गुरुवार, 22 जुलाई 2010

शिक्षा में नैतिक मूल्यों व भारतीयता का समावेश जरूरी- श्री सोनी

शिक्षा में नैतिक मूल्यों भारतीयता का समावेश जरूरी- श्री सोनी

आशावादी खतरों में भी अवसर ढूंढ लेते हैं- श्री रोहाणी

ग्वालियर 21 जुलाई 10 शिक्षा को नैतिक मूल्यों मातृभूमि से जोड़ें, हर विषय में भारतीय चिन्तन को उजागर करने वाली सच्चाई का समावेश कर नई पाठय पुस्तकें तैयार करें, जिससे शिक्षा समाधानपरक हो सके। उक्त आशय के विचार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सर कार्यवाह श्री सुरेश सोनी ने ''शिक्षा का भारतीयकरण'' विषय पर व्याख्यान देते हुए व्यक्त किये। यहां डॉ. भगवत सहाय सभागार में मध्यभारत शिक्षा समिति के सत्तरवें स्थापना दिवस समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विधानसभा अध्यक्ष श्री ईश्वर दास रोहाणी ने की। महापौर श्रीमती समीक्षा गुप्ता मध्यभारत शिक्षा समिति के वरिष्ठ पदाधिकारी मंचासीन थे। समारोह में राज्यसभा सांसद एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री प्रभात झा, स्थानीय सांसद श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया, बीस सूत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति के उपाध्यक्ष श्री जयभान सिंह पवैया सहित अन्य गणमान्य नागरिक संस्था के सदस्यगण मौजूद थे।

       सह सर कार्यवाह श्री सोनी ने वर्तमान शिक्षा पध्दति की खामियों को उजागर करते हुए कहा कि शिक्षा के विस्तार से समस्याओं का समाधान होना चाहिये। लेकिन वर्तमान शिक्षा पध्दति से हिंसा, आतंकवाद, अलगावबाद आदि समस्यायें दिनोंदिन बढ़ती जा रहीं है। इससे जाहिर होता है कि शिक्षा पध्दति में कोई मौलिक गड़बड़ी है। इसे संपूर्ण विश्व के विचारक स्वीकार भी कर रहे हैं। उन्होंने कहा प्राचीन भारतीय शिक्षा पध्दति में मूल्यों पर आधारित थी और उसमें हर समस्या का समाधान था। उन्होंने प्राचीन भारतीय शिक्षा पध्दति को अति विशिष्ट निरूपित करते हुए कहा कि भारत में शिक्षा स्वतंत्र थी और पाठय क्रय, विषय, शिक्षा पध्दति आदि के नियामक आचार्य होते थे। इसी वजह से भारतभूमि में स्वतंत्र चेता भी तैयार होते थे। उन्होंने महाभारत काल में अभिमन्यु द्वारा माँ के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने की शिक्षा ग्रहण करने का उदाहरण देते हुए कहा कि वास्तव में मनुष्य की शिक्षा गर्भ से ही आरंभ हो जाती है और माँ बच्चे की प्रथम गुरू होती है। वैज्ञानिक परीक्षणों में यह बात साबित भी हो रही है। श्री सोनी ने कहा कि समाज में रहने वाले संत पुरूष समाज को पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कारवान बनाते थे। भारतीय शिक्षा पध्दति में दर्शन में वैराग्य के साथ-साथ 10 शास्त्र 32 विधायें, 64 कलायें थीं, जिन्हें अंग्रेजी साम्राज्य ने नष्ट कर दिया, जिसके फलस्वरूप समाज में संस्कार शून्यता आई और वेल्यू सिस्टम तहस नहस हो गया। उन्होंने एक गाँधीवादी विचारक पुस्तक का उध्दहरण देते हुए कहा कि भारत में कभी गांव से लेकर ऊपर तक शिक्षा का वृक्ष था, 5 लाख स्कूल थे और शिक्षक थे और शिक्षक गांव के मुखिया की तरह मिला करते थे। 1835 में आई मैकाले शिक्षा पध्दति ने भारतीय शिक्षा पध्दति को भारत से अलग कर दिया। श्री सोनी ने कहा कि शिक्षा के वर्तमान ढांचे में इस अंग्रेजी सिस्टम को बदलकर संस्कारित शिक्षा देने अर्थात शिक्षा के भारतीयकरण की जरूरत है। शिक्षा को स्वतंत्र करना होगा और निर्वाचन आयोग की तरह शिक्षाविदों के सम्पूर्ण अधिकार में एक स्वायत संस्था का गठन करना होगा, जिससे वे स्वतंत्र रूप से शिक्षा को भारतीय तरीके से पुनर्जीवित कर सकें।

       अध्यक्षीय आसंदी से बोलते हुए मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष श्री ईश्वरदास रोहाणी ने कहा कि समाज में बढ़ती भौतिकवादी संस्कृति से मूल्य और संस्कारों में गिरावट आई है। उन्होंने आगे कहा कि आज समाज में निराशा छाती जा  रही है। उन्होंने युवाओं का आहवान करते हुए कहा कि आशावादी, खतरों में भी अवसर ढूढं लेते हैं। श्री रोहाणी ने कहा निरंतरता जीवन का दूसरा नाम है। बड़े सपने देखें और उन्हें साकार करने के लिये कठोर परिश्रम करें। उन्होंने कहा जीवन का तत्व है सुख दो और सुख पाओ। जहां प्रेम है वहां सम्पन्नता व सफलता स्वत: आ जाती है।

       समारोह में मध्यभारत शिक्षा समिति से जुड़ी विभूतियों श्री माधव शंकर इन्द्रापुरकर, श्री घनश्याम तिवारी व श्री शिवाकर ठाकुर को अतिथियों द्वारा शॉल व श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया गया। आरंभ में संस्था के सचिव श्री नरेन्द्र श्रीधर कुंटे ने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तु किया। अंत में संस्था से जुड़े श्री दीपक शर्मा ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन श्री आनंद करारा द्वारा किया गया।

 

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