व्यंग्य: होरी की वेदना ..;; रंग के बादर फट गये
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
होरी की हुरियारी में छायी मस्ती चारों ओर ।
छायी मस्ती चारों ओर मगर कछु दुबके फिरते ।।
लिये हाथ में रंग सफेदा, भरें अबीर, गुलाल चहकते ।
भरें अबीर गुलाल चहकते, मगर कछु बिल में घुसते ।।
बिलवाले दिलवाले से होरी वारे कह रहे ।
काहे बिल में दिल घुसा, सब चिन्ता कर रहे ।।
कब तक बिल में घुसे पड़े दिल की खैर मनाओगे ।
बिन धड़कन के दिल बिल की कब तक आह छुपाओगे ।।
कोई चोर डकैत आवेगा बिल खोद खाद ले जायेगा ।
दिल चोरी हो या लुट जावे कोई रोज रात को आयेगा ।।
कब तक जाग जाग ऑंखों में पहरेदारी कर पाओगे ।
कब तक चोरी चोरी आ आ कर नजर निगाही कर पाओगे ।।
इक सलाह हुरियारे दे रहे बात बता कर खास ।
छिप्पन और छिपावन कर दिल बचने की ना आस ।।
गर दिलवाले बिल में घुसकर दिल जो बचाते ।
तो सब दिलवाले अब तक बिल में घुस जाते ।।
इक मिला था लवली स्वीट था, दिल का बस ये रोना है ।
अब चला गया तो चला गया, तेरे छिपने सा का होना है ।।
कौन ले गया लेने वाला, ले गया जो ले गया ।
ले गया कैसे गया, अब गया चला तो चला गया ।।
क्या हो गया चोरी दिल ये, या हो गयी लूट ।
बिल में दुबकी सोच रही, मेरी किस्मत गयी है फूट ।।
किस्मत गयी है फूट, सबको क्या मुख दिखलाऊं ।
बिन दिल के अब इस बिल से कैसे बाहर जाऊं ।।
बाहर कुत्ते हैं खड़े, करते इंतजार मनुहार ।
पूंछ हिला कर कह रहे, आओ जी सरकार ।।
आओ जी सरकार, हमारे यार, डिनर तैयार रखा है ।
मुर्गे की है स्वीट बनाई नहीं जो अब तक चखा है ।।
प्लीज जागिये, उठ बैठिये, मैडम अक्कलमंद ।
सारे कुत्ते आये हैं ले लेकर अपने बिस्तर बंद ।।
लेकर बिस्तर बंद, द्वार पर वे खड़े भुंकियावैं ।
देसी और विलाइती सारे अदायें वे दिखलावैं ।।
सारे कुत्ते कर रहे पिछले दो हफ्ता से उपवास ।
मैडम संग इक डिनर करिहे पूरी सबकी आस ।।
होगी पूरी सबकी आस, सोच लाइन कुत्तन की लग गई ।
बिन दिलवाली मैडम की, भौंका भाकी में निंदिया खुल गई ।।
इक अंगड़ाई मार के, फेंक नजर के तीर ।
सब कुत्तन को देख के, मैडम भई गंभीर ।।
मैडम भई गंभीर, और फिर दौड़ के बाहर आई ।
मैं इक कुत्ते की थी प्यारी ये लाइन कहॉं से आयी ।।
है मेरा अलबेला कहॉं, झबरू काला रंग ।
दिल मेरा जो ले गया, कित गया भुजंग ।।
मैं कुत्ते की, कुत्ता मेरा, पिया वो परम सुहावन ।
डिनर करूं और रूप रचूं बार बार फिर देखूं दरपन ।।
मेरा झबरू मेरा गबरू नहीं लाइन में आता नजर ।
कित्थे है वो मेरा डमरू मैं कराऊंगी उसे डिनर ।।
तभी बीच कुत्तों में से था झबरू दौड़ा आया ।
मैं भी इस लैन बिच्च में अपनी संगत लाया ।।
ओ हसीना नाजनीना जरा याद करो वो बात बड़ी मशहूर ।
कुत्ते सदा झुण्ड में रहते मिल बांट कर खाते हैं भरपूर ।।
बीच बीच में भौं भौं कूं कूं, उवाय उवाय भ्वयाय ।
जम कर सेवा पूंछ हिलाना, बिना बखत चिल्लाय ।।
पर अपनी अपनी किस्मत होती क्या करिये इसको ठीक ।
जैसी लीला रची विधि ब्रह्मा ने वही होवेगा याद रहे ये सीख ।।
याद ये रखना सीख, नहीं झुण्ड शेरों के होते ।
इक अकेला कूद जाये जब सब पानी भरते ।।
नहीं डिनर ना सोवा सावी ना सस्ती मस्ती करो इन कुत्तन के संग ।
शेर कहत बुरा न मानो होली है, आप पर अब आपका फेंक दिया है रंग ।।