गुरुवार, 26 जून 2008

संतुलित उर्वरकों के उपयोग से बढ़ती है पैदावार

संतुलित उर्वरकों के उपयोग से बढ़ती है पैदावार

ग्वालियर 25 जून 08 । कृषि वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर किये गये प्रयोगों से यह बात साबित हो चुकी है कि खेतों से अधिकत्तम उत्पादन प्राप्त करने के लिये उर्वरकों के संतुलित व समन्वित उपयोग की जरूरत होती है न कि उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल की । एक ही तरह के उर्वरकों का उपयोग करने से फसलों को उचित पोषक तत्व नहीं मिल पाते , जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति क्षीण हो जाती है। इसलिये कृषकों को मिट्टी की प्रकृति को ध्यान में रखकर संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये । ऐसा करके किसान भाई उर्वरकों की खपत काफी कम कर सकते हैं इससे उन पर आर्थिक बोझ भी कम पड़ेगा।

       कृषि विशेषज्ञों के अनुसार फसलों में उर्वरकों के उपयोग से पहले यह जानना जरूरी है कि मिट्टी की प्रकृति कैसी है । अर्थात मिट्टी भारी है या हल्के किस्म की । ऐसा इसलिये आवश्यक है क्योंकि जब भूमि में उर्वरकों का उपयोग किया जाता है तब उसका बहुत बड़ा भाग मिट्टी की निचली सतह में बहकर चला जाता है , जिसका फसल में कोई उपयोग नहीं हो पाता । बलुई या हल्की मिट्टी में नत्रजनधारी उर्वरक जैसे सोडियम नाइट्रेट, कैल्शियम नाइट्रेट आदि का रिसाव चिकनी मिट्टी की अपेक्षा अधिक होता है । इसलिये हल्की मिट्टी में नत्रजनधारी उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये , अन्यथा फसलों को जरूरत के मुताबिक उर्वरक प्राप्त नहीं होंगें और उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा ।

       कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार उर्वरकों को हमेशा पौधों की जड़ों के आसपास देना चाहिये । जमीन के ऊपर उर्वरक बिखेरने से वह पौधों की जड़ों तक नहीं पहुंच पाते । नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों को एक बार में न देकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फसल की आवश्यकतानुसार दो या तीन बार में देना चाहिये । साथ ही उर्वरक देते समय भूमि में नमी होना भी आवश्यक है, क्यों कि पौधों की जड़ें घोल के रूप में पोषक तत्व ग्रहण करती हैं । खड़ी फसलों में उर्वरकों का प्रयोग पानी में घोलकर करना चाहिये । नत्रजन, स्फुर व पोटाश जैसे यूरिया, डीएपी व पोटेशियम सल्फेट को पानी में घोलकर खड़ी फसलों में दिया जा सकता है ।


 

       जैविक खादों जैसे गोबर, कम्पोस्ट अथवा हरी खाद के प्रयोग से भी रासायनिक उर्वरकों की खपत कम की जा सकती हे । कृषि विशेषज्ञ किसानों को यह भी सलाह देते हैं कि फसलों को जितने पानी की आवश्यकता हो उतनी ही सिंचाई करें अर्थात खेतों को अनावश्यक रूप से जलमग्न नहीं करना चाहिये । ऐसा करने से उर्वरक पानी के साथ रिसकर जमीन में नीचे बह जाते हैं । खड़ी फसल में उर्वरकों का प्रयोग तब करना चाहिये जब खेत पांव सहन करने लगें । साथ खरपतवारों को निकालकर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये अन्यथा वे भी उर्वरकों से पोषक तत्व ग्रहण कर लेते हैं और उत्पादन क्षमता घट जाती है । उर्वरकों का उपयोग  मृदा के पीएच मान के आधार पर ही करना चाहिये,क्योंकि सभी उर्वरक हर प्रकार की जमीन में उपयुक्त नहीं होते ।

 

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