पर्यावरण संरक्षण में मीडिया की भूमिका
राकेश शर्मा निशीथ*
अब से लगभग 5 वर्ष पूर्व तक पर्यावरण संरक्षण के समय आम व्यक्ति के मस्तिष्क पर वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण और भू-क्षरण जैसी पर्यावरण संबंधी समस्याएं ही छायी रहती थी । परन्तु आज इन विभिन्न समस्याओं ने एक व्यापक रूप धारण कर लिया है । यह है ग्लोबल वार्मिंग अर्थात गरमाती पृथ्वी । आज पर्यावरण की सारी समस्याएं इसी के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती हैं।
पर्यावरण क्या है ?
पर्यावरण के अंतर्गत जीव-जन्तु, वनस्पति, वायु, जल, प्रकाश, ताप, मिट्टी, नदी, पहाड़ आदि सभी अजैविक तथा जैविक घटकों का समावेश है । इसमें वह सब कुछ समाविष्ट है, जो पृथ्वी पर अदृश्य एवं दृश्य रूप में विद्यमान है । पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में पर्यावरण को पारिभाषित करते हुए कहा गया है - पर्यावरण में एक ओर पानी, वायु तथा भूमि और उनके मध्य अंत:संबंध विद्यमान है, और दूसरी ओर मानवीय प्राणी, अन्य जीवित प्राणी, पौधे, सूक्ष्म जीवाणु एवं सम्पत्ति सम्मिलित हैं । भारत में पर्यावरण के संरक्षण के प्रति जागरुकता 321 और 300 ईसा पूर्व के मध्य से देखी जा सकती है । पर्यावरण संरक्षण के लिए कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में वर्णन किया था।
ग्लोबल वार्मिंग
वैज्ञानिकों के अनुसार वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसें लौटने वाली अतिरिक्त उष्मा को सोख रही है, जिससे धरती की सतह का तापमान बढ रहा है । ऐसी आशंका है कि 21वीं सदी के बीतते-बीतते पृथ्वी के औसत तापमान में 1.1 से 6.4 डिग्री सेंटीग्रेड की बढोतरी हो जाएगी । भारत में बंगाल की खाड़ी के आसपास यह वृध्दि 2 डिग्री तक होगी, जबकि हिमालयी क्षेत्रों में पारा 4 डिग्री तक चढ जाएगा । सूखा, अतिवृष्टि, चक्रवात और समुद्री हलचलों को वैज्ञानिक तापमान वृध्दि का नतीजा बताते हैं ।
वैज्ञानिकों के अनुसार तापमान वृध्दि के कारण समुद्र स्तर में जो वृध्दि होगी वह दुनिया के तटीय इलाकों में कहर बरपा देगी । एशिया महाद्वीप इसलिए सर्वाधिक प्रभावित होगा कि इस महाद्वीप में तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है। चीन, भारत, बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया और जापान में सर्वाधिक जन-धन की हानि होगी। तटीय क्षेत्रों सहित विभिन्न क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार समुद्र-स्तर में एक मीटर वृध्दि से भारत के 5764 वर्ग किलोमीटर तटीय क्षेत्र डूबने की संभावना है,जिससे अनुमानत: 7.1 मिलियन लोग विस्थापित होंगे ।
ग्लोबल वार्मिंग के बढते ख़तरे से निपटने के लिए बैंकॉक में 120 देशों की बैठक हुई । इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार अगर दुनिया की कुल आमदनी का तीन प्रतिशत हिस्सा भी ग्लोबल वार्मिंग से निपटने पर खर्च किया जाए तो 2030 तक तापमान वृध्दि को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सकता है।
मीडिया की भूमिका
इस धरती पर अब तक न जाने कितनी ही सभ्यताएं उदित और नष्ट हुई,इसका ब्यौरा भी अभी तक मनुष्य नहीं ढूंढ पाया है। हम उन सभ्यताओं को ढूंढते-ढूंढते स्वयं भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रबंधन, पर्यावरणीय जागरुकता, पर्यावरण शिक्षा में व्यापक चेतना लाने में मीडिया भी उल्लेखनीय भूमिका निभा सकता है । पर्यावरणीय नीतियों के निर्धारण और नियोजन में जनसामान्य की सहभागिता तभी प्रभावी हो सकती है जब उन्हें पर्यावरणीय मुद्दों की पर्याप्त सूचना एवं जानकारी समय-समय पर दी जाए । मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि वे वैश्विक, क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर सम्पन्न होने वाली पर्यावरणीय घटनाओं, समाचारों और सूचनाओं को जनसामान्य तक इस ढंग से पहुंचाए कि वे तथ्यों का सही विश्लेषण कर अपनी राय बना सकें । मीडिया का लक्ष्य पर्यावरणीय समस्याओं के निराकरण के उद्देश्य से व्यक्ति को समझ, विवेक, व्यावहारिक-ज्ञान, कौशल प्रदान करना होना चाहिए । व्यक्ति, समाज, देश एवं राष्ट्र में पर्यावरण के प्रति न केवल जागरुकता, चेतना एवं रुचि जागृत करना होना चाहिए बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित करना भी होना चाहिए ।
