हास्य/व्यंग्य
हूँ.....लो हो गया एनकाउण्टर कर दिया शॉट डेड साले को
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
शहर ए आजम इन दिनों तफरी पर हैं, उनका स्टाफ आजाद इन दिनों पूरी आजादी और लोकतंत्र का आनन्द ले रहा है । साहब के कार्यालय में इन दिनों मार्च क्लोजिंग चल रहा है, साहब को हुकुम मिला कि बजट पूरा निबटाना है, एक पाई भी सरैण्डर नहीं होनी चाहिये । निपटाओं कैसे भी कहीं भी ।
साहब और साहब के सैनिक हर साल कुछ पैसा सरैण्डर कर लौटाने के आदी थे और बजट सरैण्डर करना तथा पैसा वापस सरकार को भेजना उनकी सालानाचर्या का अहम भाग थी । वे इसे सरकारी पैसे की बचत मानते आये थे । पैसा लौटा कर छाती ठोक के सीना तान के अपनी तारीफ में खुद ही कशीदे बॉंच लिया करते थे ।
अबकी बार ससुरी मुसीबत हो गयी, सब उल्टा हो गया गुल गपाड़ा हो गया । ऊपर से आदेश हैं सरैण्डर नहीं एनकाउण्टर चाहिये, वापसी नहीं उपयोगिता प्रमाण चाहिये ।
रटी रटाई लाइनों पर ट्रेडीशनलीया स्टाइल में काम करने वाले सरकारी कार्यालय नये किस्म के आदेश से चक्कर में पड़ गये । सरकारी बचत की जगह अब सरकारी खपत में सरकारी खुपडि़या दौड़ा दौड़ा कर बेहाल हो गये मगर ससुरा बजट था कि जित्ता खर्च करो बढ़ता ही जाता था ।
ऑफिस के बाबूओं के चकरघिन्नी हो जाने के बाद भी जब बजट का निकाल ( यह सरकारी शब्द है) जब पल्ले नहीं पड़ा तो साहब से मार्गदर्शन चाहा गया, साहब ने मोबाइल से मार्गदर्शन दिया, कि पहले लिस्ट बना लो कि अपने ऑफिस में क्या क्या होता है, और उसमें क्या क्या सामान लगता है या क्या क्या खर्च होता है फिर उसके सामने खर्चा डालना शुरू करो ।
बाबूओं ने साहब के निर्देशानुसार लिस्ट बनाना शुरू की, लिस्ट बनी तो ठाकुर साहब द्वारा हवन के लिये लिखाई जाने वाली सूची की तरह बन गयी । अब इस लिस्ट में खर्चा डालने का काम शुरू हुआ, सारे खर्चे डालने के बाद भी बजट फिर भी एनकाउण्टर नहीं हुआ, फिर सरैण्डर हुआ जा रहा था, बाबूओं ने फिर ऊपर से मार्ग दर्शन चाहा, ऊपर से मोबाइल पर आकाशवाणी स्टायल में साहब फिर भगवान कृष्ण की तरह मुस्कराते हुये उवाचे कि ऐसा करो कि मनमानी रकम भर दो, बाबू अर्जुन के मानिन्द घिघियाये कि साहब पहले से हम 400 के 3400 और 700 के 70000 लिख लिख कर रखे हैं पर फिर भी साला सरैण्डर कर रहा है अब कैसे एनकाउण्टर करें ।
साहब ने गीता के सोलहवें अध्याय के कृष्ण के मानिन्द कहा कि आसुरी सम्पदा से काम नहीं चल पा रहा तो दैवीय सम्पदा भी शामिल कर लो, फिर भी बात न बने तो सत्रहवें अध्याय वाले त्रय गुण विभाग कर लो, बाबूओं ने फिर अफसर से मार्गदर्शन चाहा और कहा प्रभो आपकी बातें कुछ समझ नहीं आ पा रहीं, अगर हिन्दी में बतायें तो शायद समझ में आ जाये । या फिर मुरैना के अंग्रेजी स्कूलों वाली इंग्लिश स्टायल में बता दें तो कुछ पल्ले पड़ जाये ।
अफसर मोबाइल वाली आकाशवाणी पर फिर कृष्ण स्टाइल को छोड़ मुरैना के अंग्रेजी स्कूलों के टीचर स्टाइल में अपनी व्याख्या सुनाने लगे और बोले, ऐसो करियो जित जित में कोमा लगे होयं तहॉ तहॉं ऐसी ऐसी मद डार दियो तिनके प्रूफ न होतई, और दो चार दिना बाद डिलीट हे जातें । जैसें दीवाल की लिखाई हर महीना के खच्च में एण्ट्री कर देओ, दीवाल की लिखाई हप्ता आठ दिना में मिटरत रही, हम लिखवावत रहे, ऐसेंई लिखीयो हमने भोंपू बजवाये प्रचार के काजें, रिक्शान में लाउडस्पीकर धरकें बजवाये, गामन में ऐलान करवाये, नास्ता फास्ता डीजल फीजल सिग डार डूर के देखो अब तिहाई बैलेन्स सीट का कहि रही है, फिरऊ बचें तो पेड़ पौधा लगाइबो दिखाय दीयो, कोऊ स्पष्टीकरण आवे तो कहि दीयो हमने तो लगाये हते, अब गैया भैंसे चर गयीं तो का करें । और बिनकी जाली को खच्च डारों तो लिख दीयो के पानी नहीं परो सो सूख साख गये, अबऊ कछु खच्च बच परे तो फैक्स में और फोनन में दिखाय दीओ, जे सिग कर करू के फिर हमें फोन लगाय लीयो, दूसरे नम्बर पे लगईयो, जा नम्बर को हम बन्द राखेंगे, पबलिक डिस्टरब करति है । काऊ को पानी ना आय रहो, काऊ की बिजली नाने तो काऊ की गली में सफाई ना हे रही, अब हम झाड़ू लेके जायें का, सिगुई देस परेसान है, कौन कौन की सुनें सो वा नम्बर की सिम खेंच देत हैं ।
बाबूओं ने साहब की समझाइस के अनुसार फिर से बजटिंग का एनकाउण्टर करना शुरू किया, फिर भी बजट था कि सरैण्डर कर रहा था । हैरान परेसान बाबूओं ने आखिर खेंच के दारू का मद भी चढ़ा दिया, साहब की डेली इत्ती, बाबूओं ने इत्ती और आने जाने वाले अतिथियों ने इत्ती और रोज टाइमपासीयों ने इत्ती पी ......। आखिर जब हिसाब लगाया तो अब न केवल बजट एनकाउण्टर हो गया बल्कि शॉट डेड हो गया, बल्कन ओवर बजट हो गया ।
मार्च क्लोजिंग हो गया, अब जब साहब पर्सनल टूर से लौटेंगे तो पीठ ठोकेंगे वाह भई वाह, हूं साला बार बार सरैण्डर कर रहा था, कर दिया एनकाउण्टर हो गया शॉट डेड । निबट गया गड़रिया की तरह, जादा ही अति धर रखी थी ।