//सफलता की कहानी// बंजर पहाड़ी को बनाया नीम पर्वत
हितेन्द्र सिंह भदौरिया
सूचना सहायक
लोग उन्हेेंं जंगली कहने लगे हैं, लेकिन किसी और मायने में। ग्वालियर जिले की जनपद पंचायत घाटीगाँव के आदिवासी बहुल गाँव रायपुर कलॉ के निवासियों को यह संज्ञा समीपवर्ती गाँवों के लोगों ने दे रखी है । रायपुर कलॉ वासियों को जंगली कहे जाने की वजह उनके जंगलों के बीच रहने अथवा असभ्य होने से नहीं है , उन्हें यह अजीब सी संज्ञा जंगल के संवर्धन अर्थात बडे पैमाने पर पेड़ लगाने से मिली है । यहाँ के खासकर सहरिया आदिवासी परिवारों ने नीम के पौधे रोपकर अपने गाँव की बंजर पहाड़ी को हरा-भरा बना दिया है । राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना के तहत हुए इस काम के माध्यम से इन परिवारों को अपने ही गाँव में रोजगार भी मिला है । नीम के पौधों से आच्छादित गाँव की पहाड़ी अब नीम पर्वत के नाम से जानी जाती है ।
रायपुर कला गाँव में निवासरत सहरिया आदिवासी परिवार पहले जंगलों से लकड़ी लाकर अपना गुजारा किया करते थे । यहाँ की ग्राम पंचायत के अभी तक सरपंच रहे लक्ष्मण सिंह कुशवाह कहते हैं कि जो हाथ पहले लकड़ी काटते थे वे अब पेडों की सेवा में जुटे हैं । लक्ष्मण सिंह बताते है कि हमारे यहाँ के आदिवासी परिवारों ने करीबन दो वर्ष पूर्व रोजगार की माँग रखी। उन्हें काम देने के लिए गाँव की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत समुदाय मूलक कार्य के रूप में वनीकरण का काम हाथ में लिया गया । वनीकरण के तहत गाँव में खाली और बंजर पड़ी सरकारी जमीन पर 'वन ग्राम' विकसित करने का काम शुरू हो गया । देखते ही देखते 'वन ग्राम' में लगाये गये फलदार पौधे पेड़ की शक्ल लेने लगे। इससे उत्साहित होकर गाँव की बंजर पहाड़ी को 'नीम पर्वत' बनाने का काम रोजगार गारंटी योजना के तहत हाथ में लिया गया ।
आदिवासी परिवारों की महिलाओं के लिए यह 'नीम पर्वत' रोजगार का साधन भर ही नहीं बना, इससे उनका भावनात्मक जुड़ाव भी हो गया है। यही वजह है ये महिलायें स्थानीय लोकगीत गुनगुनाते हुए सामूहिक रूप से पौधों को प्यास बुझाने जाती हैं । 'नीम नर्वत' के पौधे धीरे -धीरे पेड़ की शक्ल अख्तियार कर रहे हैं । नीम पर्वत पर पौधों को पानी देने में लगी आदिवासी महिला जीवनदे, प्रेमीबाई, भूरी, सगुना बाई आदि कहती है कि इन्हीं पौधों की वजह से हमें पिछले तकरीबन छ: महीनों से रोजी -रोटी मिल रही है । रायपुर कलॉ गाँव में निवासरत तकरीबन 70 आदिवासी परिवारों में 44 परिवारों को सौ दिन का रोजगार इस काम के माध्यम से मिल चुका है।
ग्राम पंचायत रायपुर कलॉ के सचिव बताते हैं तकरीबन 35 बीघा क्षेत्र में फैले 'नीम पर्वत' पर रोजगार गारण्टी योजना के तहत पाँच हजार से अधिक नीम के पौधे कण्टूर ट्रेंच के ऊपर लगावाये गये हैं । पौधों की सुरक्षा व पानी का पुख्ता बन्दोबस्त किया गया है, जिससे रोपे गये पौधे पेड़ बनने की ओर अग्रसर हैं । रायपुर ग्राम के लोग ''ग्लोबल वार्मिंग'' जैसे जुमलों से अनभिज्ञ जरूर हैं, पर पड़े पैमाने वनीकरण कर वे पर्यावरण सुधार में महती भूमिका अवश्य निभा रहे हैं । नीम लगाने के पीछे ग्रामीण तर्क देते हैं कि बंजर भूमि पर नीम के पौधों की उत्तरजीविता (जीवित रहने की संभावना) अधिक रहती है। साथ ही नीम की निबोरी (फल), पत्तियाँ व तना औषधियों के भण्डार है । नीम के पेड़ में विपरीत मौसम व कीट व्याधियों से लड़ने की अद्भुूत क्षमता भी होती है । हालाँकि ऊँचे-नीचे 'नीम नर्वत' पर पौधों को पानी देने में गाँव की महिलाओं को छोटी-मोटी कठिनाई जरूर आती है । लेकिन वे इस कठिनाई को तब मूल जाती हैं जब वे इस हरी-भरी पहाड़ी की तलहटी में 'नीम पर्वत' की कमाई से जुटाई गई रोटी अपने बच्चों के साथ सामूहिक रूप से खाने के लिए बैठती हैं ।
हितेन्द्र सिंह भदौरिया
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