प्रिंट मीडिया की भूमिका
प्रिंट मीडिया (मुद्रित माध्यम) पर्यावरणीय जनसंचार का एक सशक्त और व्यापक माध्यम है । भारत में 19 प्रमुख भाषाओं सहित 100 से अधिक भाषाओं और बोलियों में समाचारपत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं । यह माध्यम लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप सर्वाधिक जीवन्त माध्यम है। पर्यावरण संरक्षण में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती हैं बशर्ते कि मीडियाकर्मी उद्देश्यपरक दृष्टिकोण अपनाएं । इस माध्यम के द्वारा पर्यावरणीय सूचना प्रसारण, पर्यावरण संरक्षण हेतु अनुकूल वातावरण का निर्माण, पर्यावरणीय समाचारों, कार्यक्रमों, लेखों, फीचरों, साक्षात्कारों का प्रकाशन जनमत निर्माण करने में सहायक सिध्द होती हैं। पोस्टरों और चित्रों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण, हमारा पर्यावरण, पर्यावरण बचाओ, पर्यावरण के प्रति प्रेम, पेड़ लगाओ, पर्यावरण और प्रदूषण आदि से संबंधित संक्षिप्त किन्तु प्रभावशाली संदेशों को जनसामान्य के मध्य सम्प्रेषित किया जा सकता है ।
इलेक्ट्रानिक मीडिया की भूमिका
इलेक्ट्रानिक मीडिया के अंतर्गत रेडियो, टेलीविजन, फिल्म, मल्टी मीडिया और ऑडियो-वीडियो, स्लाइड, निओन साइन आते हैं ।
रेडियो के माध्यम से शिक्षा, सूचना और मनोरंजन सम्प्रेषित होता है। इस माध्यम से सामान्य जन तक पर्यावरण, पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण, पर्यावरण शिक्षा, वन्य जीव सुरक्षा एवं संरक्षण, पेड़ लगाओ अभियान कार्यक्रमों से संबंधित जानकारी आसानी से भेजी जा सकती हैं । भारत में मुम्बई में रेडियो क्लब द्वारा जून, 1923 में प्रथम बार प्रसारण हुआ था । आकाशवाणी से विविध प्रकार के प्रसारण किए जाते हैं, जिनमें सूचना, शिक्षा, मनोरंजन एवं व्यापारिक विज्ञापन आदि मुख्य है । हरित क्रांति को आगे बढाने में रेडियो प्रसारणों ने महत्वूर्ण भूमिका निभाई थी । पर्यावरण संरक्षण संबंधी राष्ट्रीय नीतियों एवं कार्यक्रमों, प्रदूषण निवारण के उपायों, कृषि और औद्योगिक विकास, सतत विकास और पर्यावरणीय जागरुकता एवं शिक्षा कार्य आदि से संबंधित संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने में रेडियो की अपनी सशक्त भूमिका है ।
दूरदर्शन का भारत में 15 सितम्बर, 1959 को शैक्षणिक उद्देश्यों के साथ आरंभ हुआ । दूरदर्शन जनता के बहुत करीब है । पर्यावरणीय समस्याओं को कम करने में इसकी भूमिका काफी हद तक सहायक हो सकती है । कचरे एवं अपशिष्ट का प्रबंधन, प्रदूषण नियंत्रण, सामाजिक वानिकी, वन्य जीवन संरक्षण, कृषि विकास, जल और भूमि के संरक्षण तथा पर्यावरण संरक्षण के कानूनों का दूरदर्शन एवं अन्य टेलीविजन चैनलों के माध्यम से प्रसारण द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है ।
ग्लोबल वार्मिंग आज एक चुनौती के रूप में मनुष्य के सम्मुख खड़ी है। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए मीडिया आम जन में जागरुता पैदा करने का प्रयास कर रहा है । मीडिया ने हिन्दुओं के एक पवित्र धाम श्रीबद्रीनाथ जी के मंदिर स्थल का कवरेज टीवी चैनल पर दिखा कर तथा समाचारपत्रों में रिपोर्ट प्रकाशित करके इसी दिशा में एक पहल की है । इसमें दिखाया और बताया गया है कि यदि पर्यावरण के प्रति हम समय रहते नहीं चेते तो हो सकता है कि श्रीबद्रीनाथ धाम अपना अस्तित्व ही खो दे ।
