शुक्रवार, 23 मई 2008

मानव सभ्यता बचाने के लिये प्रकृति संरक्षण जरूरी – राधारमण दास

मानव सभ्यता बचाने के लिये प्रकृति संरक्षण जरूरी राधारमण दास

अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर संगोष्ठी सम्पन्न

ग्वालियर 22 मई 08 । मानव जीवन, जैव विविधता पर टिका हुआ है । इसलिये हमें प्रकृति का उतना ही इस्तेमाल करना चाहिये जितनी जरूरत हो । तृष्णा की पूर्ति के लिये प्रकृति का दोहन नहीं होना चाहिये । यदि हम जैव विविधता के संरक्षण के लिये सचेत नहीं हुये तो मानव सभ्यता के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जायेगा । उक्त आशय के विचार अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यशाला में जीवाजी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति श्री आर.आर. दास ने व्यक्त किये ।

 यहां राज्य स्वास्थ्य प्रबंधन एवं संचार संस्थान में यह कार्यशाला जिला पंचायत व जिला जैव विविधता प्रबंधन समिति के तत्वावधान में आयोजित की गई । कार्यशाला में जैव विविधता एवं कृषि विषय पर विद्वान वक्ताओं ने अपने-अपने विचार रखे और पॉवर पाइण्ट प्रजेण्टेशन के जरिये विस्तार से जानकारी दी गई । संगोष्ठी में जिला कलेक्टर श्री राकेश श्रीवास्तव, वन संरक्षक श्री आर.बी. सिन्हा व श्री जे.पी. नारायण, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री विनोद शर्मा, वनस्पति शास्त्री डॉ. आर.एस. सिकरवार, डॉ. ए.के. जैन व श्री आर.जी.राय, जिला सहकारी बैंक के संचालक श्री अरूण सिंह तोमर, संभव संस्था के श्री एस.के. सिंह एवं अन्य स्वयंसेवी व सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा संबंधित अधिकारी मौजूद थे ।

       पूर्व कुलपति श्री आर.आर. दास ने कहा विकास की अंधी दौड़ में हम अपने पुरखों के प्रकृति संरक्षण के सिध्दांत को भुला बैठे हैं । हमारे पुरखों ने प्रकृति संरक्षण को तीज, त्यौहारों व रीति रिवाजों से जोड़कर जैव विविधता को संरक्षित किया । उन्होंने कहा हमें अपने उन्हीं संस्कारों को पुन: उद्धाटित कर जैव विविधता को संरक्षित करने का संकल्प लेना होगा । तभी मानव सभ्यता को बचाया जा सकता है । पूर्व कुलपति ने शंकर प्रजातियों को अधिक बढ़ावा देने से विलुप्त हुई खाद्यान्नों की विभिन्न प्रजातियों पर चिंता जाहिर की । श्री दास ने अकार्बनिक खादों के अधिक इस्तेमाल से मृदा की उत्पादन क्षमता घटने को भी चिंताजनक बताया ।

       चित्रकूट शोध संस्थान से आये वनस्पति शास्त्री डॉ. आर.एल. सिकरवार ने भारत की जैव विविधता और पादप प्रजातियों के संवेदनशील क्षेत्रों के बारे में पॉवर पाइण्ट प्रजेण्टेशन के जरिये विस्तार से बताया । जीवाजी विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. ए. के. जैन ने कहा कि जैव विविधता के हिसाब से भारत एक समृध्द देश है । हमारे पूर्वजों ने प्रकृति से जो लिया उसके लिये उन्होंने प्रकृति पर केन्द्रित विभिन्न त्यौहार मनाकर उसे धन्यवाद भी दिया । उन्होंने कहा कि वर्तमान में जैव विविधता का विनास भयाभव ढंग से हो रहा है और प्रतिक्षण एक प्रजाति विलुप्त हो रही है । इसे रोकना आज की महती आवश्यकता बन गई है । डॉ. जैन ने जनजातियों के जैव विविधता ज्ञान पर भी प्रकाश डाला और उनके ज्ञान को संजोने पर बल दिया । संभव स्वयं सेवी संस्था के श्री एस.के. सिंह ने जैव विविधता के महत्व और उसके क्षरण से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में प्रभावी जानकारी दी । वनस्पति शास्त्री श्री आर.जी. राय ने भी जैव विविधता पर अपने विचार व्यक्त किये । आरंभ में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री विनोद शर्मा ने विषय वस्तु पर विस्तार से प्रकाश डाला और अतिथियों का स्वागत किया ।

 

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