शनिवार, 14 जून 2008

//अन्तर्राष्ट्रीय रामलीला मेला//सिंगापुर की ताड़का से सिहर उठे दर्शक

//अन्तर्राष्ट्रीय रामलीला मेला//

सिंगापुर की ताड़का से सिहर उठे दर्शक

ग्वालियर 13 जून 08 । तमाम जीवजन्तुओं का भक्षण कर और फिर मुँह से चीत्कारपूर्ण डरावनी आवाज निकाल कर जब ताड़का ने ऋषियों-मुनियों की तपस्या में विघ्न डाला तो सामने बैठक दर्शक भी एक बारगी सिहर उठे । यहां बात हो रही है सिंगापुर की भास्कर आर्ट अकादमी द्वारा आज संध्या मेला कलामंदिर रंगमंच पर कथकली व कठपुतली नृत्य के संयोजन के साथ प्रस्तुत रामलीला की । सिंगापुर के मंजे हुये कलाकारों ने ताड़का वध कथा प्रसंग को मृदंग आदि अन्य कर्णप्रिय वाद्ययंत्रों की धुन पर कभी चपलता से तो कभी सधे हुये अंदाज में प्रस्तुत किये । सिंगापुर के कलाकारों की भावभंगिमा कुछ ऐसी थी जिससे वे बिना कुछ बोले ही रामायण के बारे में सुधीय दर्शकों को बहुत कुछ समझा गये । यहां मेला कलांमंदिर रंगमंच पर चल रहे अन्तर्राष्ट्रीय रामलीला के पांचवे दिन सिंगापुर के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत रामलीला की सूत्रधार कठपुलियां थी ।  ताड़का वध की कथा का तीन दृश्यों में मंचन हुआ ।

       भास्कर आर्ट अकादमी सिंगापुर की रामलीला की कथावस्तु के केन्द्र बिन्दु में भगवान राम द्वारा वीरता की प्रथम परीक्षा के रूप में हत्यारी ताड़का का वध करना था । प्रथम दृश्य की कथा महाराजा दशरथ के दरबार में महर्षि विश्वामित्र के प्रवेश से शुरू हुई जो ताड़का के आंतक से दुखी थे। विश्वामित्र राजा दशरथ से दोनों पुत्र राम - लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा के लिये उनके साथ ले जाने का प्रस्ताव रखते हैं। दशरथ ने कहा कि हम स्वयं आपके साथ चलकर राक्षसी और उसके कुल का सर्वनाश कर देंगें । महामुनि विश्वामित्र महाराजा दशरथ के इन्कार से क्रोधित हुये। उसी वक्त महर्षि वशिष्ठ राजा दशरथ को समझाते हैं कि वे चिंतामुक्त होकर राम को भेज दें । ऐसा करने से आपके वंश का नाम रोशन होगा । समझाने पर महाराजा दशरथ राजकुमार राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेज देते हैं ।

       कथा के द्वितीय दृश्य में काले मुँह व बड़े-बड़े दांत वाली ताड़का डरावने अंदाज में प्रकट होती है । ताड़का खूबसूरत दिखने के लिये अपने बालों को संवारती है वो खेलने के लिये एक सहेली ढूंढती है न मिलने पर वो अपने आप गेंद के साथ खेलती है । वो भोजन की तलाश में जंगली जानवरों को पकड़ती है लेकिन वह उनसे तुष्ट नहीं होती । अचानक भोजन की खुशबू आती है और वो भोजन की तलाश में आतंक मचाती है। यह नजारा विश्वामित्र पेड़ों की ओट से देखते हैं और राम व लक्ष्मण को अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुण करते हैं।

       तीसरे और अंतिम दृश्य में राम विश्वामित्र से कहते हैं ''हे गुरूदेव मुझे ताड़का का तनिक भी भय नहीं है हम उसका वध किये बिना वापस नहीं जायेंगें '' राजकुमार ताड़का को चुनौती देते हैं । ताड़का चीख कर कहती है रूक जा हे मानव तुम क्या मुझसे लड़ोगे । जाओ तुम अपने घर जाओ मैं तुम्हारी जान बख्श देती हूँ । राम क्रोधित होकर कहते हैं चुप हो जाओ राक्षसी मैं तुमसे नहीं डरता हजार चूहे मिलकर भी एक शेर को नहीं जीत सकते । इसके साथ युध्द शुरू हो जाता है और राम की विजय होती है । ताड़का के वध से जंगल में शांति छा जाती है । महामुनि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों को आशीर्वाद देते हैं ।

       सिंगापुर की भास्कर आर्ट अकादमी के कुशल कलाकारों ने ताड़का वध कथा का मंचन के पी भास्कर के निर्देशन में किया । इस कथा में दशरथ की भूमिका श्री गणेश ने, वशिष्ठ मुनि की श्री प्रसाद ने, महर्षि विश्वामित्र की श्री सदानंद ने , राम की श्री संतोष ने और ताड़का की भूमिका सुश्री बिजू ने निभाई । संगीत निर्देशन गणेश का था । ए.डेल व आई जोन कथा के सहकलाकार थे । कथा के तकनीकी निर्देशक श्री चेनमेंग और ग्रुप लीडर श्री सी के पद्मनाभन थे ।

 

जावा की रामलीला आज

जावा के जनमानस में भी हजारों वर्षों से रामायण रची बसी है । यहां के जोग्जा टूरिज्म बोर्ड के कलाकार    14 जून को सांयकाल 7.30 बजे मेला कलामंदिर रंगमंच पर रामकथा का मंचन करेंगें ।

 

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