बुधवार, 2 जुलाई 2008

सूचना आयोग ने मुरैना न्‍यायालय को आवेदक को 15 दिन में सूचनायें उपलब्‍ध कराने के आदेश दिये

सूचना का अधिकार में सूचनायें न देने पर मुरैना न्‍यायालय के विरूद्ध 25 हजार के जुर्माने की कार्यवाही प्रारंभ

खास रपट नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

सूचना आयोग ने मुरैना न्‍यायालय को आवेदक को 15 दिन में सूचनायें उपलब्‍ध कराने के आदेश दिये

आयोग के निर्देश पर मिली आवेदक को सूचनायें, आयोग की लताड़ के बाद अब अधिनियम की धारा 4 का भी पालन करेगा मुरैना न्‍यायालय

मुरैना 2 जुलाई 08, अंतत: लड़ते लड़ते आवेदक की विजय हुयी । हालांकि मुकाबला टेढ़ा था कठिन था, और किस्‍सा जल में रहकर मगर से वैर करने वाला था, लेकिन लड़ाई अधिकारों को पाने और हक की थी, सत्‍य की शक्ति और हौसलों की सवारी पर चढ़कर गरीब तथा लाचार होने के बाद भी वह जंग जीत गया ।

एक चींटीं जब किसी हाथी को चुनौती देती है, तो उपहास का पात्र बन जाती है, वह भी बन गया था लेकिन चींटीं ने आखिर हाथी को पछाड़ दिया । और भारत के उन हजारों आसधारीयों को आशा और हौसलों की एक किरण दे दी जो सूचना का अधिकार पाने के लिये आज तक संघर्षरत हैं ।

मध्‍यप्रदेश के सूचना आयोग ने न्‍याय व सच्‍चाई का साथ देते हुये थोड़ी सी हिम्‍मत दिखाई है इसे कुछ हद तक शुभ ही माना जा सकता है । ऐसे मिसाली (माइल स्‍टोन्‍ड) फैसले आयोग थोड़ी सी हिम्‍मत जुटाकर सुनाता रहे तो लोगों में सूचना का अधिकार के प्रति पुन: विश्र्वास जागेगा और लगभग विस्‍मृत किये जा चुके इस जन अधिकार को पुनर्जीवन प्राप्‍त होगा । मेरी नजर यह प्रतीकात्‍मक अलार्म बनना चाहिये और मीडिया में ऐसे निर्णयों को खास तवज्‍जो दी जाना चाहिये ।

मुरैना जिला की छोटी सी तहसील कैलारस में वकालत करने वाले एडवोकेट लज्‍जाराम पाण्‍डेय की मध्‍यप्रदेश के राज्‍य सूचना आयोग को की गयी द्वितीय अपील में यह निर्णय आया है । आयोग ने अपने ताजे निर्णय में मुरैना जिला न्‍यायालय को 15 दिवस के भीतर सूचनायें उपलब्‍ध कराने के सख्‍त आदेश के साथ ही जिला न्‍यायालय मुरैना के लोकसूचना अधिकारी एस.आर.अनगरे के खिलाफ 25 हजार रूपये की जुर्माना वसूलने की कार्यवाही प्रारंभ कर दी है ।

कैलारस के एडवोकेट लज्‍जाराम पाण्‍डेय द्वारा 4 जनवरी 2007 को सूचनायें चाहे जाने के लिये अपना आवेदन मुरैना जिला न्‍यायालय के लोकसूचना अधिकारी एस.आर.अनगरे के समक्ष प्रस्‍तुत किया, अनगरे द्वारा अपने लोकसूचना अधिकारी होने सम्‍बन्‍धी तथ्‍य से इंकार किया जिस पर आवेदक लज्‍जाराम द्वारा मुरैना के तत्‍कालीन जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश बी.डी.राठी के समक्ष अपना आवेदन प्रस्‍तुत किया, बी.डी. राठी उस समय जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश होने के साथ ही सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मध्‍यप्रदेश के माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा अपीलीय अधिकारी नियुक्‍त किये गये थे, इसी आदेश के तहत माननीय उच्‍च न्‍यायालय म.प्र. ने न्‍यायालय अधीक्षक एस.आर. अनगरे को मुरैना जिला न्‍यायालय का लोकसूचना अधिकारी नियुक्‍त किया था । लेकिन आवेदक लज्‍जाराम पाण्‍डेय द्वारा सूचना का अधिकार के तहत आवेदन प्रस्‍तुत किया तो दोनों ही लोगों ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत अपनी नियुक्तियों को जो कि मध्‍यप्रदेश उच्‍च न्‍यायालय द्वारा की गयी, दरकिनार करते हुये, अपीलीय अधिकारी बी.डी.राठी ने खुद को लोकसूचना अधिकारी के रूप में प्रकट कर आवेदक लज्‍जाराम पाण्‍डेय से उसका आवेदन ग्रहण कर लिया जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत कार्यवाही करने और पंजीबद्ध करने के बजाय नियमित न्‍यायालयीन कार्यवाही में लेकर आवेदन क्रमांक 53 पर पंजीकृत कर लिया, इसके अलावा एक तमाशा और भी किया आवेदक द्वारा अपने आवेदन के साथ अधिनियम के तहत आवेदन शुल्‍क के रूप में मध्‍यप्रदेश सरकार द्वारा निर्धारित 10 रूपये का नान जूडिशियल स्‍टाम्‍प भी संलग्‍न किया था इसके अतिरिक्‍त आवेदक से 10 रूपये अतिरिक्‍त और भी दोबारा आवेदन के साथ ही शुल्‍क के रूप में वसूल लिये जिसकी रसीद क्रमांक 94/1734 काट दी गयी ।

