शनिवार, 17 जनवरी 2009

रक्त के अवयवों के तर्कसंगत प्रयोगों पर व्याख्यानमाला आयोजित

रक्त के अवयवों के तर्कसंगत प्रयोगों पर व्याख्यानमाला आयोजित

ग्वालियर 16 जनवरी 09। गजरा राजा मेडीकल कालेज ग्वालियर के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग एवं ऑब्स एण्ड गायनिक सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में आज यहां रक्त अवयवों के तर्कसंगत प्रयोगों पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। रक्तदान को लेकर विभिन्न भ्रांतियों का निवारण करके जनसामान्य को रक्तदान के प्रति जागरूक व प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसका शुभारंभ अतिथि वक्ता एम्स नई दिल्ली की रक्तकोष संकाय प्रमुख डॉ. कविता चटर्जी ने किया।

       आमतौर पर देखा गया है कि आम आदमी रक्तदान को लेकर विभिन्न प्रकार की भ्रांतियों से सशंकित रहता है मसलन '' खून देने से कमजोरी आती है'' जब कि सत्य तो यह है कि जितनी मात्रा में रक्त दिया जाता है, वह पूरे शरीर का अंश मात्र होता है और उसकी क्षतिपूर्ति कुछ ही दिनों में हो जाती है। विशेषज्ञों ने बताया कि हर बीमारी में पूरे रक्त (व्होल ब्लड) की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि उसके कुछ खास अवयवों (जो कि आधुनिक प्रक्रियाओं द्वारा प्राप्त किये जा सकते है) के द्वारा भी चिकित्सा लाभ हो जाता है।

      एम्स के रक्तकोष की अध्यक्ष डॉ. चटर्जी का वक्तव्य इस लोकोक्ति पर आधारित है कि दान की श्रेष्ठता तभी है जब वह यथासमय, यथा स्थिति और जरूरत मंद व्यक्ति को दिया जाय। रक्तदान के संदर्भ में भी रक्तदान का अधिकाधिक लाभ तभी है जब वह आवश्यकतानुरूप, बीमारी के अनुसार एवं बीमार की हालिया परिस्थिति के अनुरूप दिया जाय। उन्होंने रक्त व रक्त अवयवों के उपयोग के तकनीकी एवं प्रायोगिक पक्ष पर भी प्रकाश डाला। कमलाराजा अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की प्रमुख डॉ. वीना अग्रवाल ने भी अपने अनुभवों से लाभान्वित किया। उनके वक्तव्य का विषय था '' हेल्प सिन्ड्रोम'' जो कि आमतौर पर केवल प्रसव या गर्भावस्था की बीमारी, उच्च रक्तचाप प्रिएक्लेपशिया का ही रूप समझा जाता रहा है। उन्होंने बताया कि यह घातक बीमारी महिलाओं में भी जाती है। आम तौर पर 1000 प्रसूताओं में 2 से 6 तक महिलायें इससे ग्रसित हो सकती है व इसका प्रकोप गर्भावस्था के अंतिम चरण में अधिक पाया जाता है। इस बीमारी का मुख्य कारण प्रतिरोधक तंत्र का रक्त कोशिकाओं के प्रति आक्रामक हो जाने से है। जिससे कि रक्तस्त्राव रोकनेवाली कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं और रक्तस्त्राव व उसके परिणामों से मरीज की मृत्यु भी हो सकती है। उन्होंने ऐसी गंभीर अवस्था को जल्दी से जल्दी पहचान करने में सहायक कुछ लक्षणों के बारे में भी बताया। उन्होंने बताया कि गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों के दौरान कमजोरी, थकान, हरारत या वायरल बुखार जैसी अवस्था हो अथवा जांचों में प्लेटलेटस की मात्रा अचानक कम पाई जाय तो इस रोग की आशंका होती है। उन्होंने इस अवस्था का वर्गीकरण करते हुये इसके उपचार को भी वर्णित किया, ताकि रक्त एवं रक्त अवयवों, जो इस बीमारी मे कम हो जाते हैं, उनका तर्कसंगत उपयोग किया जा सके।

      इस अवसर पर गजरा राजा मेडीकल कालेज के विकृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. भरत जैन ने भी रक्त एवं रक्त के अवयवों के विभिन्न बीमारियों में तर्कसंगत उपयोगों पर वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि यदि रक्त शरीर मे पहुंचाया जाता है तो उसके कुछ हानिकारक प्रभाव भी होते हैं। उन्होंने बताया कि रक्तदान की प्रक्रिया के पहले रक्त विभिन्न प्रकार के परीक्षणों से गुजरता है, जिससे प्राप्तकर्ता मे रक्त से प्रभावित होने वाली बीमारियों जैसे एच आई व्ही., एच बी व्ही, एच सी व्ही. एवं मलेरिया के पहुंचने की संभावना शून्य हो जाती है। कार्यक्रम में चिकित्सा जगत से जुड़े नागरिक भी उपस्थित थे।

 

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