शनिवार, 17 जनवरी 2009

ग्‍वालियर चम्‍बल में प्रतिबंधित मोबाइलों की भरमार, धड़ल्‍ले से बिक रहे हैं चीनी मोबाइल

ग्‍वालियर चम्‍बल में प्रतिबंधित मोबाइलों की भरमार, धड़ल्‍ले से बिक रहे हैं चीनी मोबाइल

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

ग्‍वालियर/भिण्‍ड/मुरैना 17 जनवरी 09, भारत सरकार ने बगैर इंटरनैशनल मोबाइल इक्विपमंट आइडंटिटी (आईएमईआई) के खुले बाजार में बिकने वाले सस्‍ते मोबाइलों, एसेम्‍बल्‍ड मोबाइलों और चीनी मोबाइलों पर प्रतिबंध लगा दिया हो किन्‍तु ग्‍वालियर चम्‍बल अँचल में आज भी न केवल इनका इस्‍तेमाल धड़ल्‍ले से जारी है बल्कि बिक्री भी दनादन जारी है ।

उल्‍लेखनीय है कि सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे चीनी मोबाइल फोन पर अब सरकार मोबाइल फोन ऑपरेटरों के जरिए शिकंजा कसने जा रही है। सरकार ने सभी मोबाइल फोन ऑपरेटरों

से कहा है कि अगर उनका कोई ग्राहक बिना इंटरनैशनल मोबाइल इक्विपमंट आइडंटिटी (आईएमईआई) वाला फोन इस्तेमाल कर रहा है तो यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे उसका फोन तुरंत बंद कर दें। अगर ऑपरेटर ऐसे कनेक्शन बंद नहीं करेंगे तो सरकार उन पर ऐसे हर कनेक्शन के लिए प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना लगाएगी।

सरकारी सूत्रों के मुताबिक टेलिकॉम डिपार्टमंट ने सभी मोबाइल ऑपरेटरों को इस बारे में अधिसूचना भेज दी है। जुर्माने की शुरुआत 6 जनवरी 2009 से बताई गई है। हर 15 दिन बाद जुर्माना दोगुना कर दिया जाएगा। यह प्रक्रिया 15 अप्रैल 2009 तक चलेगी। अगर इस अवधि में भी मोबाइल ऑपरेटरों ने बिना आईएमईआई मोबाइल सेट वाले कनेक्शन बंद नहीं किए तो फिर 15 अप्रैल के बाद वे एक भी नया कनेक्शन जारी नहीं कर पाएंगे।

उल्लेखनीय है कि सुरक्षा एजंसियां लगातार यह मुद्दा उठा रही हैं कि जो लोग बिना आईएमईआई नंबर वाला चीनी मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं, उनका कनेक्शन तुरंत काट दिया जाना चाहिए। सुरक्षा एजंसियां ऐसे फोनों को इसलिए सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बता रही हैं, क्योंकि इनका पता लगाना संभव नहीं होता है। चीन में बने हजारों मोबाइल फोनों में या तो आईएमईआई नंबर होता ही नहीं है या फिर हजारों सेटों पर एक ही नंबर होता है।

गृह मंत्रालय ने इस बारे में सभी राज्य सरकारों को भी सतर्क किया था। कुछ राज्यों ने तो चीनी मोबाइल फोन जब्त करना भी शुरू कर दिया था। यूपी ने सबसे पहले शुरुआत की थी। सुरक्षा एजंसियों के मुताबिक चीनी फोनों का इस्तेमाल आतंकी कर रहे हैं। हैदराबाद की मक्का मस्जिद में विस्फोट के लिए ऐसे ही फोन का इस्तेमाल किया गया था। इस मामले में आज तक जांच एजंसियां अभियुक्तों तक नहीं पहुंच पाई है।

टेलिकम्यूनिकेशन उपकरण बनाने वाली चीनी कंपनियों पर सुरक्षा एजंसियों की पैनी नजर है। ऐसी दो प्रमुख कंपनियों के बारे में केंद को सूचित किया गया है कि चीनी कंपनियां अपने उपकरणों के जरिए जासूसी कर रही हैं।