फिल्म जगत की भूमिका फिल्म उद्योगों का इतिहास 100 वर्ष पुराना है। फिल्में जनसामान्य को शिक्षा, सूचना और मनोरंजन प्रदान करने का एक अच्छा माध्यम है । फिल्म और चलचित्र के माध्यम से पर्यावरण, पर्यावरण प्रदूषण, हमारे पर्यावरण, वन एवं वन्य जीव संरक्षण आदि की जानकारी आसानी से दी जा सकती है । पर्यावरण पर डॉक्यूमेंट्री एवं फीचर फिल्में भी बनाई जाती हैं । पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण, वन्य जीव संरक्षण आदि विषयों से संबंधित अधिक से अधिक फिल्मों के निर्माण की आवश्यकता है ताकि जनसामान्य को सार्थक जानकारी एवं ज्ञान प्रदान किया जा सके ।
सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका
भारत में इंटरनेट का जन्म 15 अगस्त, 1995 में हुआ था । तब से लेकर उपयोगकर्ताओं की संख्या में निरंतर वृध्दि हो रही है । पर्यावरण प्रबंधन के क्षेत्र में इंटरनेट का उपयोग विश्वव्यापी तथ्यात्मक जानकारी प्रदान करने की दृष्टि से उपयोगी है । पर्यावरण के विविध पक्षों की जानकारी एवं आंकड़े इन्टरनेट पर आसानी से प्राप्त किए जा सकते हैं । पर्यावरणीय अनुसंधान, नियोजन और प्रबंधन में इससे प्राप्त जानकारी अत्यंत उपयोगी सिध्द होगी।
सूचना प्रौद्योगिकी का एक नया क्षेत्र मल्टीमीडिया है । इसमें लेखन सामग्री, ध्वनि, वीडियो, द्विआयामी या त्रिआयामी ग्राफिक्स और एनीमेशन शामिल हैं । इसका उद्देश्य लोगों को एक नियंत्रित ढंग से जानकारी, शिक्षा और मनोरंजन प्रदान करना है । इसके माध्यम से जैव विविधता एवं वन्य जीवन पर जानकारी मनोरंजक के साथ साथ शिक्षाप्रद भी बन जाती है । इसके माध्यम से यह लाभ होता है कि यदि वास्तविक दृश्यों पर फिल्म बनाई जाए तो लागत कई गुना आती है, जबकि मल्टीमीडिया से यह कार्य सस्ते में एवं सरलता से सम्पन्न हो जाता है ।
परम्परागत माध्यमों की भूमिका
परम्परागत माध्यम या लोक माध्यमों की जड़ें ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों में गहरी पैठी हैं । इनके माध्यम से न केवल ग्रामीण जन जीवन की सामाजिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति होती है बल्कि ये माध्यम पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरणीय चेतना के प्रसार में भी सहायक हो सकते हैं। लोकगीत, लोक संगीत, लोक नृत्य, नौटंकी, कठपुतली आदि लोक माध्यम के साधन हैं । ये माध्यम श्रोताओं से सीधा सम्पर्क बनाते हैं अत: इनके माध्यम से पर्यावरणीय सूचना और संदेश प्रभावी ढंग से सम्प्रेषित हो जाते हैं। इनका उपयोग नगरों की अपेक्षा गांवों में आसानी से किया जा सकता है क्यों कि ये उनकी परम्परागत माध्यम लोक संस्कृति की अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम होते हैं ।
पर्यावरण संरक्षण के प्रति समय-समय पर किए गए प्रयासों के फलस्वरूप पिछले वर्षों में भारत में कई पर्यावरणीय आंदोलनों का जन्म हुआ । मीडिया ने इन आंदोलनों को व्यापक स्थान दिया और इनके उद्देश्यों से जनता को अवगत कराया । ये आंदोलन हैं - चिपको आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन, टेहरी बांध विरोधी आंदोलन, मूक घाटी, एप्पिको आंदोलन, भोपाल गैस त्रासदी, विष्णु प्रयाग बांध, चिलिका आंदोलन एवं पानी बचाओ आंदोलन और दिल्ली का वायु प्रदूषण नियंत्रण आदि ।
मीडिया को यह बात ध्यान में रखनी होगी कि वे अपनी बात समाज के किस वर्ग को किस माध्यम के जरिए पहुंचा रहे हैं । उन्हें जहां पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाए गए नियमों की अवहेलना करने वाली घटनाओं को सामने लाना होगा, वहीं जो संस्थाएं पर्यावरण संरक्षण के लिए अच्छा काम कर रही हैं उनके कार्यों को भी उजागर करना होगा । यह निर्विवाद सत्य है कि कानून, उपदेश और दबाव की तुलना में मीडिया पर्यावरण संबंधी जनचेतना जगाने की दृष्टि से काफी कारगर सिध्द हो सकता है । (पसूका)
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