कुष्ठ रोग आश्रम में एक दिन - कुसुम ठाकुर
मेरा मन 5 फरवरी से अबतक विचलित है । कुछ भी करने का मन नहीं हो रहा है , न खाने में मन लग रहा है, न ही लिखने का मन हो रहा है और न ही किसी और काम में । कल मेरे एक दोस्त ने यह सुन मुझसे बातें कर मेरा मन बहलाने की कोशिश करता रहा, पर आज सभी अपने परिवार और दोस्तों में व्यस्त होंगे ।
5 फरवरी को मेरे पति का जन्मदिन रहता है और मेरी कोशिश होती है मैं उस रोज़ कुछ मंदों के बीच बिताऊं । जमशेदपुर के ऐसे ही एक बस्ती की तलाश कर मैं इस बार 5 फरवरी को गई थी । यहाँ छोटे छोटे कई बस्तियां हैं जिनमें करीब 3000 - 4000 कुष्ठ रोगी रहते हैं । बाहर से देखने पर लगा कि यहाँ सरकार इनका काफी ख्याल रखती है । साफ़ सुथरी बस्ती और घर छोटे मगर रहने लायक थे। मुझे देख अच्छा लगा क्यों कि लिखा हुआ था भवन झारखण्ड सरकार द्वारा निर्मित ।
मैं अपने डॉक्टरों, कुछ मित्र और सहयोगियों के साथ जब वहाँ पहुँची उस समय तक वहाँ खाना बनना शुरू हो चुका था । जिन लोगों को उस कार्य का भार दी थी वे वहाँ मौजूद थे और खाना बन रहा था। वहाँ पहुँचते के साथ मरीज़ भी आ गए और पंक्ति में खड़े हो गए । एक एक की जाँच डॉक्टरों ने शुरू की और दवाई वितरण भी वहीँ एक तरफ होने लगा ।
मेरी आदत है जब भी मेडिकल कैंप में जाती हूँ डॉक्टर के बगल में बैठ डॉक्टर और मरीज़ की बातों को ध्यान से सुनती हूँ । एक एक मरीज़ को गौर से देखती और उनकी बातें सुन रही थी । बहुत कम लोग उस कैंप में थे जिन्हें कुष्ठ रोग नहीं था और किसी और रोग से ग्रसित थे ।
एक बच्चा जो कि मात्र 5 साल का था उसकी बारी आई तो उसकी माँ भी साथ में थी। उसने एक डॉक्टर की पर्ची दिखाई और कहने लगी " डॉक्टर साहब इस दवाई से मेरे बेटे को कोई फायदा नहीं हो रहा है "। डॉक्टर साहब ने उससे पर्ची लेकर देखा और कहा डॉक्टर ने दबाई तो बिल्कुल ठीक लिखा है यही दबाई चलेगी । पाँच साल के बच्चे को एक तो कुष्ठ रोग उसपर दम्मा । खैर उसे हमने 6 महीने की दबाई दी और शायद आगे भी उसकी मदद कर सकूँ ।
तरह तरह के रोगियों को अलग अलग परिस्थिति में देख बहुत से प्रश्न मेरे मन में उठने लगे । उसी समय एक छोटी बच्ची आई । उसे सर्दी बुखार था ऐसा उसकी माँ ने कहा । डॉक्टर साहब ने उसकी गाल के तरफ दिखाकर कहा मुझे यहाँ कुछ fungus लग रहा है । उसकी माँ से पूछा " डॉक्टर ने कभी इसकी जांच किया है ? " उसकी माँ ने कहा नहीं । यह सुन डॉक्टर ने पूछा " यहाँ कभी कोई जांच के लिए आता है?" तब भी उस औरत ने कहा नहीं । यह सुन डॉक्टर साहब के साथ मुझे भी बहुत आश्चर्य हुआ।
बच्ची के जाने के बाद एक वृद्ध मरीज़ आया । उसके दोनों हाथों में एक भी उंगली नहीं थे । डॉक्टर साहब ने जांच के बाद दवाई लिखी और वहाँ ही दम्मे से ग्रसित उस व्यक्ति को ढेर सारे inhaler दे दवाई लेने को कहा । वह जैसे ही आगे बढ़ा अचानक डॉक्टर साहब को ध्यान आया और उन्होंने अपने सहायक को बुला बोला पहले उससे पूछो क्या उसके परिवार में कोई है जो उसे inhale करवा सके । मेरे मन में अनेकों प्रश्न बार बार उठ रहे थे मैं वहाँ से उठकर पंक्ति में लोगों को वस्त्र बांटने चली गयी । ध्येय यही था कि उनसे कुछ बात चित करूँ ।
कपड़े बाँटते हुए उनसे मैं तरह तरह के प्रश्न पूछती और वे जवाब दे रहे थे । मैं वहाँ के मुखिया को इशारे से बुलाई और सोची कुछ जानकारी इनसे भी ले लूँ । पर उससे जो जानकारी मिली उससे अबतक मैं आहत हूँ । मैं पूछी यह घर तो सरकार ने बनवाया है तो यहाँ इस रोग की जाँच ख़ास कर बच्चों में यह बीमारी न फैले, या उसकी जांच के लिए सरकार की ओर से कोई सुविधा मिलती है या नहीं ? उस मुखिया ने जो कहा वह इस प्रकार है : " दीदी यह रघुवर दास जी की बस्ती है और ये लोग आते ही हैं " मुझे यह सुन बहुत ख़ुशी हुई और मैं तुरंत बोली " यह तो अच्छा है चलो वे एक अच्छा कम कर रहे हैं , पर उन्हें क्यों नहीं बताते यहाँ बच्चों या जिन्हें यह बीमारी नहीं है उसकी जाँच करने कोई नहीं आता । " वह हँसने लगा ...बोला " दीदी वे हमारा हाल पूछने नहीं आते , वे तो सिर्फ वोट के समय आते है और हाथ हिला हिला कर पूछते है सब ठीक ठाक है न और उनके चमचे कहते हैं इस बार इसपर मुहर लगाना । कभी कभी कुछ खाना हमें मिल जाता है ।
एक दो दिनों में मैं यहाँ के कलक्टर से मिलकर उन्हें स्थिति कि जानकारी दूंगी । शायद वे उस बस्ती में डॉक्टरों को या उस विभाग के लोगों को भेजें ताकि उन छोटे छोटे बच्चों की जाँच समय पर हो पाए और रोग के फ़ैलने से पहले इलाज हो पाए ।
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