मंगलवार, 18 मार्च 2008

ग्रामीण पत्रकारिता बनाम भारतीय पत्रकारिता

ग्रामीण पत्रकारिता बनाम भारतीय पत्रकारिता

-आर.एम.पी.सिंह

अपर संचालक जनसम्‍पर्क विभाग म.प्र.शासन

गाँव का महत्व-

       ईश्वर ने गांव को बनाया, मनुष्य ने शहर बनाया । गांव में खेत हैं, खलिहान हैं, नदी है, तालाब है,बाग-बगीचा है, पक्षियों का कलरव है, रंभाती गायें हैं, वहां प्रकृति बसती है, भारत माता गांव में ही रहती है । बापू जी ने भी कहा था भारत की आस्था गाँव में रहती है । सुमित्रा नंदन पंत ने कहा - मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम।शहर बढ़ते गये गाँव लुटता चला गया। गाँवों में भी अब शहरों की नकल होने लगी । शहर गांव का शोषण करने लगा ।

       भारत की पत्रकारिता - स्वतंत्रता संग्राम की देन है । स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कहीं न कहीं पत्रकारिता से जुड़े थे । वे पत्र निकालते थे, पत्रों में लिखते थे । उनका उध्देश्य था गुलामी की बेड़ी से भारत माता को मुक्त कराना । इस कार्य में वे सफल हुए । इमें आजादी मिली । आजादी के बाद जो ह्रास राजनीति का हुआ, वहीं पत्रकारिता का भी । हम गाँव से आये लेकिन गाँव को भूलते चले गये ।

       स्वतंत्रता प्राप्ति तक पत्रकारिता मिशन थी , अब प्रोफेशन हो गई । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उद्भव के पश्चात समाचारों में एक विस्फोट आया है । मुझे प्रसन्नता होती है जब छोटी-छोटी खबरें भी इलेक्ट्रॉनिक चैनेल्स पर आती हैं । लेकिन जिस प्रकार ' विलेज जर्नलिज्म' को उभर कर आना चाहिये, नहीं आया है । राजधानी और बड़े शहरों की पत्रकारिता का स्तर बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों और सत्ता के गलियारों में बैठे नौकरशाहों के संबंधों के आधार पर मापा जाता है । गाँव की समस्याओं को सुलझाने में क्या मिलने वाला  है । शहर में शान है, शोहरत है, पैसे हैं । लेकिन गाँव में खबरें हैं। मौलिक खबर ।

       भगवान कृष्ण गाँव से जुड़े थे, तत्कालीन समस्याओं के निराकरण में क्रियाशील थे। समाज ने उन्हें भगवान बना दिया । भगवान राम शहर से गांवों में गये । उनका वनवास तत्कालीन 'रूरल जर्नलिज्म' से जुड़ा था । जब वे चलते थे, तो ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं की जानकारी लेते थे, उनसे चर्चायें करते थे ।

'' पूछत ग्राम वधु सिय सों सखि सांवर है सो रावर को है ''

और '' समाचार पुरवासिन्ह पाये ।''

उस समय शांति के क्षेत्र में कुछ राक्षसों द्वारा लूट-पाट की जाती थी । जो विरोध करता उसे मौत के घाट उतार दिया जाता था। अत: श्रीराम ने चित्रकूट से प्रस्थान के समय '' पत्रकार वार्ता'' बुलाई थी जिसमें यह घोषणा की थी कि इस धरती को मैं उत्पातियों से मुक्त कर दँगां '' और श्री राम के इस संदेश को ऋषि मुनियों और उनके आश्रम में रह रहे शिष्यों ने इतना प्रचारित प्रसारित किया कि रावण और उसकी लंका तक यह समाचार पहुंच गया कि श्रीराम मनुष्य नहीं, ईश्वर हैं । शारीरिक रूप से रावण को श्रीराम ने परास्त किया, परन्तु मानसिक रूप से उसे तत्कालीन मीडिया ने पराजित कर दिया था । ग्रामीण पत्रकारिता का प्रतिफल था कि जब श्रीराम अयोध्या से चले थे, तो एक मनुष्य थे, लेकिन 14 वर्ष के बाद जब लौटे तो भगवान बन गये थे ।

       यहां मैं दो पत्रकारों की चर्चा करना चाहूंगा। अमेरिका में '' विलेज जर्नलिज्म' के जनक हैं रूडी एवरामसन । वे रूरल रिपोर्टर के रोल मॉडल थे । उन्होंने अमेरिका में ' रूरल जर्नलिज्म संस्थान ' की स्थापना की थी । वे आजीवन इस बात के लिये संघर्ष करते रहे कि रिपोर्टिंग के माध्यम से जनता की सेवा करों । वे आजीवन अपने आप से अनजान बने रहे और ' आत्म महत्व ' को कभी महत्व नहीं दिया । उन्होंने ग्रामीण पत्रकारिता में अमेरिका में राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया थ ।

       अपने देश में भी एक पत्रकार 'द हिन्दू ' के श्री पी साईंनाथ हैं जो इस पत्र में ' रूरल एफेयर्स ' के एडिटर हैं । उन्हें  ' ग्रामीण भारत की आवाज ' की संज्ञा दी गई है । सांईनाथ वर्तमान में रूरल रिपोर्टर में अग्रणी हैं । उन्होंने रूरल इंडिया पर 84 रिपोर्ट लिखे । उनकी प्रसिध्द पुस्तक है' ''Every body loves a good Drought''  श्री साईंनाथ आज भी ग्रामीण क्षेत्र की वास्तविकता से सवयं को परिचित कराने के लिये वर्ष में 280 दिन ग्रामीण क्षेत्र में बिताते हैं । उन्हें 2007 में रमन मेगासेसे पुरस्कार से नवाजा गया है  और भी कई पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले हैं । उनका मनना है कि आप जिस स्थान की रिपोर्टिंग करने जाते हैं- वहां के इतिहास, भूगोल, जलवायु आदि का पूरा ज्ञान होना चाहिये ।

क्या देखें -

       ग्रामीण क्षेत्र में मुख्य रूप से कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, रीति-रिवाज, भेद-भाव, गरीबी, कुपोषण, वनों का क्षरण, खनिजों का दोहन आदि समस्यायें रहती हैं । आज के _ढ़दृ'द्म कुछ तो अच्छा कर रहे हैं, कुछ _ढ़दृ के माध्यम से पैसा कमा रहे हैं। ऐसे संगठनों पर भी आप सबकी दृष्टि रहनी चाहिये । आमजनों की समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट करना ग्रामीण पत्रकारिता का उध्देश्य है ।

       मैं अपने विभाग के अधिकारियों से कहना चाहूंगा कि वे भी ग्रामीण क्षेत्रों में जायें। बहुत सी ऐसी बाते हैं जिसे आप लिख तो नहीं सकते , लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों के ध्यान में लाई जा सकती हैं । इससे उसके निराकरण के प्रयास होंगे। जन सम्पर्क के लोग जनता से जुड़ें  तो उनके कार्य में और निखार आयेगा । छोटी से छोटी बात उच्च स्तर पर महत्वपूर्ण हो जाती है । आप अपने वरिष्ठ अधिकारियों को रिपोर्ट करते रहें। मीडिया में आने से पूर्व अधिकारियों को मालूम हो जाये ऐसा प्रयास आपके स्तर पर होना चाहिये ।

-आर.एम.पी.सिंह

15 मार्च 08

 

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