हत्या की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि अब वहां एक हजार पुरूषों के पीछे महिलाओं की संख्या 700 रह गई है । श्री आजाद ने पुलिस कर्मियों और एनजीओ को भारतीय दंड विधान की विभिन्न धाराओं का खुलासा किया, जिनके अन्तर्गत महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के विरूध्द कार्यवाही की जा सकती है ।
श्री विजय शुक्ल ने कहा कि महिलाओं को जला देने के मामलों में पुलिस को शुरूआती स्तर से ही जांच की कार्यवाही शुरू कर देनी चाहिये । मर्ग कायम होने तक तो बहुत से साक्ष्य समाप्त हो जाते हैं । आग से जलने वाले प्रकरणों में अस्पतालों को पीड़िता की स्थिति की जानकारी यथासंभव शीघ्र संबंधित थाने को देनी चाहिये । घटना स्थल की वीडियोग्राफी तथा परिस्थिति जन्य साक्ष्यों का संकलन कर लेना चाहिये । यदि जरूरत महसूस हो तो घटना स्थल को सील करने की कार्यवाही भी कर देना चाहिये । पंचनामा बनाने, मृत्यु पूर्व बयान लेने तथा सभी संबध्द और प्रासंगिक साक्ष्यों के बयान यथासंभव शीघ्र रिकार्ड कर लिये जायें तो एक मजबूत केस डायरी सहित चालान न्यायालय मे प्रस्तुत किया जा सकता है। श्री शुक्ल ने आश्चर्य व्यक्त किया कि आयोग द्वारा पुलिस को भेजी जाने वाली शिकायतें संबंधित विवेचना अधिकारी तक को भी नहीं दी जाती । एसपी आफिस से ही सीधे आयोग की शिकायत का एक संक्षिप्त उत्तर, आयोग को भेज दिया जाता है । उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया सही नहीं है । चूंकि आयोग एक अर्ध्दन्यायिक संस्था है और उसकी छानबीन, न्यायालयीन प्रणाली की तरह ही होती है। इसलिये पुलिस को सभी पृच्छायें सुस्पष्ट तरीके से प्रस्तुत करनी चाहिये । उन्होंने कहा कि ग्वालियर अंचल में अब बच्चों के अपहरण की घटनायें भी बढ़ रही हैं । राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग और उच्चतम न्यायालय ने भी निठारी कांड के बाद सभी राज्यों को ये निर्देश दिये हैं कि बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट एक निर्धारित अवधि बाद दर्ज हो जाना चाहिये ।
ग्वालियर रेंज के आई जी श्री डी एस सेंगर ने इस अवसर पर कहा कि भारतीय दंड विधान की धारा 304 के अन्तर्गत होने वाले अपराधों की विवेचना पुलिस के राजपत्रित अधिकारियों से करवाई जाती है । कुछ प्रकरणों में जिनमें गवाह ही होस्टाइल हो जाते हैं, उनमें आरोपी को सजा नहीं मिल पाती है । पुलिस के पास प्रकरणों की बढ़ोत्री इस बात को सिध्द करती है कि समाज में पुलिस की विश्वसनीयता नहीं घटी है । उन्होंने कहा कि पुलिस अपनी गलतियों की छानबीन भी बड़ी तेजी से करती है, इसका उदाहरण है कि इतनी बड़ी संख्या में विभागीय जांच, पुलिस कर्मियों के विरूध्द चल रही है या नौकरी से बर्खास्त करने की कार्यवाहियां पुलिस में होती हैं, इतनी अन्य किसी विभाग में नहीं होती हैं । श्री सेंगर ने कहा कि गुमशुदा लोगों की तलाश के लिये उनसे संबंधित सूचनायें सभी थानों को यथासंभव शीघ्र दे दी जायेंगी । श्री सेंगर ने इस कार्यशाला के आयोजन के लिये आयोग के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की । कार्यशाला में महिला और बाल विकास अधिकारी सुश्री सीमा शर्मा, डीएसपी सुश्री सुमन गुर्जर, एनजीओ के पदाधिकारियों तथा आयोग मित्रों ने भी विचार व्यक्त किये ।
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