शनिवार, 1 अगस्त 2009

जिला पतन्जलि योग समिति ग्वालियर द्वारा निशुल्‍क योग प्रशिक्षण

जिला पतन्जलि योग समिति ग्वालियर द्वारा निशुल्‍क योग प्रशिक्षण

दिनांक 31 जुलाई 09/ जिला पतन्जलि योग समिति ग्वालियर द्वारा पतंजलि योग पीठ हरिद्वार के तत्वावधान में 49, कृष्ण कुंज विनय नगर सेक्टर-3 ग्वालियर में नियमित रूप से प्रात: 5 बजे से 6.30 बजे तक योग कक्षाओं का निशुल्क संचालनकिया जाता है।

       सभी साधक साधिकाओं को योग ऋषि बाबा रामदेव के निर्देशानुसार सातों आसन, सातों प्राणायाम तथा सातों सूक्ष्म व्यायाम का अभ्यास कराया जाता है।रोग मुक्ति हेतु एक्यूप्रेशर तथा ध्यान हेतु भजन का गायन भी किया जाता है। योग शिक्षक श्री रामचन्द्र गुप्त द्वारा पातंजलि योग सूत्र के दूसरे अध्याय के अंतिम सूत्रों की व्याख्या करते हुए बताया कि किस प्रकार विभिन्न यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रम्हचर्य, अपरिग्रह) नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान) आसन प्राणायाम और प्रत्याहार में दृढ़ रूप से प्रतिष्ठित होने पर क्या-क्या फल प्राप्त होते हैं।

       योगी में अहिंसा के प्रतिष्ठित होने पर उसके समक्ष समस्त प्राणी अपना बैर त्याग देते हैं। सत्य की प्रतिष्ठा होने पर क्रिया का फल योगी के आश्रित हो जाता है, वह जो कहता है वैसा ही हो जाता है। वरदान और श्राप का यही रहस्य है। अस्तेय की प्रतिष्ठा होने पर उसको सब रत्नों की प्राप्ति हो जाती है। ब्रम्हचर्य की प्रतिष्ठा से वीर्य अर्थात अतुल बल की प्राप्ति हो जाती है। अपरिग्रह की स्थिरता होने पर उसे जन्म जन्मांतर का ज्ञान हो जाता है। वाय्ह शौच की प्रतिष्ठा होने पर उसे अपने अंगों के प्रति लगाव नहीं रहता और दूसरों से संसर्ग करने की इच्छा का अभाव हो जाता है। अत: शौच के प्रतिष्ठित होने पर चित्त की शुध्दि मन की स्वच्छता, एकाग्रता, इन्द्रियों पर विजय तथा आत्मदर्शन की योग्यता प्राप्त हो जाती है। संतोष में स्थिरता होने पर उत्तम से उत्तम सुख की प्राप्ति होती है। तप से शरीर और इन्द्रियों की अशुध्दियाँ दूर हो जाती हैं। स्वाध्याय अर्थात् प्रणव (ओंकार) के जाप और योग शास्त्रों के अध्ययन से पुण्यात्माओं के दर्शन का लाभ प्राप्त होता है। तथा ईश्वर प्रणिधान से समाधि सिध्द होती है।

       आसन की स्थिरत से सभी द्वन्द्व (भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी, सुख, दुख) योगी को नहीं सताते। प्राणायाम की सिध्दि होने से प्रकाश का आवरण क्षीण हो जाता है और मन में धारणा की योग्यता उत्पन्न हो जाती है। इन्द्रियां अपने वश में हो जाती हैं और वह विषयों की ओर नहीं भागता, जिससे चित्त में वैराग्य उत्पन्न होता है, और इस प्रत्याहार से इन्द्रियों की परम वश्यता प्राप्त होती है जिससे चित्त एकाग्र होकर धारणा, ध्यान और समाधि की ओर अग्रसर होता है।  हरि: ओम तत्सत्।

 

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