अंतर्राष्ट्रीय रामलीला मेला लाओस के कलाकारों ने बिखेरे कला के विविध रंग
ग्वालियर 15 जून 8 । पर्यटकों के लिहाज से विश्व के दस अग्रणी देशों में शुमार दक्षिण ऐशियाई देश लाओस से आये रॉयल बेले थियेटर के कलाकारों ने अंतर्राष्ट्रीय रामलीला मेले में गत संध्या नृत्य नाटिका के माध्यम से रामकथा को बड़े ही मनमोहक अंदाज में प्रस्तुत किया । यहां मेला कलामंदिर रंगमंच पर लाओस के कला साधकों ने अपने देश और भारत की समृध्दि संस्कृति से ओतप्रोत कला के कुछ ऐसे रंग बिखेरे जिसमें दर्शकगण गहरे तक सराबोर होते चले गये । साथ ही उन्हें इस बात की सुखद अनुभूति भी हुई कि हमारी संस्कृति कितनी महान है जिसे सुदूर देश के लोग सदियों से बड़ी शिद्दत के साथ अपनाये हुये हैं । ज्ञात हो मेला कलामंदिर रंगमंच पर गत 9 जून से शुरू हुआ अंतर्राष्ट्रीय रामलीला मेला राज्य शासन के संस्कृति संचालनालय द्वारा जिला प्रशासन के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है ।
लाओस के रॉयल बेले थियेटर के कलाकारों ने रामायण कथा पर केन्द्रित नृत्य नाटिका की शुरूआत अपने देश के प्रसिध्द लोक नृत्य ''दुवंग चम्पा'' से की । सुंदर-सुंदर परिधानों में सजे संवरे कलाकारों ने इस लोकनृत्य के माध्यम से अपने राष्ट्र के बारे में बताया और युवाओं को अपनी संस्कृति अक्षुण्ण बनाये रखने का संदेश भी दिया । सात दृश्यों में मंचित रामकथा में हनुमान द्वारा सीता को मुद्रिका प्रदान करने और समुद्र लांघने के दौरान लंका की प्रहरी बनी एक राक्षसी से हनुमान के युध्द करने के दृश्य देखते ही बनते थे । रावण दरबार व शक्ति प्रदर्शन व राम द्वारा हनुमान के साथ वानर सेना के गठन वाले दृश्य भी दर्शकों के मन मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ने में सफल रहे । कथा का समापन बड़े ही भावपूर्ण अंदाज में हुआ । इस दृश्य में दिखाया गया है कि लंका विजय के बाद सीता जब राम से मिलती हैं तब वे सखियों के साथ नृत्य कर पुष्प वर्षा करती हैं और सभी की सुख समध्दि व शांति की कामना भी करती हैं ।
लाओस के रॉयल बेले थियेटर के कुशल कलाकारों द्वारा प्रस्तुत रामकथा पर केन्द्रित नृत्य नाटिका मं अन्य देशों की रामलीला से कुछ-कुछ भिन्नता भी दिखाई दी। मसलन हनुमान के हाथ में गदहा के स्थान पर छुरी थी तो रावण व अन्य राक्षसों के हाथों में तलवार आदि अस्त्र-शस्त्रों के स्थान पर डंडे नजर आये। रामकथा की प्रस्तुति सशक्त नृत्य शैली में हुई जिसमें संवाद कम और नृत्य की अधिकता ज्यादा दिखाई दी ।
नृत्य नाटिका में राम की भूमिका श्री फेयूआ खामप्रध, सीता की सुश्री हेथीरथ, रावण की श्री सेंगथियान व हनुमान की भूमिका श्री बोउन थावी ने निभाई । रॉयल बेले थियेटर के कलाकारों ने मुखौटा व मुकुट पहनकर रामलीला का मंचन किया । इसमें कुल 20 कलाकारों ने भाग लिया जिसमें 12 पुरूष व 8 महिला कलाकार थीं।
हिन्दू देवी-देवताओं में पूरी आस्था
करीबन 50 लाख की आबादी वाले लाओस देश की बहुसंख्यक जनसंख्या बौध्द धर्म की अनुयायी हैं, किन्तु वहां हिन्दू देवी-देवताओं में भी अपार श्रध्दा देखने को मिलती है । रॉयल बेले थियेटर के कलाकारों के साथ समन्वय के लिये राज्य शासन की ओर से आये साहित्य अकादमी के निदेशक श्री देवेन्द्र दीपक ने बताया कि भारत में कला यात्रा पर आये लाओस के कलाकारों ने प्रदेश भ्रमण के दौरान सांची के स्तूप पर जितनी श्रध्दा के साथ पूजा अर्चना की उतनी ही श्रध्दा भाव के साथ उज्जैन में महाकाल के दर्शन भी किये । उन्होंने बताया कि लाओस देश में बोली जाने वाली लाओ भाषा में संस्कृत व पाली भाषा का काफी प्रभाव दिखाई देता है । हालांकि यहां की द्वितीय भाषा फ्रेन्च है ।
केरल के कलाकारों की रामलीला आज
अंतर्राष्ट्रीय रामलीला मेले के आठवे दिन अर्थात 16 जून को कुडिअट्टम केरल के कलाकार रामकथा का मंचन करेंगे । नृत्य शैली में यह रामकथा सांयकाल 7.30 बजे मेला कलामंदिर रंगमंच पर होगी ।
विदेशी भाषा में रामलीला दिखाने के लिये पृथक थियेटर
लाओस देश के लोग कितनी शिद्दत और भक्तिभाव से रामायण में आस्था रखते हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां के लोगों ने ऑंग्ल भाषा में रामलीला दिखाने के लिये पृथक से एक थियेटर का निर्माण किया है। इस थियेटर में खासतौर पर यूरोपियन लोग रामलीला देखने आते हैं । रॉयल बेले थियेटर के निर्देशक श्री चंद्रा कहते हैं कि हमारे देश के लोआन प्रबांग शहर में बना यह रामायण थियेटर संभवत: विश्व का एक मात्र ऐसा थियेटर है जो विदेशियों को रामलीला दिखाने के लिये बनाया गया है । वे कहते हैं कि भारतवासियों को भी इस पर गर्व होना चाहिये कि उनके राष्ट्र की संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लाओसवासी भी लगे हुये हैं । श्री चंद्रा का कहना है कि उन्होंने रामायण से प्रेरित होकर वर्ष 2002 में रॉयल बेले थियेटर की स्थापना की । इस थियेटर के कलाकारों द्वारा अब तक रामायण पर केन्द्रित करीबन 200 शो किये जा चुके हैं ।
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