शनिवार, 3 मई 2008

हॉकी को क्रिकेट के सहारे की जरूरत

हॉकी  को क्रिकेट के सहारे की जरूरत

मनीष कुमार जोशी

manishkumarjoshi1123@rediffmail.com

भारतीय हॉकी फेडरेषन का तख्ता पलट हो गया है। भारतीय हॉकी महासंघ पर करीब डेढ दषक से काबिज श्री  के.पी.एस. गिल को हटा दिया गया है और भारतीय हॉकी महासंघ के पुनर्गठन की  कवायद हो रही है। हॉकी की दुनिया में इस कदम को सुखद बताया जा रहा है और उम्मीद की जा रही है कि हॉकी अब पुन: पटरी पर आयेगी। निष्चित रूप से जब हॉकी का स्तर नैतिक और तकनीकी तौर पर बिलकुल पैंदे पर चला गया हो तो इस प्रकार का कदम उठाया जाना लाजिमी हो गया है। परन्तु यह भी बहुत जरूरी है कि इस तख्ता पलट का सकारात्मक परिणाम निकले। यह परिवर्तन महासंघ की सत्ता हथियाने का जरिया बने। हॉकी का स्तर 1980 के बाद से लगातार गिर रहा है जबकि गिल का कार्यकाल तो 14 साल ही पूराना है। अत: नई सोच के साथ आगे बढ़ने की आवष्यकता है।

 

       भारतीय हॉकी के पास स्वर्णिम विरासत है। जिस  संगठन के पास सुनहरी विरासत हो तो ऐसे कोई कारण नहीं कि ऐसा संगठन फिर अपने पैरा पर उठ खड़ा हो सके। 1980 के बाद हॉकी का स्तर लगातार गिर रहा है और इस दौरान स्तर सुधारने के सभी प्रकार के प्रयास किये गये परन्तु कोई भी प्रयास सिेर नहीं चढ़ा। स्वर्णिम विरासत वाले इस संगठन को बेहतर प्रबंधन की आवष्यकता है। इसके लिए बदली हुई सोच के साथ काम करना होगा। इसके लिए दूसरे खेल संगठन से मदद लेनी पड़े तो इसे बुरा नहीं समझा जाना चाहिए। क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड आफ इण्डिया  ने पूर्व में भी प्रस्ताव किया था कि वो अन्य खेलो की मदद करने मंषा रखता है। हॉकी को यदि बीसीसआई से जोड़ दिया जाय तो हॉकी में बड़ा परिवर्तन हो सकता है। बीसीसीआई का नाम जुड़ने मात्र से कई प्रायोजक आगे जायेंगे। क्रिकेट से मदद मांगने को  गलत नहीं समझा जाना चाहिए।  क्रिकेट समृध्द है और क्रिकेट द्वारा नाम मात्र का पैसा खर्च किया हुआ हॉकी का कायापलट कर सकता है। हॉकी में एक प्रतियोगिता आयोजित करने में जितना पैसा खर्च होता है उतना पैसा क्रिकेट में एक खिलाड़ी साल भर मे कमाता है। हॉकी को केवल पैसे के लिए ही क्रिकेट से नहीं जुड़ना चाहिए बल्कि बेहतर प्रबंधन व्यवस्था के लिए भी क्रिकेट से हॉकी से जुड़ना चाहिए। क्रिकेट के दुनिया के पेषेवर प्रबंधक है जो हॉकी के सुधार के लिए बेहतर व्यवस्थाऐ कर सकते है। क्रिकेट को इसके लिए अपने प्रबंधन और पैसे का बहुत छोटा हिस्सा खर्च करना पड़ेग़ा। इस काम के लिए बीसीसीआई को भी कोई आपत्ति नही होनी चाहिए। बीसीसीआई के पदाधिकारी पूर्व में भी हॉकी की मदद का प्रस्ताव कर चुके है।

       हॉकी में सुधार के लिए नई सोच के साथ काम करना जरूरी हो गया है। क्रिकेट से मदद लेने को नीचा नहीं समझा जाना चाहिए। हॉकी के महासंघ और उसके पूर्व खिलाड़ियों के सम्मान को ठेस पहुंचाये बिना क्रिकेट से गठजोड़ किया जा सकता है। आज क्रिकेट के खिलाड़ी जहां लग्जरी हॉटलो में रूकते है वहीं हॉकी के खिलाड़ियों को साधारण हॉटल भी नसीब नहीं होती है। जिला एवं राज्य स्तर की प्रतियोगिताओ में खिलाड़ियों को अपनी जेब से किराया देकर जाना पड़ता है। इस स्थिति में सुधार की आवष्यकता है। यह सुधार क्रिकेट से गठजोड़ से हो सकता है। क्रिकेट से जुड़ने के बाद हॉकी में दर्षक स्टेडियम की ओर लौट सकते है और हॉकी का नया जीवन मिल सकता है।

 

      करीब ढाई दषक से हॉकी में सुधार का प्रयास किया जा रहा है। इस दौरान हर प्रकार का प्रयास किया गया। अध्यक्ष, चयनकर्ता, खिलाड़ी और कोच सभी को बदला गया। नई नीतियां बनाई गई परन्तु सभी कुछ न केवल असफल रहा  बल्कि हॉकी निम्न स्तर पर पहुंच गई।  अब एक प्रयास क्रिकैट से गठजोड़ का होना चाहिए। यह नई सोच हॉकी में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकती है। अक्षय तृतीया नये गठजोड़ो का उत्सव हे और इस अक्षय तृतीया पर हॉकी और क्रिकेट का गठजोड़ किया जाकर नयी श्ुरूआत की जाना चाहिए।   

manishkumarjoshi1123@rediffmail.com

मनीष कुमार जोशी, सीताराम गेट के सामने, बीकानेर 9413769053

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