जनसंख्या स्थिरीकरण : पुरूष नसबंदी के लिए आगे आवें
ग्वालियर 16 जुलाई 10। भारत के पड़ौसी देशों में अफगानिस्तान सबसे ज्यादा बच्चे पैदा करने वाला देश है। अफगानिस्तान की प्रजनन क्षमता दर 6.8 है। अफगानिस्तान के बाद पाकिस्तान 4.1, भूटान 3.6, नेपाल 3.1, इण्डोनेशिया 2.6, श्रीलंका 2.4, थाईलैण्ड तथा चीन 1.6, भारत तथा बंगलादेश 2.7 प्रजनन क्षमता दर वाले देश हैं। आज हमारे देश की जनसंख्या 118 करोड़ से भी अधिक है, जिनमें युवा और बच्चों की काफी बड़ी संख्या है जो सन्तानोत्पत्ति आयु वर्ग में हैं अथवा शीघ्र ही इस लायक होने जा रहे हैं। जनसंख्या की दृष्टि से हम पूरे विश्व का पांचवा भाग हैं परन्तु हमारा भू-भाग समूचे विश्व का मात्र ढ़ाई प्रतिशत भर है।
जनसंख्या वृध्दि का सीधा और सबसे बुरा असर महिलाओं के स्वास्थ्य पर होता है। बार-बार कम अंतर से गर्भधारण के कारण उनमें खून की कमी, बच्चादानी का फटना, हड्डियों का टेड़ामेढ़ा होना, गर्भाशय बाहर आना और असमय बुढ़ापा जैसे कई रोग हो जाते हैं जो सचमुच चिन्ता का विषय है। भारतीय समाज को इस दिशा में जागरूक बना कर जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावी उपायों पर खास जोर देना बहुत जरूरी हो गया है। अगर जनसंख्या स्थिरीकरण का मार्ग नहीं अपनाया गया तो हम निकट भविष्य में विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश चीन से भी आगे निकल जायेंगे। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 में हमारे देश की आबादी 175.52 करोड़ होगी। तब भारत विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश होगा। मध्यप्रदेश शासन ने आबादी पर प्रभावी नियंत्रण के लिये जनवरी 2000 में जनसंख्या नीति की घोषणा की है। आज आवश्यकता है कि हम जनंसख्या नियंत्रण के लिये समाज में व्यापक जागरूकता पैदा करें ताकि संसाधनों, पर्यावरण और जनसंख्या में असन्तुलन को रोका जा सके।
मध्यप्रदेश गठन के समय प्रजनन दर 4.3 थी जो अब 3.1 पर आ चुकी हैं। अब भी मध्यप्रदेश देश के 35 राज्यों में से छठे, नंबर पर आता है। इन हालातों को देखते हुए हमें प्रजनन क्षमता दर और मृत्यु दर दोनों को ही तेजी से घटना होगा। मध्यप्रदेश में भी देश के साथ-साथ परिवार नियोजन का सिलसिला 1952 से ही प्रारंभ हो गया था। वर्ष 1962 में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के माध्यम से यह सुविधा गांवों तक पहुँची। वर्ष 1970 से लक्ष्योन्मुखी प्रयासों के फलस्वरूप तेजी आयी। वर्ष 1975 से पुरूष नसबंदी धीरे-धीरे गति पकड़ने लगी परंतु चीरा लगाकर (पुरूष नसबंदी) का स्थान नवीन पध्दति एन एस व्ही. द्वारा लिये जाने के बाद ही पुरूष नसबंदी करवाने वालों में इज़ाफा दर्ज किया जाने लगा। वर्ष 1980 में लैप्रास्कोपिक विधि (एल टी टी.) ने नसबंदी कार्यक्रम में नई जान फूंक दी। फिर देश के राजनैतिक परिदृश्य ने पलटा खाया हालातों के कारण सोच और एप्रोच दोनों में बदलाव आते रहे और वर्ष 1996 में कार्यक्रम के लिए लक्ष्य मुक्त मार्ग अंगीकार कर लिया गया। परिवार नियोजन कार्यक्रम पहले परिवार कल्याण कार्यक्रम बना और फिर वर्ष 2000 में इसे जनसंख्या स्थिरीकरण की संज्ञा दे दी गई। नि:सन्देह इस अवधि में परिवार के आकार के प्रति जनजागृति आई। नागरिक बच्चों के प्रति अपने दायित्व को समझने लगे । वे अपनी सीमायें और छोटे परिवार का महत्व भी समझने लगे। मध्यप्रदेश में वर्ष 1990-91 से 2009-2010 तक बीस वर्षों के दौरान 73 लाख 33 हजार 545 नसबंदी ऑपरेशन किये गये। पुरूषों के 58 हजार 257 व्ही टी. तथा 1लाख 53 हजार 667 एन एस व्ही. पध्दति से इस प्रकार पुरूषों के कुल 2 लाख 51 हजार 924 नसबन्दी ऑपेरशन हुए जो मात्र 6.78 प्रतिशत थे । वहीं 70 लाख 81 हजार 621 महिलाओं ने नसबन्दी ऑपेरशन करवाये फलस्वरूप उनकी 93.22 प्रतिशत भागीदारी हुई।
