अवध में घर-घर खुशियाँ छाईं राज्याभिषेक की कथा के साथ अंतर्राष्ट्रीय रामलीला मेले का समापन
ग्वालियर 17 जून 08 । पूरे अवध में घर-घर मंगलगान हो रहे हैं । पुरवासी नांच-गांकर और पुष्प वर्षा कर अपनी खुशियां मना रहे हैं । उससे पहले एक दूसरे की याद में विरहातुर भाईयों का महामिलाप हुआ तो दर्शकों को आंखें नम हो गईं । वहीं जब श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ तब दर्शक खुशी से रोमांचति भी हुये। यहां बात हो रही है अंतर्राष्ट्रीय रामलीला के तहत मंगलवार की संध्या मेला कलामंदिर रंगमंच पर अयोध्या से आये अवध आदर्श रामलीला मंडल द्वारा दिखाई गई राम राज्याभिषेक कथा की । प्रभु राम की नगरी से आये कलाकारों ने अपने कुशल अभिनय से रामकथा को सजीव बना दिया ।
आदर्श रामलीला मंडल द्वारा प्रस्तुत रामकथा की शुरूआत लंका विजय से होती है । विजय के पश्चात प्रभू राम, सुग्रीव व हनुमान सहित अन्य वानर भाईयों को धन्यवाद देते हैं और सभी से घर जाने का आग्रह करते हैं । श्रीराम के मुखार बिन्दु से यह बात सुनकर संपूर्ण वानर दल बहुत दुखित होता है । सभी एक स्वर में अयोध्या जाने की बात कहते हैं । भगवान राम उनके आग्रह को स्वीकार कर लेते हैं और पुष्पक विमान से अवध के लिये प्रस्थान करते हैं । भगवान राम यूं ही मर्यादा पुरूषोत्तम नहीं कहे जाते इसका आभाष आज मंचित रामलीला के एक प्रसंग से भी हुआ । लंका से अयोध्या जाते समय प्रभू राम जब प्रयागराज पहुंचते हैं तो वे हनुमान को यह पता लगाने के लिये अयोध्या भेजते हैं यदि भाई भरत राजपाठ पाकर प्रसन्न हों तो वे पुन: वन के लिये लौट जायेंगे । लेकिन हनुमान को वहां बड़े ही करूण दृश्य के दर्शन होते हैं । वे देखते हैं कि भरतलाल राम नाम का जाप कर रहे हैं और ऐसा लग रहा था कि यदि कुछ समय और श्री राम नहीं पहुंचे तो भरत के प्राण पखेरू उड़ जायेंगे । तभी राम चरित मानस की एक सुंदर चौपाई तक सुनाई देती हैं ।
''राम विरह सागर मह भरत मगन मन होत ।
विप्र रूप धरि पवनसुत आये गये जिम पोत ॥
जिसका भावार्थ है कि जिस समय भरतलाल राम के विरह में दुख रूपी सागर में डूबने ही वाले थे तभी हनुमान विप्र रूप में समुद्री जहाज के सदृश्य प्रकट हो गये । हनुमान उन्हें राम के आने की सूचना देते हैं और कहते हैं
''रिपु रन जीत सुजश सुर गावत ।
सीता अनुज सहित प्रभु आवत ॥
यह सुनकर भरत पुलकायमान हो जाते हैं और गुरू व माता को यह शुभ समाचार सुनाते हैं । पूरी अयोध्या में हर्षोल्लास छा जाता है । आगे की कथा में राम व भरत का महामिलाप होता है । श्रीराम की अगवानी में भव्य समारोह होता है । गुरू वशिष्ठ की आज्ञा से भगवान राम वलकल वस्त्रों को त्याग कर राजसी वस्त्र धारण करते हैं और उनका राज्याभिषेक होता है । प्रभु राम पुरजन को उपदेश के माध्यम से मानव मात्र के लिये कल्याणात्यक दिशा निर्देश देते हैं । कथा का प्रारंभ जहां प्रथम आरती से हुआ वहीं समापन विश्राम आरती से हुआ ।
आज की रामलीला में श्रीराम की भूमिका श्री केसरी शुक्ल, लक्ष्मण की श्री रामानंद पाण्डेय, भरत की श्री प्रेम प्रकाश शुक्ल, शत्रुध्न की श्री शुमेन्द्र तिवारी, वशिष्ठ की श्री उमेश झा, सुग्रीव की श्री सजीवन झा, हनुमान की श्री रामचंद्र तिवारी, अंगद की श्री प्रेमनारायण शर्मा, विभीषण श्री श्याम नारायण दुबे, जामवंत की श्री ओमप्रकाश शर्मा, निषाद श्री किशोरी जी, भारद्वाज मुनि की श्री नंद कुमार नागा, शंकर जी की श्री गुड्डू तिवारी, नारद की श्री पुजारी राम लल्लन दास, कौशल्या की श्री मनीष सिंह, कैकयी की श्री हीरा सिंह, सुमित्रा की श्री गुड्डू सिंह, सीता की भूमिका श्री भगवान दीन शुक्ल ने निभाई । कथा वाचन श्री आचार्य सरजू शरण व श्री रविन्द्र कुमार मिश्र ने किया । पखावज पर श्री राजकुमार झा व लाल मणी तथा तबला पर श्री चंद्र मोहन ने संगत की ।
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