लेकिन इसके विपरीत ग्‍वालियर चम्‍बल अँचल में चीनी मोबाइल तकरीबन 14 से 15 हजार और बगैर आइडेण्‍टीफिकेशन नंबर के रिपेयर्ड व असेम्‍बल्‍ड लगभग 7-8 हजार मोबाइल फोन आज तक न केवल प्रचलन में हैं बल्कि बदस्‍तूर इनकी बिक्री भी जारी है ।

चौंकाने वाला एक जोरदार तथ्‍य यह भी है कि ग्‍वालियर चम्‍बल अँचल से पिछले चार पॉंच साल में करीब 30 हजार मोबाइल फोन या तो गुम हो गये या चोरी हो गये, इसके बाद वे कहॉं गये और उनका क्‍या हुआ किसी को नहीं पता । मोबाइल चोरी के 98 फीसदी मामलों में प्राथमिकी पुलिस द्वारा दर्ज नहीं की जाती इसी प्रकार गुम मोबाइल फोनों और उनके आइडेण्‍टीटी नंबर्स का भी कोई रिकार्ड पुलिस द्वारा मैण्‍टैन नहीं किया जाता अत: पुलिस के लिये भी गुम या चोरी हुये मोबाइल किसी दिन तगड़े सिरदर्द बन कर उभर सकते हैं ।

मोबाइल चोरी की घटनायें व्‍यक्तिगत चोरी से लेकर सीधे मोबाइल फोनों की दूकानों के ताले तोड़ कर या दीवाल तोड़ कर थोक बन्‍द सैकड़ों से हजारों मोबाइल फोन इकठ्ठे पार करने तक की घटित हुयीं हैं । मजे की और तमाशे की बात यह है कि दूकानदार भी चोरी गये मोबाइल फोनों के आइडेण्टिटी नंबर्स की सूची देने में असमर्थ हैं, इसकी खास वजह यह है कि ग्‍वालियर चम्‍बल अँचल में जहॉं सस्‍ता या चोरी का माल लपक कर दूकानदार दो नंबर में खरीद कर मुनाफे के लालच में वायरलेस संसाधनों के खतरे की आग में देश को झोंक देते हैं वहीं आम उपभोक्‍ता भी सस्‍ते और चोरी के मोबाइल फोन अधिक खरीदने में यकीन रखता है ।

एक तमाशा यह भी कि सस्‍ते दो नंबर के या चोरी के या बरामदगी ( ऊपरी फर्जी बरामदगी, ऑन रिकार्ड नहीं) के मोबाइल पुलिस कर्मी ही अधिक बेचते हैं । मैंने मोबाइल फोनों की दूकानों पर लोगों को थैले के थैले भर कर मोबाइल बेचते देखा है इसके अलावा मुझे कुछ लोग घर बैठे ही मँहगे मोबाइल सेट औने पौने बेचने का ऑफर कर के गये ये दीगर बात है कि मैं इन चक्‍करों में नहीं फंसता ।

प्रश्‍न यह है कि गुम या चोरी के मोबाइल क्‍या आतंकवादीयों पर नहीं पहुँचते, आखिर ये सब मोबाइल फोन जाते कहॉं हैं । चोरी की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी और जी.पी.एस. (ग्‍लोबल पॉजीशनिंग सिस्‍टम) सुविधा से सक्षम होने के बावजूद पुलिस मोबाइल फोनों को तलाश क्‍यों नहीं पाती । मैंने मुरैना शहर से चोरी हुये कुछ मोबाइलों के आइडेण्टिटी नंबर्स एकत्रित कर जरिये इण्‍टरनेट खोज खबर लगाना शुरू की तो पता लगा कि सारे चोरी हुये मोबाइल फोन चालू हैं लेकिन पुलिस उन्‍हें नहीं ढूंढ़ पा रही । यह बात अलग है कि मेरे पास अधिक सक्षम व विकसित संसाधन नहीं हैं वरना मैं ही उन्‍हें खोज कर तमाशा दिखा देता, केवल यहॉं तक पता चल रहा है कि फोन चालू हैं ।

सवाल ये है कि पुलिस की ऐसी लापरवाहीयों का खामियाजा 26-27 नवम्‍बर के मुम्‍बई काण्‍ड के मानिन्‍द जनता को भुगतना पड़ता है ।

 

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