मध्यप्रदेश के बीस वर्षों के नसबंदी वाले यह आंकड़े दर्शाते हैं कि परिवार कल्याण का स्थायी मार्ग अपनाने में महिलायें ही आगे आईं किन्तु केवल महिलाओं पर आधारित परिवार कल्याण कार्यक्रम से हमारा मकसद पूरा नहीं हो जाता। हमें पुरूषों की भागीदारी को भी बढ़ाना होगा। पुरूष नसबन्दी की मौजूदा स्थिति 6.78 प्रतिशत है जिसे वर्ष 2011 तक 20 प्रतिशत तक लाना होगा तभी इस दिशा में सार्थक पहल हो सकेगी।
एन एस व्ही. अर्थात बिना चीरा टांका वाली पुरूष नसबन्दी
पुरानी वासेक्टोमी (पुरूष नसबन्दी) में अण्डकोषों (वृषण आवरण) के ऊपर चाकू से दो चीरा लगाकर, शुक्रवाहिनी को बाहर निकाल कर काटकर बांधते थे, फिर दोनों चीरों पर टाँके लगाते थे, जिससे रक्त स्त्राव भी होता था और पूरी प्रक्रिया में समय भी अधिक लगता था। अब एन एस व्ही. में चाकू का कोई काम नहीं रहा। मात्र एक सूक्ष्म छिद्र द्वारा ऑपरेशन सम्पन्न हो जाता है और टाँका या पट्टी की आवश्यकता नहीं होती । इस पूरी प्रक्रिया में मात्र दस मिनिट का समय लगता है।
एन एस व्ही. ऑपरेशन में ऑपेरशन की जगह निश्चेतना करने का इन्जेक्शन लगा दिया जाता है जिससे दर्द नहीं होता। सुन्न की हुई चमड़ी में एक खास चिमटी से शुक्रवाहिनी नली को पकड़ लेते हैं तथा दूसरी खास चिमटी से पकड़ी गई शुक्रवाहिनी नली के ऊपर की चमड़ी में, जो सुन्न है, एक बारीक सा दो मि मी. का छेद करते हैं। छेद करने वाली उसी चिमटी की नोंक से उचका कर शुक्रनलिका को बाहर निकाल लेते हैं और पहले वाली गोल चिमटी से बीच में पकड़कर दोनों सिरे बांध दिये जाते हैं। बंधे हुए शुक्र नली के दोनों छोरों के बीच का एक सेमी. टुकड़ा काटकर अलग कर दिया जाता है और शुक्र नली को वापस अण्डकोष थैली में डाल दिया जाता है। चमड़ी में किये गये छेद पर डाक्टरी टेप चिपका दिया जाता है। तीन दिन बाद ये छेद अपने आप बन्द होकर ठीक हो जाता है।
एन एस व्ही. विश्वसनीय, आसान, स्थाई और भयमुक्त तरीका है। चीरा व टांका नहीं लगता, टिशू ट्रोमा (ऊतकों को नुकसान) सबसे कम होता है। अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती मात्र दस मिनट में ऑपरेशन सम्पन्न और वह व्यक्ति अपने घर या काम पर जा सकता है। इस ऑपरेशन के दौरान दर्द भी नहीं होता और खून भी नहीं निकलता। ऑपरेशन के 90 दिन के बाद वीर्य की जाँच कराकर यह जाना जा सकता है कि एन एस व्ही. सफल है या नहीं जिसके फलस्वरूप फेल होने का भी भय नहीं रहता। साथ ही आवश्यकता पड़ने पर शुक्रवाहिनी को फिर से भी जोड़ा जा सकता है। व्यक्ति द्वारा एन एस व्ही. के बाद सामान्य रूप से दैनिक कार्य किया जा सकता है।
नसबन्दी हेतु प्रोत्साहन
परिवार कल्याण नसबन्दी कराने वालों में पुरूष नसबन्दी कराने वाले को 1100 रूपये एवं प्रेरक को 200 रूपये तथा महिला नसबन्दी कराने वाले हितग्राही को 600 रूपये एवं प्रेरक को 150 रूपये तत्काल ही प्रदान किये जाते हैं।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ग्वालियर ने बताया कि विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर दिनांक 11 जुलाई 2010 से 17 जुलाई तक परिवार कल्याण सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। इस सप्ताह के अन्तर्गत जिले में जिला चिकित्सालय सि.हा./ सामुदायिक स्वा के./ प्रा स्वा. केन्द्रों सहित प्रसूतिगृहों में परिवार कल्याण नसबन्दी शिविर आयोजित किये जा रहे हैं।
परिवार कल्याण सप्ताह में 11 जुलाई से 15 जुलाई 2010 तक के मध्य 142 नसबन्दी ऑपरेशन हो चुके है। जिले में माह अप्रैल से अभी तक 836 नसबन्दी ऑपरेशन किये जा चुके हैं।
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