पांच दिवसीय कृषि विज्ञान मेला जारी, कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कैसे करें उन्नत खेती
सागर से आये प्रगतिशील किसान ने बताई जैविक खेती की विधि
ग्वालियर 6 जून 08 । गुरूवार से शुरू हुये पांच दिवसीय कृषि विज्ञान मेले में आज जिले की जनपद पंचायत घाटीगांव के विभिन्न ग्रामों से आये किसानों ने उन्नत कृषि तकनीक के बारे में उपयोगी जाकनारी प्राप्त की । यहां ग्वालियर व्यापार मेला के कला मंदिर रंगमंच प्रांगण में जारी इस मेले में किसानों को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी भी संबंधित अधिकारियों द्वारा दी गई । कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिकों एवं विभागीय विषय विशेषज्ञों ने जहां उन्नत कृषि तकनीक के तरीके बताये वहीं प्रगतिशील किसानों ने भी अपने अनुभव बाँटे ।
जैविक खेती के क्षेत्र में उच्च प्रतिमान स्थापित करने वाले सागर जिले से आये उन्नत किसान श्री इंद्र बहादुर द्वारा जैविक खेती और खेती को लाभकारी बनाने के लिये सुझाये गये उपायों से जिले के किसानों को खासा प्रभावित किया । उल्लेखनीय है कि श्री इंद्र बहादुर सिंह सागर जिले के भैसा ग्राम में 1984 से सफलतापूर्वक जैविक खेती कर रहे हैं । उनके द्वारा जैविक खेती के क्षेत्र में सारे शोध वहीं पर किये गये हैं । श्री सिंह महत्मागांधी चित्रकूट विश्वविद्यालय में कृषि के व्याख्याता भी रहे चुके हैं । राज्य शासन ने जैविक कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ श्री इंद्र बहादुर सिंह को राज्य जैव विविधता बोर्ड का सदस्य बनाया है । जिले के किसानों को जैविक खेती के प्रति प्रोत्साहित करने के मकसद से बुलाये गये श्री सिंह का कहना था कि पौधों के भोजन के लिये 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । रासायनिक खाद इनमें से केवल तीन तत्वों नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की ही पूर्ति कर पाते हैं जबकि जैविक खाद सभी 16 तत्वों की पूर्ति करने में समक्ष होती है । उन्होंने बताया कि एक ग्राम मिट्टी में 100 से लेकर एक करोड़ तक सूक्ष्म जीव होते हैं । कृत्रिम खाद (रासायनिक खाद) के अत्याधिक उपयोग से मिट्टी के ये सूक्ष्म जीव नष्ट हो रहे हैं । साथ ही मिट्टी की रचना व संरचना दोनों नष्ट हो रही हैं अर्थात उसकी उर्वरा शक्ति क्षीण हो गई है। जैविक खाद से इन सूक्ष्म जीवों को पुनर्स्थापित किया जा सकता है और खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है । उन्होंने जैविक तत्वों के महत्व पर प्रकाश डालते हुये कहा कि सभी पेड़-पौधों को जीवंत बनाये रखने का प्रकृति का अपना तरीका है और यही तरीका फसलों पर भी लागू होता है । सभी जीव प्रकृति के लिये महत्वपूर्ण हैं और सयंत्र के सदृश्य हैं । सारे जीवों की पृथक-पृथक जिम्मेदारी है जो वह पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते चले आ रहे हैं । हमें प्रकृति के इस तंत्र को छिन्न-भिन्न होने से बचाना चाहिये तभी पर्यावरण संतुलित होगा और उन्नत खेती भी तभी हो सकेगी ।
जैविक खेती से गांव का पैसा गांव में
कृत्रिम खादों से खेतों में आई आवश्यक पोषक तत्वों की कमी से जहां पैदावार कम हुई है वहीं खेती की लागत भी बढ़ी है । रासायनिक खाद खरीदने में किसानों को बहुत बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ती है । कहने का आशय है कि गांव का पैसा गांव से बाहर जा रहा है । सागर से आये प्रगतिशील किसान इंद्र बहादुर सिंह का कहना था कि रासायनिक उर्वरकों की खरीदी में गांव की जो बड़ी धनराशि बाहर चली जाती है, उसे गांव में ही जैविक खाद उत्पादित कर रोका जा सकता है । उनका कहना था कि नीम, निबोली तेल, तम्बाकू व अकौआ के पत्ते, नाडेप टांका व कंजी की खली, सल्फो-फोस्फो कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, मटका खाद, सींग खाद आदि गांव में ही आसानी से ही तैयार किये जा सकते हैं । उन्होंने बताया कि जैविक खाद के सतत प्रयोग से पैदावर क्षमता दोगुनी तक बढ़ जाती है । साथ ही भू-गर्भ जल व मिट्टी प्रदूषण मुक्त हो जाते हैं । जमीन में पानी सोखने और पानी को अधिक समय तक रोकने की क्षमता बढ़ जाती है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें