सोमवार, 24 अगस्त 2009

स्वाइन फ्लू की रोकथाम एवं उपचार हेतु समुचित कार्यवाही करने के निर्देश

स्वाइन फ्लू की रोकथाम एवं उपचार हेतु समुचित कार्यवाही करने के निर्देश

इलाज से बचाव अच्छा होता है - डॉ. अर्चना शिंगवेकर, मरीजों के लिए 30 पलंग आरक्षित 

ग्वालियर 19 अगस्त 09/ मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अर्चना शिंगवेकर ने जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों को पत्र लिखकर स्वाइन फलू बीमारी के रोकधाम के लिये आवश्यक दिशा निर्देश दिये है ।

      देश के विभिन्न प्रदेशों एवं मध्यप्रदेश के सीमावर्ती राज्यों में स्वाईन फलू के प्रकरणों प्रकाश में आयें है, जिनमें वृद्वि दृष्टिगत हो रही है। स्वाईन फलू स्वाईन इन्फलूएंजा (एच1एन1 )नामक विषाणु के मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण के कारण फैलता है। उपचार में विलम्ब की स्थिति में यह एक धातक एवं संक्रामक रोग है। स्वस्थ्य युवाइस वायरस के होस्ट फैक्टर समूह में आते हैं। स्वाईन फ्लू शिशु बच्चों, एवं वृद्व तथा पूर्व से अन्य बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के लिये घातक हो सकता है।

       विभिन्न स्थानों पर प्रतिवेदित हुये स्वाईन फ्लू की स्थिति को देखते हुये यह आवश्यक है कि इस बीमारी की रोकथाम हेतु प्रतिरोधात्मक कार्यवाही की जाये। वहीं किसी भी मरीज में स्वाईन फ्लू के संभावित रोगियों की स्थिति में त्वरित उपचार की कार्यवाही की जाये। ऐसे मरीजों पर सतत निगरानी रखना तथा उन्हें अलग रखने हेतु उचित सलाह तथा समझाइश देना भी आवश्यक है।

         स्वाईन फ्लू पीडित के प्रमुख लक्षणों में बुखार, गले में खराबी, सिर दर्द, शरीर में दर्द थकान, अपर रेस्पायरेटरी सिमटम्स (खांसी, गले में खराश ) एवं उल्टी एवं दस्त आदि हो सकते हैं परन्तु इस लक्षण केसभी मरीज स्वाईन फ्लू से पीड़ित नहीं होते।

         उक्त लक्षणों से पीडित मरीज संभावित स्वाईन फ्लू का मरीज हो सकता है यदि (क) वह विगत 07 दिवस से स्वाईन फ्लू के कन्फर्म पेशेन्ट के सम्पर्क में आया हो, (ब) जिन्होने ऐसे स्थान की यात्रा की है जहॉ स्वाईन फ्लू के संख्याधिक मरीज हो (स) ऐसे स्थान पर निवास करते हो जहॉ पर कि स्वाईन फ्लू के कन्फर्म पेशेन्ट हो ।

         बीमारी गम्भीर होने पर साईनोसाईटिस, ऑयटाईटिस मीडिया, क्रुप निमोनिया, ब्रेकोलाईटिस, अस्थमा, मायोकार्डियेट्स, पैरीकॉर्डियेटस, मायोसाईटिस, रेपिडो मायोलाईसिस, इंसेफेलाईटिस, सीजर्स, टॉक्सशॉक, सिन्ड्रोमिक एवं सेकेन्ड्री बेक्टेरियल निमोनिया हो सकता है।

           ऐसे व्यक्ति या मरीज जो कि संभावित स्वाईन फ्लू पीडित की परिधि में है, उनके रक्त एवं गले या नाक के कफ की विशेष जॉच कराया जाती है। इसका नमूना किसी प्रशिक्षित फिजिशियन या माईक्रोबायोलॉजिस्ट के द्वारा लिया जाना चाहिये। इसके लिये नेजोफेरिलय स्वाव, रक्त आर.टी. पी.सी.आर. एंटीबॉडीज एंव वायरस आईसोलेशन टेस्ट एनएच1 किट द्वारा किया जाता है। ग्वालियर जिले में जांच हेतू मेडीकल कॉलेज के पैथॉलोजी विभाग को अधिकृत किया गया है । अत: संभावित मरीजों को जॉच हेतु पैथॉलोजी विभाग जी.आर.मेडीकल कॉलेज भेजा जाये ।

             डॉ. शिंगवेकर ने बताया कि चिकित्सालय में मरीज के आने पर अलगाव की सुविधायें उपलब्ध रखी जाये। मरीज का थ्री लेयर मास्क/एन-95 मास्क पहनाया जाये तथा मरीज को एम्बुलैंस द्वारा रैफर किया जाता है कि मरीज के केबिन में बैठे अन्य व्यक्तियों को भी थ्री लेयर मास्क पहनकर ही बैठने की समझाइश दी जाये। मरीज को चिकित्सालय छोड़ने के उपरान्त एम्बुलेंस सोडियम हाईपोक्लोराईट/क्वाटेनरी एमोनियम कम्पाउण्ड से विषाणु रहित किया जाये।

             मरीज को भर्ती करने की स्थिति में अलगाव सुविधा युक्त कक्ष मे रखा जाये तथा मरीज के साथ ही उपचार करने वाले चिकित्सक एंव पैरामेडीकल स्टाफ भी फुल गाउन के साथ थ्रीलेयर मास्क का उपयोग करें। मरीज के सम्पर्क में आने से पूर्व एवं पश्चात हाथों की पूर्ण सफाई साबुन से की जाये।

संभावित मरीज की स्थिति में जब तक कि बीमारी के अन्य लक्षण प्रकट न हो सक्रमणरोधी सावधानियॉ जारी रखी जायें एवं वयस्क मरीजों में लक्षण प्रकट होने के 07 दिवस तथा बच्चों में 14 दिवस यह अवधि रखी जायें। मरीज के घर लौटते समय मरीज तथा परिजनों को की जानकारी देते हुये उन्हें सावधानीपूर्वक अपनाने की सलाह दी जाये। मरीज के उपचार के लिये उपयोग में आने वाले समस्त अपशिष्ट को निर्धारित मापदण्डों के अधीन नष्ट किया जाये।

            उन्होने बताया कि जिले में स्वाइन फ्लू के मरीजों के उपचार के लिये जयारोग्य चिकित्सालय समूह ग्वालियर के मेडीसिन वार्ड में 18 एवं शिशु रोग विभाग में 12 पंलग आरक्षित किये गये हैं वहीं जिला चिकित्सालय ग्वालियर में आईसोलेशन कक्ष भी बनाया गया है, जिसमें उपचार की कार्यवाही की जायेगी।

            स्वाईन फ्लू को नियंत्रण में करने की दृष्टि से यह आवश्यक है कि जनसमुदाय को बीमारी से बचाव की पूर्ण स्वास्थ्य शिक्षा दी जाये। चिकित्सालय में आने वाले मरीज या जनसमुदाय के साथ- साथ नागरिकों को समझाइश दी जाये कि यथासंभव सक्रमित व्यक्तियों से सम्पर्क व्यक्तियों से सम्पर्क न बनाया जाये। ऐसे स्थान जहॉ पर कि स्वाईन फ्लू के मरीज पाये गये है, उस क्षेत्र से कोई व्यक्ति आता है तो 07 दिवस तक वे स्वयं के स्वास्थ्य की निगरानी रखी जायें एवं यदि उसमें फ्लू के लक्षण का उद्भव होता है तो तत्काल निकट के शासकीय चिकित्सालय मे सम्पर्क करने के साथसाथ घर पर ही स्वयं को अलग करें, जिससे कि अन्य व्यक्ति संक्रमित न हो सके।

             बीमारी से बचाव के लिये साबुन से हाथ धाने के उपरान्त ही नाम मुंह एव आखों से हाथ लगाये। जुकाम, खॉसी, बुखार वाले रोगियों को अपना मुंह कपडे, रूमाल या मास्क से कव्हर कर रखना चाहिये जिससे कि अन्य व्यक्ति संक्रमित न हो। ऐसा त्यक्ति जो कि जुकाम श्श्या  सर्दी से पीडित हो उससे कम से कम एक मीटर की दूरी बनाये रखे। जो व्यक्ति स्वाईन फ्लू के मरीज के सम्पर्क में आये, हो उन्हें धर में स्वयं को अलग कर लेना चाहिये जिससे कि अन्य व्यक्ति संक्रमित न हो।

               मरीज के परिजनों को भी संक्रमण से बचाव के पूर्ण तरीको से अवगत कराया जावें, जनसमुदाय को स्वास्थ्य शिक्षा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं,पर्यवेक्षक एवं चिकित्सकों के माध्यम से दी जाये, एवं संक्रमण रोकने के लिये परस्पर हाथ मिलाने गले मिलने से भी परहेज रखने का परामर्श दिया जाये। संक्रमण से बचाव के लिये सामान्यत: भीड़ भरे क्षेत्र में जाने से भी बचना चाहिये, जिससे कि संक्रमण की संभावना न हो।

              निर्देशित किया जाता है कि चिकित्सालय में आने वाले मरीजों के उपचार की त्वरित कार्यवाही की जाये। स्वाइन फ्लू का शीघ्र एवं समय पर उपचार इस बीमारी की रोकथाम में सहायक होगा वहीं जनसमुदाय को पर्याप्त स्वास्थ्य शिक्षा दिया जाने से भी रोग नियंत्रण में सहायता मिलेगी। स्वाइन फ्लू के उपचार एवं रोकथाम के लिये गतदिवस आयोजित खण्ड चिकित्साधिकारियों/प्रभारी चिकित्साधिकारियों की बैठक में विस्तार से  चर्चा की जाकर दिशा, निर्देश दिये जा चुके है।

 

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