उपरोक्‍त बातों के अलावा और भी अधिक गंभीर बात थी कि आवेदक ने बी.डी.राठी पर नोटरी नियुक्ति के पैनल भेजे जाने में भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाते हुये, बी.डी.राठी द्वारा संपादित कार्यालयीन कार्यवाहीयों के दस्‍तावेज मांगे गये थे । और खुद के खिलाफ आरोपग्रस्‍त सूचना के अधिकार के आवेदन को न केवल स्‍वयं ही अनाधिकृत रूप से ग्रहण किया बल्कि उसकी सुनवाई भी कर डाली और निर्णय भी सुना डाला ।

जब आरोपी ही जज हो तो फैसला क्‍या होगा, वही हुआ आवेदक के आवेदन को अधिनियम में प्रावधानित कोई भी कार्यवाही किये बगैर सीधे ही 10 एवं 11 जनवरी (दो भिन्‍न आदेश) 2007 को खारिजी आदेश जारी कर आवेदक को सूचना दिये जाने से अधिनियम की धारा 8(1) (जे) की शक्ति की आड़ लेकर खारिज कर दिया ।

आवेदक लज्‍जाराम पाण्‍डेय के इस आवेदन के खारिज होने के बाद बड़ी विचित्र स्थिति उत्‍पन्‍न हो गयी । आवेदक के आवेदन को लोकसूचना अधिकारी के बजाय अपीलीय अधिकारी ने ग्रहण कर फैसला सुना दिया था, सो अब प्रश्‍न यह था कि आवेदक लज्‍जाराम पाण्‍डेय अधिनियम की धारा 19 के तहत अपनी पहली अपील कहॉं व किसे प्रस्‍तुत करे । ऐसी स्थिति में आवेदक ने अधिनियम की धारा 19 को पालन करते हुये अपनी पहली अपील मध्‍यप्रदेश उच्‍च न्‍यायालय के ग्‍वालियर व जबलपुर के अपीलीय अधिकारीयों तथा स्‍वयं पुन: बी.डी.राठी को अपीलीय अधिकारी के रूप में प्रस्‍तुत कर दी साथ ही एक प्रति मध्‍यप्रदेश के सूचना आयोग को भी भेज दी ।

विचित्र स्थिति निर्मित हो जाने से, उच्‍च न्‍यायालय ने बी.डी.राठी को नियमित स्‍थानान्‍तरण प्रक्रिया के तहत मुरैना से अन्‍यत्र स्‍थानान्‍तरित कर दिया । लेकिन तकनीकी विसंगति व त्रुटि प्रकरण में आ जाने से प्रथम अपील अनिराकृत ही रही । तब आवेदक ने मध्‍यप्रदेश के सूचना आयोग अपनी द्वितीय अपील प्रस्‍तुत की । इस द्वितीय अपील को म.प्र. के राज्‍य सूचना आयोग द्वारा क्रमांक ए-0195 पर पंजीकृत कर लिया और सुनवाई प्रारंभ की ।

लगभग एक साल बाद आयोग ने आवेदक लज्‍जाराम पाण्‍डेय की अपील का निराकरण करते हुये मुरैना जिला न्‍यायालय के खिलाफ अपना फैसला 10 अप्रेल 2008 को सुनाया और आवेदक को 15 दिन के भीतर सूचनायें उपलब्‍ध कराने के आदेश दिये । और मुरैना जिला न्‍यायालय के लोकसूचना अधिकारी के खिलाफ 25 हजार रूपये जुर्माना वसूलने की कार्यवाही अधिनियम की धारा 20(1) के तहत प्रारंभ कर दी ।

आयोग के फैसले के लगभग 50 दिन बाद मुरैना जिला न्‍यायालय ने आवेदक को सूचनायें उपलब्‍ध करवा दीं । लेकिन आवेदक द्वारा अपने आवेदन में मुरैना जिला न्‍यायालय द्वारा अधिनियम की धारा 4 के पालन किये जाने एवं इण्‍टरनेट पर जानकारीयां उपलब्‍ध कराये जाने सम्‍बन्‍धी सवाल पर हैरत अंगेज उत्‍तर देते हुये सारा दोष म.प्र.उच्‍च न्‍यायालय के ऊपर पटक दिया है और कहा है कि म.प्र. उच्‍च न्‍यायालय ने इस धारा का पालन करने के आदेश 24 मई 2008 को दिये जाना बताया गया है ।

आवेदक लज्‍जाराम पाण्‍डेय को सूचनायें प्राप्‍त हुयीं इस लम्‍बी लड़ाई से अवश्‍य ही अन्‍य लोगों को प्रेरणा प्राप्‍त होगी । उल्‍लेखनीय है कि लज्‍जाराम पाण्‍डेय गरीब अभिभाषक है, इसके बावजूद वह लड़ा और जीता ।  

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